बिहार वोटर लिस्ट के संशोधन में ‘आधार कार्ड’ क्यों नहीं वैध दस्तावेज? सामने आई अहम जानकारी

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Aadhaar Card in Bihar Voter List Revision: बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर चल रही राजनीति पर विपक्ष चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठा रहा है. वहीं, चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, आयोग की प्रक्रिया पूरी तरह से नियम और कानून के हिसाब से सही है.
दूसरी ओर, रही बात मतदाता सूची पुनरीक्षण एक महीने में पूरा करने को लेकर उठाए जा रहे विपक्ष के सवालों की, तो इससे पहले साल 2002 के दौरान जब वोटर लिस्ट पुनरीक्षण का काम किया गया था तो उस दौरान भी यह काम आज की प्रक्रिया के मुताबिक ही 31 दिनों के दौरान पूरा किया गया था.
31 दिनों में गणना प्रपत्रों की छपाई, वितरण और संग्रहण का है प्रावधान
चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, बिहार में 2002 में अंतिम मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान गणना प्रपत्रों की छपाई, वितरण और संग्रहण का काम 15 जुलाई से 14 अगस्त यानी 31 दिनों के दौरान किया गया था. जबकि इस बार विपक्ष लगातार यही सवाल उठा रहा है कि आखिर एक महीने में काम कैसे मुमकिन है. चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, इस बार भी मतदाता सूची पुनरीक्षण यानी SIR 2025 में भी 2002 के तर्ज पर ही 24 जून से 26 जुलाई यानी 31 दिनों के बीच गणना प्रपत्रों की छपाई, वितरण और संग्रहण का प्रावधान है.
TMC ने उठाया सवाल, चुनाव आयोग ने दिया जवाब
इसके साथ ही अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (TMC) जो फिलहाल चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है, उसने चुनाव आयोग के साथ अलग-अलग बैठकों के दौरान वोटर आईडी कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का कड़ा विरोध किया था. जबकि तमाम विपक्षी दल जो मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान जिन दस्तावेजों की जरूरत है, उसमें आधार के न होने का मुद्दा बना रहे हैं. उनको जवाब देते हुए चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि

आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है
आधार जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है
आधार जन्म स्थान का प्रमाण नहीं है
यह केवल यह परिभाषित करता है कि 10 अंगुलियों के निशान, फोटो और आईरिस आधार कार्ड में उल्लिखित व्यक्ति के नाम के हैं
इसलिए हर आधार कार्ड पर बोल्ड में लिखा होता है कि “आधार पहचान का प्रमाण है, नागरिकता या जन्मतिथि का नहीं”

और इसी वजह से आधार कार्ड मतदाता सूची पुनरीक्षण काम के दौरान दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया है.
मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पूरी तरीके से कानून के तर्क संगत
कुल मिलाकर एक तरफ विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर हमलावर है, तो चुनाव आयोग की तरफ से लगातार यह बताने की कोशिश भी की जा रही है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण की प्रक्रिया पूरी तरीके से कानून, संविधान और नियमों के तर्क संगत है. चुनाव आयोग ने जो भी फैसला लिया है वह पूरी सावधानी और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ही लिया है. इसी वजह से बेवजह इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.
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