मुस्लिम महिला बिना पति की मंजूरी के ले सकती है ‘खुला’ तलाक, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

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Muslim Women Khula: तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि मुस्लिम महिलाओं को खुला के जरिए शादी खत्म करने का पूरा और बिना शर्त अधिकार है. साथ ही इसके लिए पति की मंजूरी जरूरी नहीं है.  खुला इस्लामिक कानून के तहत तलाक का एक तरीका है जिसमें महिला खुद विवाह-विच्छेद की पहल करती है, आमतौर पर अपने मेहर के अधिकार को छोड़कर वह ऐसा करती है.
मंगलवार को दिए गए इस फैसले में जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बीआर मधुसूदन राव की बेंच ने कहा कि खुला बिना किसी दोष या झगड़े का माध्यम है, जिसमें पत्नी की पहल ही निर्णायक होती है और जैसे ही पत्नी खुला की मांग करती है, यह निजी स्तर पर तुरंत प्रभाव में आ जाता है.
कोर्ट ने कहा, “पत्नी का खुला मांगने का अधिकार पूर्ण है और इसके लिए न तो किसी कारण की आवश्यकता है और न ही पति की स्वीकृति की. कोर्ट की भूमिका केवल इसे वैधानिक रूप से मान्यता देने की होती है.”
केस का विवरणयह मामला एक मुस्लिम पुरुष की ओर से फाइल की गई अपील से जुड़ा था, जिसमें उसने 2020 में जारी हुए एक खुलानामा को निरस्त करने की मांग की थी. यह खुलानामा ‘सदाए हक शरई काउंसिल’ द्वारा जारी किया गया था, जो इस्लामी विद्वानों, मुफ्तियों और इमामों का एक गैर-सरकारी निकाय है और इस्लामी निजी कानून के अनुसार वैवाहिक विवाद सुलझाता है.
पति ने खुला को मानने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद पत्नी ने परिषद से संपर्क कर तलाक की प्रक्रिया पूरी की थी. फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.
कोर्ट के मेन पॉइंट्स 
खुला को प्रमाणित करने के लिए मुफ्ती की मंजूरी जरूरी नहीं है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी मुफ्ती या दारुल-क़ज़ा से तलाक प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मुफ्ती द्वारा दिया गया फतवा सिर्फ परामर्श है, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं.  अगर मामला कोर्ट तक आता है, तो फैमिली कोर्ट सिर्फ यह देखेगा कि खुला की मांग वैध है या नहीं, और यह प्रक्रिया संक्षिप्त होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जैसे मुस्लिम पुरुष को एकतरफा तलाक का अधिकार है, वैसे ही महिला को भी खुला का समान अधिकार है. कोर्ट ने कुरान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (शायरा बानो 2017 और शमीम आरा 2002) का हवाला देते हुए कहा कि पति की सहमति की कोई धार्मिक या कानूनी अनिवार्यता नहीं है. 

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