अंतरराष्ट्रीय व्यापार घोटाले का मास्टरमाइंड मुकेश गुप्ता गिरफ्तार, जानें सिंगापुर से कनेक्शन

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<p style="text-align: justify;">एक शांत चेहरा, विदेशी नागरिकता और तीन दशकों का कारोबारी अनुभव. जब परतें खुलीं तो सामने आया एक ऐसा जाल, जिसमें कागज के कुछ टुकड़ों से 10 करोड़ रुपये का अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग घोटाला रचा गया. दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने मुकेश गुप्ता को गिरफ्तार कर इस हाई-प्रोफाइल फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया है.</p>
<p style="text-align: justify;">मुकेश गुप्ता, जो सिंगापुर के नागरिक हैं और भारत के ओवरसीज सिटीजन भी, उन्होंने शातिराना तरीके से फर्जी बिल ऑफ लैडिंग (BL) और नकली शिपिंग दस्तावेज बनवाकर भारतीय बैंक को ठगा. शक की सुई तब घूमी जब दिल्ली की चौधरी टिम्बर इंडस्ट्रीज प्रा. लि. (CTIPL) को न्यूजीलैंड से टिम्बर का एक भी लट्ठा नहीं मिला जबकि पूरा भुगतान हो चुका था.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कैसे हुआ घोटाला ?</strong><br />यह घोटाला सिर्फ एक व्यापारिक धोखा नहीं था, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था में सेंध लगाने का सुनियोजित प्रयास था. मार्च 2020 में गुप्ता ने इंडियन बैंक, सिंगापुर को फर्जी शिपिंग दस्तावेज सौंपे, जिन्हें बैंक ऑफ इंडिया की दिल्ली शाखा तक भेजा गया. दस्तावेजों के भरोसे पर बैंक ने लगभग 10 करोड़ रुपये जारी कर दिए, लेकिन असलियत ये थी जहाज चला ही नहीं और माल था ही नहीं. शिप मालिक एशिया मरीटाइम पैसिफिक लिमिटेड, शिपिंग एजेंट अर्नव शिपिंग और बीमा कंपनी वेरो इंश्योरेंस, न्यूजीलैंड सभी ने पुष्टि की कि उनके नामों और मोहरों का फर्जी इस्तेमाल हुआ है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>शातिर खेल और कानूनी शिकंजा</strong><br />पुलिस सूत्रों के अनुसार गुप्ता जांच से लंबे समय तक बचते रहे. हर बार नई बीमारी या विदेश यात्रा का बहाना लेकिन EOW की तकनीकी निगरानी और लगातार दबाव के चलते 22 अप्रैल 2025 को उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पूछताछ में गुप्ता ने गोलमोल जवाब दिए. कोर्ट में पेशी के बाद उन्हें 14 मई तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया. सिंगापुर हाई कमीशन को औपचारिक सूचना दी जा चुकी है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>व्यवसायी से ठग बनने तक का सफर</strong><br />मुकेश गुप्ता का जन्म बरेली उत्तर प्रदेश में हुआ. 1986 में गुजरात गए और टिम्बर व्यापार में कदम रखा. उनका नेटवर्क 20 देशों तक फैला था इंडोनेशिया से घाना और न्यूजीलैंड से मलेशिया तक, लेकिन इस सफलता के पीछे क्या छिपा था. अब पता चला है कंपनियों के नाम, दस्तावेज और व्यापार की साख सब फर्जीवाड़े के औजार बन चुके थे.</p>
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