वक्फ कानून के खिलाफ मौलाना महमूद मदनी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, बोले- ये मुसलमानों के लिए खतरा

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Waqf Amendment Act: जमीयत उलमा-ए-हिंद (महमूद मदनी गुट) के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है. आपको बता दें कि वक्फ कानून 8 अप्रैल 2025 से लागू किया जा चुका है. 
याचिका में जमीयत की ओर से कहा गया है कि इस कानून में एक नहीं बल्कि भारत के संविधान के कई अनुच्छेदों, विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया है, जो मुसलमानों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों और पहचान के लिए गंभीर खतरा है.
मौलाना मदनी ने कहा कि यह कानून न केवल असंवैधानिक है बल्कि बहुसंख्यक मानसिकता की उपज है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के सदियों पुराने धार्मिक और कल्याणकारी ढांचे को नष्ट करना है. यह कानून सुधारात्मक पहल के नाम पर भेदभाव का झंडाबरदार है और देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए खतरा है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को असंवैधानिक घोषित करे और इसके क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाए.
मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में लगाए कई आरोप
मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में कहा है कि इस अधिनियम से देश भर में वक्फ संपत्तियों की परिभाषा, संचालन और प्रबंधन प्रणाली में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया गया है, जो इस्लामी धार्मिक परंपराओं और न्यायिक सिद्धांतों के विपरीत है. याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन दुर्भावना पर आधारित है जो वक्फ संस्थाओं को कमजोर करने के उद्देश्य से किए गए हैं. उन्होंने इस कानून की कई कमियों का भी इस याचिका में जिक्र किया है, जिसमें यह प्रावधान भी शामिल है कि अब केवल वही व्यक्ति वक्फ (संपत्ति दान) कर सकता है जो पांच साल से प्रैक्टिसिंग मुसलमान हो. इस शर्त का किसी भी धार्मिक कानून में कोई उदाहरण नहीं मिलता, इसके साथ ही यह शर्त लगाना कि वक्फ करने वाले को यह भी साबित करना पड़ेगा कि उसका वक्फ करना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है, यह बेकार का कानूनी बिंदु है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है.
‘इस कानून के लागू होने के बाद से वक्फ संपत्तियां खतरे में’
मौलाना महमूद असद मदनी ने अपनी याचिका में कहा है कि वक्फ बाई यूजर की समाप्ति से उन धार्मिक स्थानों को खतरा है जो ऐतिहासिक रूप से लोगों के लगातार उपयोग से वक्फ का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं. उनकी संख्या चार लाख से अधिक है. इस कानून के लागू होने के बाद यह संपत्तियां खतरे में पड़ गई हैं और सरकारों के लिए इन पर कब्जा करना आसान हो गया है. इसी तरह से केंद्रीय और राज्य वक्फ काउंसिलों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देने वाले अनुच्छेद 26 का स्पष्ट उल्लंघन है.
वक्फ कानून को लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक दिल्ली के ITO स्थित जमीयत उलेमा ए हिंद के मुख्यालय में रविवार 13 अप्रैल को होगी, जिसकी अध्यक्षता मौलाना महमूद मदनी करेंगे. इस बैठक में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ कानूनी और संवैधानिक दायरे में रहते हुए किस तरह का कदम उठाया जाए इस पर एक्शन प्लान बनाया जाएगा और विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर फैसले लिए जाएंगे.
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