50000 साल पहले भारत में इस जगह गिरा था उल्कापिंड, बन गई ऐसी रहस्यमयी झील! NASA भी हैरान

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Maharashtra Lonar Lake: महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित लोनार झील दुनिया की एकमात्र खारी क्रेटर झील है, जो लगभग 50,000 साल पहले एक उल्कापिंड के प्रभाव से बनी थी. इसका पानी समुद्री पानी की तुलना में सात गुना अधिक खारा है, जो इसे और भी खास बनाता है. यह झील न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्राकृतिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक अनोखा खजाना है. चलिए, आइए इस झील के अद्भुत पहलुओं और इसकी कहानी को विस्तार से जानते हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, लोनार झील के बारे में कहा जाता है कि ये एक बहुत ही रहस्यमयी झील है. इस झील को लेकर कहानी है कि रातों-रात रहस्यमय तरीके से अपना रंग बदल लिया था और गुलाबी हो गई थी. झील का व्यास 1.2 किलोमीटर और गहराई 150 मीटर है और यह पहाड़ियों की रिम से घिरी हुई है. औरंगाबाद से 170 किलोमीटर और मुंबई से 550 किलोमीटर दूर, यह झील महाराष्ट्र के सबसे आकर्षक रहस्यों में से एक मानी जाती है.
झील का अनोखा भौगोलिक महत्वलोनार झील के पानी का रंग बदलता है, जो मौसम और पानी में माइक्रोऑर्गेनिज्म की स्थिति पर निर्भर करता है. यह हरे से गुलाबी रंग में बदल सकता है. सूक्ष्मजीव जैसे हेलोबैक्टीरियासी और डुनालीला सलीना झील के खारे और क्षारीय वातावरण में पनपते हैं और ये पिगमेंट जनरेट करते हैं. खारे और क्षारीय दोनों प्रकार के पानी का एक साथ होना दुर्लभ है, जो इस झील को खास बनाता है.यह झील डेक्कन पठार की बेसाल्टिक चट्टान पर स्थित है, जो 65 मिलियन साल पुराने ज्वालामुखी विस्फोटों से बनी थी.
साइंटिफिक स्टडी कर नासा भी हैरानअमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने झील और चंद्रमा की सतह के बीच सिमिलरिटीज को लेकर हैरान थी. आईआईटी बॉम्बे के रिसर्च में झील की मिट्टी में ऐसे खनिज मिले हैं जो चंद्रमा की चट्टानों से मेल खाते हैं. वैज्ञानिक इसे चंद्र भूविज्ञान और खगोल विज्ञान के अध्ययन के लिए आदर्श मानते हैं. लोनार झील को पवित्र माना जाता है और इसे भगवान विष्णु से जोड़ा जाता है. झील के आसपास 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के कई प्राचीन मंदिर हैं, जो स्थापत्य और कलात्मक कौशल का प्रदर्शन करते हैं. स्थानीय मान्यता है कि भगवान राम ने झील का दौरा किया था.
झील की रहस्यमयी विशेषताएंझील के विद्युत-चुंबकीय गुणों के कारण, इसके कुछ हिस्सों में कम्पास काम नहीं करते। झील का यह अनोखा गुण वैज्ञानिकों के लिए भी चुनौतीपूर्ण रहा है. नवंबर 2020 में लोनार झील को रामसर साइट घोषित किया गया. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) ने इसे राष्ट्रीय भू-विरासत स्मारक के रूप में संरक्षित किया है. हालांकि झील प्रदूषण, अतिक्रमण, और आक्रामक प्रजातियों जैसी समस्याओं का सामना कर रही है.
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