महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों में जिस तरह से महायुति ने क्लीन स्वीप किया है, उसने ठाकरे परिवार की राजनीतिक विरासत को खतरे में डाल दिया है. नतीजों से ये साफ हो गया है कि न सिर्फ महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे का राजनीतिक रसूख खत्म हो गया है बल्कि उद्धव ठाकरे भी अपने पिता के बनाए राजनीतिक साम्राज्य को कायम नहीं रख पाए हैं. ऐसे में सवाल है कि परिवार के बंटने से जो वोट कट गए हैं या वो एक होकर फिर से सेफ हो सकते हैं. यानी कि सवाल ये है कि क्या बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे फिर से एक हो सकते हैं या फिर अब असली शिवसेना का जो ठप्पा एक नाथ शिंदे ने अपने कंधे पर लगा लिया है, वो हमेशा-हमेशा के लिए अमिट हो गया है.
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने जब अपने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी बनाने की बात शुरू की तो भतीजे राज ठाकरे नाराज हो गए और इतने नाराज हुए कि बाल ठाकरे के रहते हुए ही वो परिवार से अलग हो गए. अपनी पार्टी बनाई और नाम रखा महाराष्ट्र नव निर्माण सेना यानी कि मनसे. 2006 में पार्टी बनाने के बाद साल 2009 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो मनसे को कुल 13 सीटों पर जीत मिली थी. 2014 में राज ठाकरे दो सीटों पर सिमट गए. 2019 में सीटों की संख्या एक हो गई और 2024 में तो राज ठाकरे जीरो हो गए. नेताओं की तो बात छोड़ ही दीजिए, राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भी अपना पहला ही चुनाव हार गए.उद्धव ठाकरे के साथ भी कुछ बेहतर नहीं हुआ. 2019 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी का साथ क्या छोड़ा, पूरी पार्टी ने ही उद्धव को किनारे लगा दिया. जैसे ही एकनाथ शिंदे को मौका मिला, उन्होंने पार्टी तोड़ दी और बीजेपी के साथ आ गए. वो न सिर्फ मुख्यमंत्री बने बल्कि उद्धव ठाकरे की पूरी राजनीति को ही खत्म कर दिया. 2024 में तो एकनाथ शिंदे ने साबित भी कर दिया कि असली शिवसेना और उसका वारिस ठाकरे परिवार नहीं बल्कि एकनाथ शिंदे हैं.ऐसे में अब पांच साल तक तो राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों को ही इसी नतीजे से संतोष करना होगा. अगर उन्हें बाल ठाकरे की विरासत बचानी है, फिर से महाराष्ट्र में शिवसेना का वर्चस्व कायम करना है, फिर से खुद को साबित करना है तो शायद उनकी एकजुटता ही इसमें मदद कर सकती है. आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो कहते हैं कि एक हैं तो सेफ हैं. परिवार एक रहा तो शायद विरासत भी सेफ रहेगी, वरना तो पार्टी और परिवार के बंटने पर शिवसेना-मनसे के वोट कैसे कटे हैं, 2024 के विधानसभा चुनाव का नतीजा इसका गवाह है.
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