सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 नवंबर, 2024) को मदरसा बोर्ड को बड़ी राहत देते हुए उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को मान्यता दे दी है. हालांकि, मदरसों में बच्चे सिर्फ 12वीं तक की तालीम ही हासिल कर सकेंगे, मदरसों में वह हायर एजुकेशन के लिए फाजिल और कालिम की डिग्री हासिल नहीं कर सकेंगे.
कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि मदरसे भारत की धार्मिक और शैक्षिक विवधता में अभिन्न भूमिका निभाते हैं और राज्य-शासित पाठयक्रम मानकों का पालन करते हैं. उधर, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को एक्ट को पूरी तरह से रद्द नहीं करना चाहिए था, बल्कि आंशिक रूप से रोक लगाई जा सकती थी.
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए तर्क दिया कि धार्मिक संस्थानों को गलत तरीके से टारगेट किया गया और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए बनाए गए संविधान के अनुच्छेद 30 पर भी ध्यान नहीं दिया गया. आर्टिकल 30 धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थानों की स्थापन और प्रशासन के अधिकार की गारंटी देता है. यूपी सरकार की ओर से एएसजी केएम नटराज ने कहा कि एक्ट को आंशिक रूप से रद्द किया जाना चाहिए था और हाईकोर्ट पूरे ढांचे को अमान्य करने के बजाय अपने फैसले को विशेष प्रावधानों तक सीमित कर सकता था.
इसी साल मार्च में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता अंशुमन सिंह राठौड़ की याचिका पर सुनवाई करते हुए मदरसा एक्ट 2004 को असंवैधानिक बताते हुए कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं, इनमें अंजुम कादरी, मैनेजर्स एसोसिएशन मदरिस अरबिया (यूपी), ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदरिस अरबिया (नई दिल्ली), मैनेजर एसोसिएशन अरबिया मदरसा नए बाजार और टीचर्स एसोसिएशन मदसिर अरबिया कानपुर शामिल हैं.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी, पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद, मुकुल रोहतगी, पी. एस. पाटवालिया, डॉ. मेनका गुरुस्वामी, एमआर शमशाद, एम. ए. औसफ, एचपी साही, यश जोहरी और उत्कर्ष प्रताप जैसे सीनियर एडवोकेट पेश हुए. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज पेश हुए थे. एनसीपीसीआर की तरफ से एडवोकेट स्वरुपमा चतुर्वेदी और एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान पेश हुई थीं.
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