केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने राज्य सरकार से उसके पहले के इस कथन के बारे में उसका रुख पूछा है कि वह काला जादू जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ कानून बनाने पर विचार कर रही है.
केरल सरकार ने अक्टूबर 2022 में केरल युक्तिवादी संघम नाम के एक संगठन की याचिका पर सुनवाई के दौरान एक दलील दाखिल की थी. याचिका में ऐसी प्रथाओं के खिलाफ कानून बनाने की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से किसी के प्रतिनिधित्व नहीं करने के कारण जून 2023 में याचिका खारिज कर दी गई थी, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया गया.
जब मामला 3 जून को मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और जस्टिस बसंत बालाजी की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, तो अदालत ने सरकार को अपने पहले के इस कथन के संबंध में अपने रुख के बारे में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया कि वह इस विषय पर कानून बनाने पर विचार कर रही है.
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 24 जून को करना तय किया है. संगठन ने अपनी याचिका में कहा है कि न्यायमूर्ति (रिटायर्ड) के.टी. थॉमस की अध्यक्षता वाले विधि सुधार आयोग ने साल 2019 में केरल राज्य को एक व्यापक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें नई सामाजिक स्थितियों पर आधारित विधायी सिफारिशें की गई थीं.
संगठन ने दावा किया है, ‘केरल अमानवीय कुरीतियां, जादू-टोना और काला जादू रोकथाम और उन्मूलन विधेयक-2019, अनुशंसित विधेयकों में से एक है, लेकिन अभी तक राज्य की ओर से इस मामले में कोई प्रयास नहीं किया गया है.’
यह याचिका साल 2022 में केरल के पत्तनमथिट्टा जिले में एक जोड़े सहित तीन लोगों की ओर से दो महिलाओं की मानव बलि दिए जाने के मद्देनजर दायर की गई थी. याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों की ओर से जादू-टोना और काला जादू के खिलाफ कानून पारित किए गए हैं.
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