<p style="text-align: justify;">भारत में मार्शल आर्ट्स का हमेशा से एक खास महत्व रहा है, लेकिन बावजूद इसके विश्व का सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट माना जाने वाला कलारीपयट्टू, , आज भी पूरी दुनिया में अपनी असली अहमियत साबित नहीं कर पाया है. यहां तक कि भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) ने इसे 38वें राष्ट्रीय खेलों में एक प्रदर्शन खेल के रूप में शामिल किया है, जबकि पहले इसे एक प्रतिस्पर्धी खेल के तौर पर माना जाता था.</p>
<p style="text-align: justify;"><em>ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्यों कलारीपयट्टू को उसकी असली पहचान नहीं मिल पा रही है?</em></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है कलारीपयट्टू </strong></p>
<p style="text-align: justify;">कलारीपयट्टू को ‘विश्व का सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट’ कहा जाता है. इसकी उत्पत्ति केरल में हुई, और इसका संबंध भारतीय युद्ध कला और शरीर नियंत्रण की उच्चतम विधाओं से है. माना जाता है कि इस कला के संस्थापक ‘ऋषि परशुराम’ थे. परशुराम ने इसे अपने शिष्यों को सिखाया और समय के साथ यह कला केरल के कोन- कोने में फैल गई.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस कला का प्रसार केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहा. 5वीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षु ‘बोधिधर्म’ ने इसे चीन के शाओलिन मठ में पहुंचाया, और यहीं से कलारीपयट्टू के कई सिद्धांतों ने ‘कुंग फू’ और अन्य एशियाई मार्शल आर्ट्स की जड़ें भी मजबूत कीं. </p>
<p>कलारीपयट्टू के बारे में अगर सरल तरीके से समझें तो यह एक प्राचीन मार्शल आर्ट है, जो खास तौर पर केरल में प्रचलित है. मलयालम में ‘कलारी’ का मतलब होता है एक परंपरागत व्यायामशाला और ‘पयट्टू’ का मतलब होता है लड़ाई या व्यायाम. इसमें आठ जानवरों (हाथी, शेर, सूअर, घोड़ा, साँप, मुर्गा, बिल्ली और मछली) की लड़ाई और बचाव की तकनीकों से प्रेरणा ली जाती है.</p>
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<p><strong>कलारीपयट्टू के दो प्रमुख प्रकार होते हैं</strong></p>
<ul>
<li><strong>उत्तरी कलारीपयट्टू:</strong> इसमें हथियारों और शरीर की सीधी गति पर ध्यान दिया जाता है.</li>
<li><strong>दक्षिणी कलारीपयट्टू:</strong> इसमें कम हथियारों के साथ शरीर की गति और दिशा पर ज्यादा जोर होता है.</li>
</ul>
<p><strong>इसके प्रशिक्षण के चार प्रमुख चरण होते हैं</strong></p>
<ul>
<li><strong>मैप्पयाट्टू:</strong> यह शरीर को युद्ध के लिए तैयार करने का अभ्यास होता है.</li>
<li><strong>कोलथारी:</strong> इसमें लकड़ी की छड़ियों जैसी चीजों से अभ्यास किया जाता है.</li>
<li><strong>अंगथारी:</strong> इस चरण में धातु के तेज हथियारों का उपयोग कर अभ्यास किया जाता है, जो भय पर विजय पाने के बाद आता है.</li>
<li><strong>वेरुमकाई:</strong> इसमें बिना किसी हथियार के, यानी सिर्फ हाथों और शरीर से युद्ध के तरीके सिखाए जाते हैं, साथ ही हमलों की रणनीति पर ध्यान दिया जाता है.</li>
</ul>
<p>यह कला न सिर्फ शारीरिक ताकत बढ़ाती है, बल्कि मानसिक संतुलन और आत्म-नियंत्रण भी सिखाती है।</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है मार्शल आर्ट</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मार्शल आर्ट्स एक पारंपरिक युद्ध प्रणाली है, जिसका अभ्यास शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक विकास और आत्मरक्षा जैसे अलग अलग उदेश्यों के लिए किया जाता है. इसमें विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि हाथों, पैरों, घुटनों, कोहनी, और शरीर के अन्य हिस्सों से हमला करना, बचाव करना, और संतुलन बनाए रखना. मार्शल आर्ट्स को अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में विभिन्न रूपों में विकसित किया गया है, जैसे कराटे, कुंगफू, जूडो, ताइक्वांडो, और कलारीपयट्टू. यह न केवल शारीरिक फिटनेस बढ़ाता है, बल्कि आत्मविश्वास, अनुशासन, और मानसिक मजबूती भी सिखाता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आजकल क्यों हो रहा है अनदेखा?</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>1. प्रतिस्पर्धा की कमी और व्यावसायिकता का अभाव-</strong> कलारीपयट्टू का इतिहास बहुत ही समृद्ध है, लेकिन आज के दौर में इस कला का व्यावसायिक स्तर पर प्रचार और प्रसार उतना नहीं हो पा रहा है. इसका मुख्य कारण यह है कि इसकी पारंपरिक शैली में प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण की कमी है. प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टिकोण का मतलब है कि खेल में चुनौती और मुकाबला हो, ताकि लोग एक दूसरे से बेहतर करने की कोशिश करें. जबकि अन्य मार्शल आर्ट्स जैसे कराटे, जूडो और कुंग फू में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है, कलारीपयट्टू में यह व्यवस्थाएं नहीं हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">समय के साथ, कलारीपयट्टू के प्रशिक्षकों ने इस कला को एक प्रदर्शन कला के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे इसे प्रतिस्पर्धात्मक रूप में विकसित करने का मौका नहीं मिल पाया. इसकी कमी को महसूस करते हुए, भारतीय ओलंपिक संघ ने इसे 38वें राष्ट्रीय खेलों में प्रदर्शन खेल के रूप में शामिल किया है, जो कि कलारीपयट्टू के समर्थकों के लिए एक बड़ी निराशा का कारण बना है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>2. आधुनिकता के प्रभाव में एक प्राचीन कला का संघर्ष-</strong> आजकल की पीढ़ी ज्यादा डिजिटल और आधुनिक खेलों की ओर आकर्षित हो रही है. क्रिकेट, फुटबॉल, और हॉकी जैसे टीम खेलों की लोकप्रियता के सामने व्यक्तिगत मार्शल आर्ट्स की पारंपरिक विधाएं हाशिये पर जा रही हैं. खासकर युवा पीढ़ी को लगता है कि मार्शल आर्ट्स का अभ्यास केवल आत्म रक्षा के लिए करना चाहिए, जबकि कलारीपयट्टू एक गहरी और आत्म-निर्माण की प्रक्रिया है, जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर प्रशिक्षण देती है.</p>
<p style="text-align: justify;">आधुनिकता के इस दौर में, जहां व्यक्ति अपनी दैनिक जीवनशैली को आसान और सुविधाजनक बनाने की कोशिश करता है, पारंपरिक कलाएं और शिल्प धीरे-धीरे अप्रचलित हो रहे हैं. कलारीपयट्टू जैसे प्राचीन कला रूपों को सम्मान देना और इन्हें बनाए रखना अब मुश्किल होता जा रहा है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>3. संसाधनों और प्रशिक्षकों की कमी-</strong> कलारीपयट्टू की शिक्षा बहुत ही खास तरह की होती है और इसके लिए प्रशिक्षकों की जरूरत होती है, जो इस कला को सही तरीके से सिखा सकें. लेकिन इसके लिए जरूरी संसाधन और प्रशिक्षक आजकल कम मिलते हैं. केरल में तो कुछ स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र इस कला को सिखाते हैं, लेकिन अन्य राज्यों में यह अभ्यास उतना लोकप्रिय नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;">इसके अलावा, कलारीपयट्टू को सही तरीके से सिखाने के लिए न सिर्फ एक लंबे समय तक निरंतरता की जरूरत होती है, बल्कि बिना धैर्य और समर्पण के इस कला को सीख पाना काफी मुश्किल है. आजकल के युवा जीवनशैली में ऐसे प्रशिक्षण के लिए समय और धैर्य का अभाव है, जिससे यह कला पीछे रह जाती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>4. सतही समझ और प्रचार की कमी-</strong> कलारीपयट्टू को लेकर समाज में सही समझ का अभाव है. इसे केवल एक युद्धकला समझा जाता है, जबकि यह एक जीवनशैली का हिस्सा है. यह शारीरिक शक्ति के साथ-साथ मानसिक और आत्मिक शुद्धता की भी शिक्षा देता है. लेकिन इसके प्रचार के मामले में कमी है. मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों की ओर से कलारीपयट्टू के बारे में बहुत कम जानकारी दी जाती है.</p>
<p style="text-align: justify;">आजकल के प्रतिस्पर्धी खेलों में, जहां सोशल मीडिया और बड़ी टीमें एक अहम भूमिका निभाती हैं, कलारीपयट्टू जैसे पारंपरिक खेलों को उसी तरह के प्रचार का अवसर नहीं मिल पाता. इस वजह से, युवाओं में इसके प्रति रुचि का अभाव रहता है.</p>
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<p style="text-align: justify;"><strong>कलारीपयट्टू के भविष्य की दिशा</strong></p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि आजकल कलारीपयट्टू को उतनी पहचान नहीं मिल रही है, जितनी इसकी जरूरत है, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जो इसके भविष्य को रोशन कर सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">पहला, हाल ही में कलारीपयट्टू को 37वें राष्ट्रीय खेलों में प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में शामिल किया गया था. ये एक अच्छा कदम था, और उम्मीद जताई जा रही थी कि भविष्य में इसे और ज्यादा प्रतिस्पर्धी रूप में रखा जाएगा. हालांकि, 38वें राष्ट्रीय खेलों में इसे सिर्फ प्रदर्शन खेल के तौर पर रखा गया, लेकिन ये भी एक संकेत है कि इस खेल को लेकर भविष्य में कुछ सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">दूसरा, अगर इस कला को सही तरीके से प्रमोट किया जाए और इसकी खासियतों को लोगों तक पहुंचाया जाए, तो ये फिर से अपनी खोई हुई पहचान पा सकता है. खासकर युवा पीढ़ी को इसके शारीरिक और मानसिक फायदों के बारे में और अच्छे से बताया जा सकता है, जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ सकती है.</p>
<p style="text-align: justify;">तीसरा, अगर कलारीपयट्टू को एक अंतरराष्ट्रीय खेल के रूप में पेश किया जाए, तो इसकी वैश्विक पहचान बन सकती है. ओलंपिक स्तर पर अगर इसे मान्यता मिलती है, तो ये इसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी और इससे दुनिया भर में इसकी अहमियत बढ़ेगी.</p>
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कलारीपयट्टू, केरल के इस मार्शल आर्ट को दुनिया क्यों कर रही है अनदेखा?

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