जेपी की वो चाय पार्टी, जिसके बाद कांग्रेस में मच गया बवाल… और इमरजेंसी में गिरफ्तार कर लिए गए

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<p style="text-align: justify;">चंद्रशेखर… वो नाम जिसे सुनते ही अनायास ही एक ऐसे शख्स की छवि उभरकर आती है जिसके चेहरे पर हल्की सफेद दाढ़ी है और सफेद धोती-कुर्ता पहनता है. ये ‘युवा तुर्क’ दिल्ली के लुटियंस जोन में किसी के भी सामने गलत को गलत कहने की माद्दा रखता है फिर चाहे सामने इंदिरा गांधी जैसी ‘कठोर’ नेता ही क्यों ना हों. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि साफ और स्पष्ट जवाब देने की वजह से ही उन्हें कांग्रेस में रहते हुए भी आपातकाल के दौरान जेल में जाना पड़ा. हालांकि खुद चंद्रशेखर ने भी अपनी आत्मकथा में एक और वजह बताई है. पहले ये जानते हैं कि चंद्रशेखर और इंदिरा गांधी की पहली मुलाकात कहां और कैसे हुई थी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>इंदिरा और चंद्रशेखर के बीच पहली मुलाकात&nbsp;</strong></p>
<p style="text-align: justify;">प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से निराश होने के बाद चंद्रशेखर कांग्रेस में शामिल हुए थे. वह अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उनकी इंदिरा गांधी से पहली मुलाकात गुजरात के महुआ क्षेत्र में एक सभा के दौरान हुई. चंद्रशेखर लिखते हैं, ‘उनसे (इंदिरा जी) से पहली मुलाकात उस सम्मेलन के मंच पर हुई. किसी ने कहा- ये चंद्रशेखर जी हैं. इंदिरा जी ने कहा- मैंने नाम तो बहुत सुन रखा था. इस पर मैंने कहा- मैंने भी आपका नाम बहुत सुन रखा था, अब तक मुलाकात का अवसर नहीं मिला.'</p>
<p style="text-align: justify;">चंद्रशेखर ने बताया कि गुरुपदस्वामी, इंद्रकुमार गुजराल, अशोक मेहता जैसे नेताओं के कहने पर उन्होंने इंदिरा गांधी से मुलाकात की थी. युवा तुर्क इंदिरा गांधी से पहली मुलाकात के बारे में लिखते हैं, ‘इंदिरा जी ने सवाल किया- चंद्रशेखर जी, क्या आप कांग्रेस को समाजवादी मानते हैं? &nbsp;मैंने कहा- मैं नहीं मानता कि कांग्रेस समाजवादी संस्था है, पर लोग ऐसा कहते हैं. उन्होंने पूछा कि फिर आप कांग्रेस में क्यों आए? तो मैंने पूछा कि क्या आप सही जवाब जानना चाहती हैं? हां, मैं यही चाहती हूं.'</p>
<p style="text-align: justify;">चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से कहा- ‘मैंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में 13 साल तक पूरी क्षमता और ईमानदारी से काम किया. दल को मैंने पूरी निष्ठा से समाजवाद के रास्ते पर ले जाने की कोशिश की, लेकिन काफी समय तक काम करने के बाद मुझे लगा कि वह संगठन ठिठक कर रह गया है. पार्टी कुंठित हो गई है, बढ़ती नहीं है. अब यहां कुछ होने वाला नहीं है. फिर मैंने सोचा कि कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है. इसी में चलकर देखें, कुछ करें.'</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>चंद्रशेखर का जवाब सुनकर हैरान रह गईं थीं इंदिरा गांधी!</strong></p>
<p style="text-align: justify;">इसके बाद इंदिरा गांधी ने चंद्रशेखर से पूछा- यहां आने के बाद आप क्या करना चाहते हैं? तो मैंने जवाब दिया- कांग्रेस को सोशलिस्ट बनाने की कोशिश करूंगा. इस पर उन्होंने पूछा कि अगर न बनी तो. इस पर मैंने कहा- इसे तोड़ने का प्रयास करूंगा क्योंकि यह जब तक टूटेगी नहीं तब तक देश में कोई नई राजनीति नहीं आएगी. पहले तो मैं प्रयास यही करूंगा कि यह समाजवादी बने, पर अगर नहीं बनी तो इसे तोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">चंद्रशेखर का जवाब सुनकर इंदिरा गांधी हैरान रह गईं. उन्होंने युवा तुर्क से पूछा कि पार्टी तोड़ने से क्या होगा? उन्होंने बताया कि कांग्रेस बरगद का पेड़ हो गई है. इसकी फैली छआंव में कोई दूसरा पौधा विकसित नहीं होगा. इस बरगद के नीचे कोई पौधा पनप नहीं सकता. इसलिए जब तक यह पार्टी नहीं टूटेगी, कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होगा. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">यह उस समय की बात है- जब इंदिरा गांधी पहली बार ही प्रधानमंत्री बनी थीं और संगठन पर उनकी ज्यादा पकड़ नहीं थी. जब 1969 का राष्ट्रपति चुनाव आया और कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को आधिकारिक प्रत्याशी घोषित किया तो चंद्रशेखर खुलकर रेड्डी के विरोध में उतर आए और उन्होंने इंदिरा गांधी को भी क्लीयर कर दिया कि उन्हें नीलम संजीव रेड्डी का समर्थन नहीं करना है, जिसके बाद वीवी गिरि को इंदिरा गांधी ने चुनाव में उतारा और फिर वह देश के राष्ट्रपति बने.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>जेपी की चाय पार्टी के बाद मचा हंगामा</strong></p>
<p style="text-align: justify;">चंद्रशेखर ने बिहार आंदोलन का नेतृत्व कर रहे ‘लोकनायक’ जयप्रकाश नारायण से चंद्रशेखर के अच्छे रिश्ते थे. जब आंदोलन शुरू हुआ था तो चंद्रशेखर ही थे जो इंदिरा गांधी और जेपी के बीच उनके जरिए ही बातचीत होती थी. चंद्रशेखर ने दिल्ली आवास पर जेपी को चाय पर बुलाया था. चंद्रशेखर की इस चाय पार्टी को लेकर काफी हंगामा मचा था. चंद्रशेखर ने अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसे जिया’ में लिखा है कि कुछ लोगों का कहना है कि इसी चाय पार्टी के बाद इंदिरा जी और मेरे बीच की दूरी बढ़ गई थी, लेकिन उन्होंने कभी मुझसे इस बारे में बात नहीं की. जेपी की इस चाय पार्टी में संसद के 5-7 सदस्यों के अलावा करीब 100 लोग शामिल हुए थे.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया था कि तत्कालीन गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित ने उन सभी सांसदों को एक-एक कर पूछताछ के लिए बुलाया था कि वो लोग चंद्रशेखर के घर पर आयोजित चाय पार्टी में शामिल होने के लिए क्यों गए थे. हालांकि उन सांसदों ने कहा था कि उन्हें मालूम नहीं था कि जेपी को यहां आमंत्रित किया गया था. इस चाय पार्टी में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे की पत्नी माया रे भी शामिल हुईं थीं, जोकि दरवाजे के चौखट पर बैठी थीं, जिसको लेकर अखबारों में काफी खबरें छपी थीं. &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">इस पार्टी के बाद कांग्रेस नेताओं ने चंद्रशेखर की खूब आलोचना की. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में जब कांग्रेस का कैंप लगा था, उसमें भी दो दिनों तक यही मुद्दा छाया रहा. हालांकि चंद्रेशखर ने लिखा है कि इंदिरा जी ने उनसे कभी इस बारे में कोई सवाल नहीं पूछा.&nbsp;<br />&nbsp; &nbsp;<br /><strong>गिरफ्तारी से पहले सिनेमा हॉल में मूवी देखने गए थे चंद्रशेखर&nbsp;</strong></p>
<p style="text-align: justify;">25 जून की रात देश में आपातकाल लागू हुआ था, उस दिन रात में चंद्रशेखर नेपाल से आए अपने दोस्त और पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला और शैलजा आचार्य के साथ दिल्ली के रीगल सिनेमा में ‘शोले’ मूवी देखने गए थे. वह लिखते हैं, ‘जब मैं घर आया तो मुझे दयानंद सहाय ने बताया कि आज दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने कमाल का भाषण दिया. मैंने भाषण का सारांश सुनते ही कहा कि ये आखिरी भाषण है. हम रात में 12 बजे सोए और करीब तीन बजे हमारे पास फोन आया कि पुलिस जेपी को गिरफ्तार करने के लिए गांधी शांति प्रतिष्ठान पहुंच गई है.'</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने लिखा कि हम लोग तुरंत टैक्सी लेकर गांधी शांति प्रतिष्ठान पहुंचे. वहां जेपी को गाड़ी में बैठाकर पुलिस पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने पहुंची तो हम भी पीछे-पीछे पहुंच गए. इसी दौरान एक अधिकारी ने बताया कि आपके लिए भी गिरफ्तारी का वारंट है. इसके बाद मैंने जेपी से कहा कि आप जाइए, मुझे दूसरी जगह जाना है. उन्होंने पूछा कि आप भी गिरफ्तार हैं तो मैंने कहा-हां. इसके बाद उन्होंने कहा- ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि.'</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>जेल से छूटने के बाद इंदिरा गांधी से हुई थी मुलाकात&nbsp;</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जब 1977 के चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी ने सरकार बनाई तो चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से मुलाकात की. चंद्रशेखर लिखते हैं, ‘जब हम लोग मिले तो थोड़ी देर चुप्पी छाई रही. मैंने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा- इंदिरा जी, आप कैसी हैं तो उन्होंने कहा कि मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं- मैंने कहा कि मैं भी ठीक हूं. मैंने उनसे पूछा कि आप इस हद तक कैसे चली गईं. उनका जवाब था- चंद्रशेखर जी, लोगों ने मुझे गलतफहमी में डाल दिया. मुझे गलत सलाह दी गई थी. इसी दौरान इंदिरा ने चंद्रशेखर से कहा कि अब उनकी सिक्योरिटी और आवास भी छीन लिया जाएगा. इस पर चंद्रशेखर ने पूछा- आपको मकान नहीं कौन नहीं देगा? इंदिरा जी ने कहा- मोरारजी भाई नहीं देंगे. मैंने कहा- वो ऐसा नहीं करेंगे.</p>

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