India-Pakistan Ceasefire: डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हो चुका है. दोनों ही देश इस जंग के दौरान हुए नुक़सान का आंकलन करने में जुटे हुए हैं. पाकिस्तानी फायरिंग में शहीद हुए सेना के जवानों और अधिकारियों के शव उनके घरों को भेजा जा रहा है.
इस दौरान देश के तमाम लोगों को सिर्फ एक नाम याद आ रहा है. इंदिरा गांधी का नाम, जिन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति की हर बात को इनकार करते हुए पाकिस्तान से ऐसी लड़ाई लड़ी जिसमें पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और पूरी दुनिया का नक्शा ही बदल गया.
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान न तो भारत ने किया और न ही पाकिस्तान ने, बल्कि पूरी दुनिया के सामने इस सीजफायर का ऐलान किया अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने. सीजफायर के ऐलान के कुछ ही देर के बाद ट्रंप ने फिर से कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कर दी, जबकि भारत का हमेशा से क्लियर स्टैंड है कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है और इसमें किसी भी दूसरे देश को दख़ल देने का कोई हक नहीं है.
यहीं पर एंट्री होती है इंदिरा गांधी की, जिन्होंने अमेरिका की हर एक बात को, हर एक नसीहत को, हर एक धमकी को नजरंदाज किया और वो फैसले किए जो सिर्फ भारत के हक में थे. ये बात है साल 1971 की. तब आज के बांग्लादेश और तब के पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना कत्ल-ए-आम कर रही थी. वहां के लोग भागकर भारत में शरण ले रहे थे.
ऐसे में नवंबर 1971 में इंदिरा गांधी पहुंची अमेरिका, ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से बात की जा सके. मकसद ये था कि अगर बात अमेरिका में होगी तो पूरी दुनिया उसे सुनेगी. लेकिन निक्सन इंदिरा को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे. लिहाजा निक्सन ने इंदिरा गांधी को करीब 45 मिनट तक इंतजार करवाया और जब मिले भी तो पूर्वी पाकिस्तान पर कोई बात नहीं हुई.
इंदिरा गांधी वापस लौंटी, पाकिस्तान से जंग हुई और जंग तब खत्म हुई जब बांग्लादेश नया देश बना और पाकिस्तान के 91 हज़ार सिपाहियों ने सरेंडर कर दिया. इस जंग के दौरान अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था, लेकिन इंदिरा ने अमेरिका की कोई परवाह नहीं की, क्योंकि तब रूस भारत के साथ था. यही वजह है कि अभी जब सीजफायर हुआ है तो कांग्रेस ने एक्स पर इंदिरा गांधी को याद किया है.
वहीं कांग्रेस नेता शशि थरूर का मानना है कि 1971 और 2025 में बड़ा अंतर है.
#WATCH | Delhi | “1971 was a great achievement, Indira Gandhi rewrote the map of the subcontinent, but the circumstances were different. Bangladesh was fighting a moral cause, and liberating Bangladesh was a clear objective. Just keeping on firing shells at Pakistan is not a… pic.twitter.com/Tr3jWas9Ez
— ANI (@ANI) May 11, 2025
शशि थरूर की बात से न तो फिलवक्त कांग्रेस को इत्तेफाक है और न ही सोशल मीडिया पर बैठ तमाम लोगों को, जिन्हें नेताओं के भाषणों में पाकिस्तान टूटता हुआ दिख रहा था. कभी बलूचिस्तान को अलग देश बनाने और पीओके को वापस लेने का जो सपना सोशल मीडिया पर बैठे लोग देख रहे थे, वो लोग अभी थोड़े मायूस हैं और इंदिरा गांधी को याद कर रहे हैं.
वैसे फैसले जनता की मायूसी को देखकर नहीं लिए जाते. फैसले हालात देखकर लिए जाते हैं और हालात क्या हो सकते थे, ये भी डोनल्ड ट्रंप ही बता रहे हैं जो कह रहे हैं कि अगर ये जंग चलती तो लाखों लोग मारे जाते तो जंग रुक गई है. कब तक रुकेगी कोई नहीं जानता, लेकिन लोग इतना जरूर जानते हैं कि जब-जब ऐसे हालात बनेंगे, इंदिरा गांधी को हमेशा याद किया जाएगा.
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