सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 नवंबर, 2024) को कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के नियमों में तब तक बीच में बदलाव नहीं किया जा सकता जब तक कि ऐसा निर्धारित न किया गया हो.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन जारी करने से शुरू होती है और रिक्तियों को भरने के साथ समाप्त होती है.
पीठ ने कहा, ‘भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित सूची में दर्ज पात्रता मानदंड को भर्ती प्रक्रिया के बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें या विज्ञापन मौजूदा नियमों के विपरीत न हो.’
पीठ में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. उन्होंने सर्वसम्मति से कहा कि यदि मौजूदा नियमों या विज्ञापन के तहत मानदंडों में बदलाव की अनुमति है तो इन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप होना चाहिए, मनमाना नहीं.
पीठ ने कहा कि वैधानिक शक्ति वाले मौजूदा नियम प्रक्रिया और पात्रता दोनों के संदर्भ में भर्ती निकायों पर बाध्यकारी हैं. पीठ ने कहा, ‘चयन सूची में स्थान मिलने से नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिल जाता. राज्य या उसकी संस्थाएं वास्तविक कारणों से रिक्त पद को न भरने का विकल्प चुन सकती हैं.’ हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि रिक्तियां मौजूद हैं, तो राज्य या उसकी संस्थाएं मनमाने ढंग से उन व्यक्तियों को नियुक्ति देने से इनकार नहीं कर सकती जो चयन सूची में विचाराधीन हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों के लिए नियुक्ति मानदंड से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर दिया, जिसे मार्च 2013 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उसे सौंपा था.
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1965 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि यह एक अच्छा सिद्धांत है कि जहां तक पात्रता मानदंडों का सवाल है, राज्य या उसके तंत्रों को ‘खेल के नियमों’ के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
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