सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वी रामासुब्रमण्यम बने NHRC के अध्यक्ष, प्रियांक कानूनगो भी बने सदस्य

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Ramasubramaniam became NHRC Chairman: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के नए अध्यक्ष होंगे. राष्ट्रपति ने उन्हें नियुक्त कर दिया है. सितंबर 2019 से जून 2023 के बीच लगभग 4 साल तक जस्टिस रामासुब्रमण्यम सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. उससे पहले वह हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे. वह मद्रास और तेलंगाना हाई कोर्ट में भी जज रहे. जस्टिस रामासुब्रमण्यम को अध्यक्ष नियुक्त करने के साथ ही राष्ट्रपति ने झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस बिद्युत रंजन सारंगी और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो को NHRC का सदस्य नियुक्त किया है.
30 जून 1958 को तमिलनाडु के मन्नारगुडी में जन्मे जस्टिस रामासुब्रमण्यम का NHRC अध्यक्ष के तौर पर चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने 18 दिसंबर को हुई बैठक में किया था. इस चयन समिति में गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला, राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा के नेता विपक्ष राहुल गांधी भी शामिल हैं.
1 जून को जस्टिस अरुण मिश्रा का कार्यकाल पूरा हुआ था
1 जून 2024 को NHRC अध्यक्ष के तौर पर जस्टिस अरुण मिश्रा का कार्यकाल पूरा हुआ था. तब से यह पद खाली था. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस रामासुब्रमण्यम कई बड़े मामलों की सुनवाई और फैसलों का हिस्सा रहे. जस्टिस रामासुब्रमण्यम 2016 में हुई नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच के सदस्य थे. 2 जनवरी 2023 को उन्होंने भी नोटबंदी को सही ठहराने वाले फैसले से सहमति जताई.
‘मंत्रियों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है’
26 मार्च 2023 को जस्टिस रामासुब्रमण्यम ने फैसला दिया कि दूसरे नागरिकों की तरह मंत्रियों को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. उनके निजी बयानों को सरकार का बयान कह कर उनके बोलने पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. अगर मंत्री के बयान से किसी मुकदमे पर गलत असर पड़ा हो, तब जरूर कानून का सहारा लिया जा सकता है.
2021 में केंद्र को किया था नोटिस जारी
इसके अलावा जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम तत्कालीन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े और जस्टिस ए एस बोपन्ना के साथ उस बेंच में शामिल थे, जिसने 2021 में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय को नोटिस जारी किया था.
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