Delhi Assembly Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए मुस्लिम बहुल सीटों पर अपना प्रभाव बनाए रखा. 70 विधानसभा सीटों में से छह मुस्लिम बहुल सीटों में से पांच पर आप के उम्मीदवार विजयी रहे. हालांकि मुस्तफाबाद सीट पर इस बार आप को हार का सामना करना पड़ा जहां पिछली बार हाजी युनुस ने जीत दर्ज की थी.
दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटें- सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला और बाबरपुर मानी जाती हैं. चुनाव से पहले आशंका थी कि 2020 के दंगे और तब्लीगी जमात प्रकरण पर पार्टी की निष्क्रियता से मुस्लिम मतदाता नाराज हो सकते हैं, लेकिन नतीजों से स्पष्ट हुआ कि मुस्लिम समुदाय ने इस बार भी ‘आप’ को प्राथमिकता दी.
मुस्लिम विधायकों की संख्या में मामूली गिरावट
इस बार आप से चार मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे जबकि 2020 में ये संख्या पांच थी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में उम्मीदवार की भूमिका अहम रही क्योंकि कई नेताओं के दल बदलने की वजह से मतदाताओं ने पार्टी की बजाय व्यक्ति को ध्यान में रखकर मतदान किया.
मुस्लिम वोटरों की प्राथमिकता मजबूत प्रत्याशी
विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में मुस्लिम मतदाता भाजपा को हराने के लिए वोट नहीं करते बल्कि उनकी प्राथमिकता मजबूत उम्मीदवार होते हैं. आम आदमी पार्टी ने जिन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया वहां पुराने उम्मीदवारों को दोबारा मौका मिला. हालांकि मुस्तफाबाद में मुस्लिम वोटों में बिखराव देखा गया.
एआईएमआईएम के उम्मीदवारों को नहीं मिला समर्थन
हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने इस बार ओखला और मुस्तफाबाद सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए. ओखला से शिफा-उर-रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन मैदान में थे जो दंगों से जुड़े मामलों में आरोपी हैं और जेल में बंद हैं.
मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस को बढ़त
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा, लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर उसके वोट प्रतिशत में मामूली बढ़त देखी गई. ओखला, बल्लीमारान और मटिया महल में कांग्रेस उम्मीदवारों को पिछले चुनाव की तुलना में ज्यादा वोट मिले, लेकिन वे जीत हासिल नहीं कर सके.
पुराने उम्मीदवारों की मजबूत पकड़ से आप को मिला फायदा
दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर आप की सफलता की मुख्य वजह पार्टी के पुराने उम्मीदवारों की पकड़ और स्थानीय स्तर पर उनकी सक्रियता रही. हालांकि ओखला में अमानतुल्लाह खान की जीत का अंतर पिछले चुनाव की तुलना में काफी कम हुआ. मतदाताओं का रुझान ये दिखाता है कि वे अपने प्रतिनिधियों से क्षेत्रीय विकास की उम्मीद रखते हैं और उसी आधार पर अपना समर्थन देते हैं.
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