चीफ जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई के महाराष्ट्र दौरे में प्रोटोकॉल का पालन न होने के खिलाफ दायर याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने याचिका को प्रचार के लिए दाखिल बताया. जजों ने याचिकाकर्ता को 7000 रुपए हर्जाना भरने को भी कहा. कोर्ट ने यह आदेश इस आधार पर दिया कि याचिकाकर्ता वकील 7 साल से वकालत कर रहा है.
क्या है मामला?रविवार, 18 मई को चीफ जस्टिस मुंबई में बाबा साहब अंबेडकर से जुड़ी चैत्यभूमि में श्रद्धांजलि अर्पित करने गए थे. मूल रूप से महाराष्ट्र के ही रहने वाले चीफ जस्टिस का पद ग्रहण करने के बाद अपने गृह राज्य का पहला दौरा था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के लिए तय आधिकारिक शिष्टाचार के आला अधिकारियों को उनकी आगवानी करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
कार्यक्रम के दौरान चीफ जस्टिस ने महाराष्ट्र के आला अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा था कि यह सम्मान किसी व्यक्ति विशेष को नहीं, उससे जुड़ी संवैधानिक संस्था को दिया जाता है. इसके बाद महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, डीजीपी और मुंबई पुलिस कमिश्नर उनके कार्यक्रम में पहुंचे. उन्होंने अपनी गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी. चीफ जस्टिस ने इसे स्वीकार कर लिया.
CJI ने मामला खत्म करने का अनुरोध किया था20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा था कि चीफ जस्टिस ने इसे एक छोटा मामला बताया है. साथ ही, चीफ जस्टिस ने लोगों से इस घटना को लेकर चर्चा बंद करने का अनुरोध किया है. इसके बावजूद यह याचिका दाखिल हो गई. इसमें महाराष्ट्र के अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग की गई थी.
याचिका पर भड़के CJIशैलेंद्र मणि त्रिपाठी नाम के वकील की यह याचिका शुक्रवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने ही सुनवाई के लिए लगी. चीफ जस्टिस ने याचिका पर कड़ी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि यह याचिका सिर्फ प्रचार के लिए दाखिल की गई है. इस तरह की याचिका को सुना जाना चीफ जस्टिस ऑफिस की भी बदनामी की वजह बनेगा. बेंच ने याचिकाकर्ता से भारी हर्जाना वसूलने की भी बात कही.
याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील प्रदीप यादव ने जजों से क्षमा मांगी. उन्होंने याचिका वापस लेने की बात कही. इस पर चीफ जस्टिस ने कोर्ट में मौजूद याचिकाकर्ता से पूछा कि वह कितने साल से वकालत कर रहे हैं. याचिकाकर्ता के जवाब के बाद कोर्ट ने उनसे बतौर हर्जाना सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस सेल में 7000 रुपए जमा करवाने को कहा. बेंच ने याचिकाकर्ता को यह भी समझाया कि वह भविष्य में ऐसी व्यर्थ याचिका दाखिल न करे.
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