Centre for Law and Policy Research Report: भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन शीर्ष पदों तक पहुंचने में उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च (CLPR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में महिला जज औसतन पुरुष जजों की तुलना में एक साल कम सेवा करती हैं. इस अंतर के कारण न्यायपालिका में महिलाओं को सीनियर पोसिशन्स तक पहुंचने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति और सेवा अवधि पर रिपोर्ट के निष्कर्षCLPR की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उच्च न्यायपालिका में लैंगिक अंतर को संबोधित करना” न्यायिक नियुक्तियों में प्रणालीगत भेदभाव और न्यायपालिका में महिला नेतृत्व पर इसके प्रभाव को उजागर करती है. सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की औसत आयु पुरुषों के लिए 59.5 वर्ष और महिलाओं के लिए 60.5 वर्ष पाई गई. इस अंतर के कारण, महिला जजों की औसत सेवा अवधि 4.4 वर्ष होती है, जबकि पुरुष जज औसतन 5.4 वर्ष तक सेवा देते हैं.
रिपोर्ट की प्रमुख शोधकर्ता नित्या रिया राजशेखर के अनुसार, “सुप्रीम कोर्ट में औसत कार्यकाल लगभग पांच वर्ष का होता है, ऐसे में एक वर्ष का अंतर बहुत महत्वपूर्ण होता है.” इस वजह से महिला जज सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम या वरिष्ठतम बेंच तक कम ही पहुंच पाती हैं.
भारत को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिलने में हो रही देरी ?बता दें कि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने वाली हैं, लेकिन उनका कार्यकाल मात्र 36 दिनों का होगा. यह सवाल उठता है कि उन्हें पहले क्यों नहीं नियुक्त किया गया?
उच्च न्यायालयों में महिला जजों की स्थितिउच्च न्यायालयों में भी समान असमानताएं देखी गईं.उच्च न्यायालय में नियुक्ति की औसत आयु पुरुषों के लिए 51.8 वर्ष और महिलाओं के लिए 53.1 वर्ष है.कई उच्च न्यायालयों में महिला जजों की नियुक्ति पुरुषों की तुलना में तीन साल अधिक उम्र में की जाती है.देश के 25 उच्च न्यायालयों में से 15 में कभी भी कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं रही.CLPR की रिपोर्ट बताती है कि जुडिशल सिस्टम में महिला जजों को समान अवसर न मिलने का प्रमुख कारण उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की प्रक्रिया है.
न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमीनेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की ओर से उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को प्राथमिकता दी जाती है. 1993 के बाद 86% नियुक्तियां उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों में से हुई हैं. इससे निचली न्यायपालिका के योग्य उम्मीदवारों, विशेष रूप से महिलाओं, के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं.
कॉलेजियम की ओर से नियुक्त 242 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से केवल 12 महिलाएं हैं. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के प्रोफेसर रंजिन त्रिपाठी ने कहा, “न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता का अभाव है, जिससे सुधार मुश्किल हो रहे हैं.” यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन से कॉलेजियम सदस्यों ने किस न्यायाधीश को नियुक्त किया. सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, बल्कि हाई कोर्ट स्तर पर भी यह डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए.
महिला जजों के लिए जुडिशल सिस्टम में सुधार के सुझावरिपोर्ट में कई सुझाव दिए गए हैं ताकि महिला जजों को न्यायपालिका में समान अवसर मिलें. न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में पारदर्शिता: कॉलेजियम के निर्णय सार्वजनिक किए जाएं.महिला जजों की शीघ्र नियुक्ति: योग्य महिला न्यायाधीशों को समान अवसर और समय पर नियुक्त किया जाए.लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देना: उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में अधिक महिला जजों की नियुक्ति हो. न्यायपालिका में कार्यकाल की समानता: महिलाओं को समान कार्यकाल मिले ताकि वे शीर्ष पदों तक पहुंच सकें.
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