Suvendu Adhikari Claim: पश्चिम बंगाल की राजनीति में उस समय उथल पुथल मच गई जब बीजेपी नेता और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि दिल्ली में जो अरविंद केजरीवाल ने किया, उसे वो भी फॉलो करेंगे. दरअसल वो यहां पर किसी मोहल्ला क्लीनिक या फिर स्कूल के मॉडल का जिक्र नहीं कर रहे थे बल्कि विजेंद्र गुप्ता को दिल्ली विधानसभा से बाहर किए जाने को लेकर अपनी बात कह रहे थे.
सुवेंदु अधिकारी का दावा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सरकार बनेगी और टीएमसी के मुस्लिम विधायकों को बाहर कर दिया जाएगा. 2021 के चुनाव में नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने के बाद चर्चा में आए सुवेंदु अधिकारी लगातार मुस्लिम विरोधी बयानबाजी कर रहे हैं. इस बीच, कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक विक्टर ने विपक्ष के नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है.
सुवेंदु अधिकारी की चमकी राजनीति
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सुवेंदु का ये बयान पार्टी के नेताओं को एकजुट रखने का प्रयास है क्योंकि अफवाहें उड़ रही हैं कि लगभग आठ बीजेपी विधायक दलबदल कर सकते हैं. 2021 में बीजेपी तीन से बढ़कर रिकॉर्ड 77 सीटों पर पहुंच गई थी, जिसका मुख्य कारण वामपंथियों और कांग्रेस से वोटों में भारी बदलाव था. इसने पार्टी को मुख्य विपक्ष की स्थिति में पहुंचा दिया, जिसमें सुवेंदु ने बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उम्मीद के मुताबिक, उन्हें विपक्ष का नेता चुना गया, जिससे वे बंगाल बीजेपी का सबसे प्रमुख चेहरा बन गए, धीरे-धीरे दिलीप घोष और सुकांत मजूमदार जैसे दिग्गजों पर हावी हो गए.
हालांकि, बाद के चुनावी नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं रहे. विधानसभा में इसकी संख्या लगातार कम होती गई, अनौपचारिक गिनती करीब 65 रह गई. बंगाल में पार्टी की लोकसभा सीटें 18 से घटकर 12 रह गईं.
लेफ्ट के लिए अस्तिव की लड़ाई
बंगाल पर तीन दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाले वामपंथियों के लिए यह संकट अस्तित्व का है. 2016 में इसका वोट शेयर 26% से गिरकर 2021 में सिर्फ़ 5% रह गया. 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन फीका रहा. दोनों ही पार्टियां बंगाल के बदलते राजनीतिक माहौल को समझने में विफल रही हैं. यह उन दिनों से बिल्कुल अलग है जब सिर्फ़ दृढ़ विचारधारा ही मतदान पैटर्न तय करती थी.
वामपंथियों के पास प्रमुख जननेताओं की कमी ने उनके पतन को तेज कर दिया, जबकि कांग्रेस के साथ उनके गठबंधन ने सीमित वोट हस्तांतरण क्षमताओं के कारण कम से कम चुनावी लाभ दिया है. फिर भी, वामपंथियों की ओर से समर्थित आरजी कर विरोध प्रदर्शनों ने बंगाल के बुद्धिजीवियों के बीच उनके बारे में कुछ समय के लिए दिलचस्पी जगाई तो है लेकिन ये वोटों में तब्दील होगा कि नहीं कहा नहीं जा सकता.
लेकिन सुवेंदु के नए सिरे से की गई कोशिशों से वामपंथियों की उम्मीदों पर पानी फेर उतर सकती हैं. आश्चर्य की बात नहीं है कि वामपंथियों ने इस मुद्दे पर सतर्क रुख अपनाया है और टीएमसी और बीजेपी दोनों की आलोचना की है.
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