बांग्लादेश ने बॉर्डर पर तैनात किया तुर्की वाला बायरकटर टीबी2 ड्रोन! क्या भारत इसके लिए तैयार है

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Bayraktar TB2 drone: बांग्लादेश ने बॉर्डर पर तुर्की में बने बायरकटर टीबी2 ड्रोन को तैनात किया है. ये वही ड्रोन है जब अजरबैजान ने इनका इस्तेमाल करके अर्मेनियाई सेना को खत्म कर दिया था. 2020 के इस युद्ध में अजरबैजान की छोटी सी सेना ने अर्मेनिया को हरा दिया दिया. वो भी तब जब उसके पास रूसी मूल के टी72 टैंकों, मिसाइलों और रॉकेटों सहित अन्य हथियारों से लैस एक बड़ी और मजबूत सेना थी.
इंडिया टुडे टीवी ने सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच,  बांग्लादेश ने सीमा पर बायरकटर टीबी2 ड्रोन तैनात किए हैं. इन ड्रोनों का संचालन बांग्लादेशी सेना खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही मिशनों के लिए करती है. बांग्लादेश ने दावा किया है कि यह तैनाती रक्षा उद्देश्यों के लिए है, लेकिन भारत ने संवेदनशील क्षेत्र में ऐसे उन्नत ड्रोनों की तैनाती के रणनीतिक महत्व को नजरअंदाज नहीं किया है.
तुर्की वाले ड्रोन की ताकत समझिए
तुर्की के बनाए बायरकटर टीबी2 ड्रोन का वजन अमेरिका के एमक्यू-9 रीपर के वजन का लगभग आठवां हिस्सा है और इसकी अधिकतम गति लगभग 230 किमी प्रति घंटा है. ये ड्रोन अपनी एमएएम (तुर्की में स्मार्ट माइक्रो म्यूनिशन) लेजर-गाइडेड मिसाइलों से आधुनिक टैंकों को नष्ट कर सकते हैं. टीबी2 ड्रोन एक उड़ान में चार ऐसे एमएएम तक ले जा सकते हैं.
बायरकटर टीबी2 यूएवी अधिकतम 150 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकता है. मानक पेलोड विन्यास में एक इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल कैमरा मॉड्यूल, एक इन्फ्रारेड कैमरा मॉड्यूल, एक लेजर डेसिग्नेटर, एक लेजर रेंज फाइंडर और एक लेजर पॉइंटर शामिल हैं. 24 घंटे से अधिक की उड़ान अवधि और लगभग 300 किलोमीटर की परिचालन अवधि के साथ, टीबी2 ड्रोन लक्ष्य को नष्ट करने के लिए दुश्मन के इलाके में काफी अंदर तक प्रवेश कर सकते हैं.
इसके अलावा, इनमें से कुछ ड्रोन अपने लक्ष्य के पास पहुंचते समय विचलित करने वाली ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जो मनोवैज्ञानिक रूप से परेशान करने वाली हो सकती है. बायरकटर टीबी2 किस प्रकार युद्ध में पासा पलट सकता है, यह नोगोर्नो-काराबाख युद्ध में भी देखने को मिला था.
भारत की क्या है तैयारी?
तुर्की ड्रोन की तैनाती की रिपोर्ट के बाद सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अपनी निगरानी तेज कर दी है. सूत्रों ने इंडिया टुडे टीवी को बताया कि भारतीय सशस्त्र बलों के पास हेरॉन टीपी जैसे ड्रोन तैनात करने और संवेदनशील क्षेत्रों में ड्रोन-विरोधी अभियान तेज करने का विकल्प भी है.
भारत-बांग्लादेश सीमा पर बायरकटर टीबी2 ड्रोन की तैनाती एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि भारत की सबसे लंबी सीमा बांग्लादेश से लगती है. ये सीमा पहाड़ों, उफनती नदियों और घने जंगलों से होकर गुजरती है, भारतीय बलों के लिए उनके छोटे आकार और कम आवाज की वजह से उन्हें ट्रैक करना मुश्किल बनाती है.
भारतीय उपमहाद्वीप पर सिर्फ बांग्लादेश ही बायरकटर टीबी2 ड्रोन का इस्तेमाल करने वाला देश नहीं है. 2023 में पाकिस्तान को तुर्की से बायरकटर टीबी2 ड्रोन का पहला बैच मिला और उसे रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया जाएगा.
इस साल अक्टूबर में भारत ने अमेरिका से 31 प्रीडेटर ड्रोन की खरीद के लिए 32,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिससे भारत को ड्रोन क्षमताओं को बढ़ावा मिला. इनमें से 15 प्रीडेटर भारतीय नौसेना को मिलेंगे, जबकि बाकी वायु सेना और थलसेना के बीच बराबर-बराबर बांटा जाएगा.
एजीएम-114आर हेलफायर मिसाइलों और लेजर-गाइडेड स्मॉल डायमीटर बम (एसडीबी) जैसे उन्नत हथियारों से लैस प्रीडेटर ड्रोन भारतीय सेना की ताकत में इजाफा करेंगे. भारतीय सेना ने हाल ही में इजराइल से चार सैटकॉम-सक्षम हेरोन मार्क-II यूएवी को शामिल किया है. इस बीच, भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) भी पिछले 13 सालों में 1,800 करोड़ रुपये का निवेश करके अपना स्वयं का MALE श्रेणी का ड्रोन, तापस BH-201 विकसित कर रहा है.
हालांकि, तापस बीएच-201 को अभी तक भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि इसे ड्रोन प्लेटफॉर्म प्रमाणित करने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. डीआरडीओ के मुताबिक, तापस ने 28,000 फीट की ऊंचाई पर केवल 18 घंटे की उड़ान क्षमता हासिल की है. हालांकि, मानदंडों और भारतीय सेना की जरूरतों के मुताबिक, एक MALE रिमोट-पायलट विमान को उड़ान के 24 घंटे के भीतर कम से कम 30,000 फीट की ऊंचाई हासिल करने में सक्षम होना चाहिए.
2021 में सेना दिवस परेड के दौरान भारतीय सेना ने झुंड ड्रोन के उपयोग के माध्यम से दुश्मन के तोपखाने को नष्ट करने की क्षमता भी प्रदर्शित की. इस साल मार्च की शुरुआत में भारत ने स्वदेशी लेजर आधारित एकीकृत ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम (आईडीडी एंड आईएस) को शामिल करने के साथ ही महत्वपूर्ण एंटी-ड्रोन तकनीक भी हासिल कर ली थी.
ड्रोन को मार गिराने और लेजर प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उसे जाम करने की क्षमताओं के साथ, आईडीडीएंडआईएस भारतीय सेना को ड्रोन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी देता है, जो सात से आठ किलोमीटर की पहचान सीमा देता है.
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