Atul Subhash Suicide Case: कर्नाटका के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने रविवार (15 दिसंबर) को कहा कि तकनीकी कर्मचारी अतुल सुभाष की आत्महत्या ने देश में पुरुषों के अधिकारों पर एक नई बहस छेड़ दी है. सुभाष ने 9 दिसंबर को आत्महत्या कर ली थी और इसके पीछे उसने अपनी पत्नी और ससुराल पक्ष की ओर से किए गए उत्पीड़न का आरोप लगाया था. उसने अपनी 24 पन्नों की आत्महत्या नोट में लिखा था “न्याय का हक है”.
सुभाष ने अपनी आत्महत्या नोट में ये आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ नौ मामले दर्ज कराए थे जिनमें हत्या, यौन शोषण, धन के लिए उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और दहेज के लिए उत्पीड़न शामिल थे. गृह मंत्री ने इसे लेकर चिंता जताते हुए कहा कि इस घटना ने पुरुषों के अधिकारों पर चर्चा को नया आयाम दिया है जो पहले केवल महिलाओं के अधिकारों तक सीमित थी. उन्होंने इस मामले के दो प्रमुख पहलुओं पर जोर दिया . एक आत्महत्या के कारणों की जांच और दूसरा पुरुषों के अधिकारों पर चल रही बहस.
अदालत में दायर हुआ मामला, पुलिस कर रही है जांच
अतुल सुभाष के पिता पवन कुमार ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनका बेटा मानसिक रूप से टूट चुका था. उन्होंने बताया कि सुभाष के खिलाफ उसकी पत्नी की ओर से कई मामलों का सामना किया जा रहा था जिससे वह अंदर से पूरी तरह टूट गया था. सुभाष की पत्नी ने जनवरी 2021 से ही उसके और उसके परिवार के खिलाफ मामले दायर करना शुरू किया था. उन्होंने आरोप लगाया कि पत्नी ने उनके बेटे के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए और उनके जीवन को बर्बाद कर दिया.
कर्नाटका पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारी
इस मामले में कर्नाटका पुलिस ने सुभाष की पत्नी, सास और साले को उत्तर प्रदेश के जौनपुर से गिरफ्तार किया है. पुलिस मामले की गहन जांच कर रही है और आत्महत्या के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रही है. सुभाष के पिता ने भी इस मामले में न्याय की मांग की है और कहा कि उनका बेटा न्याय की राह पर था, लेकिन उसे परिवारिक उत्पीड़न के कारण टूटने के लिए मजबूर किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 498A के दुरुपयोग पर जताई चिंता
इस बीच 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता जताई थी. इस धारा के तहत पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ महिलाओं की ओर से उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के दुरुपयोग को लेकर कड़ी टिप्पणी की और कहा कि ये व्यक्तिगत प्रतिशोध का एक उपकरण बन गया है जिससे पुरुषों और उनके परिवारों को गलत तरीके से फंसाया जा रहा है.
इस घटना ने समाज में पुरुषों के अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म दिया है. जहां एक ओर ये मामला परिवारिक विवादों का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर यह पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोपों और उनके उत्पीड़न की गंभीरता को भी उजागर करता है. अब ये देखना होगा कि इस पर देशभर में किस तरह की कानूनी और सामाजिक बहस होती है और क्या इससे पुरुषों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं.
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