अरुणाचल के मुख्यमंत्री ने किया दलाई लामा को भारत रत्न देने का समर्थन, केंद्र से करेंगे सिफारिश

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अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दलाई लामा को भारत रत्न प्रदान किए जाने की वकालत करते हुए कहा कि वह तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु को भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिए जाने की सिफारिश करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखेंगे.
खांडू ने मंगलवार (08 जुलाई, 2025) को ‘पीटीआई’ के साथ एक बातचीत में यह कहा कि अगले दलाई लामा के चयन के लिए चीन के पास कोई अधिकार नहीं है क्योंकि तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन मुख्य भूमि चीन में नहीं, बल्कि तिब्बत और भारत के हिमालयी क्षेत्रों में किया जाता है.
दलाई लामा ने किया ‘नालंदा स्कूल ऑफ बुद्धिज्म’ का प्रचार
दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने के पक्ष में सांसदों के एक समूह के अभियान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह दलाई लामा ही थे, जिन्होंने ‘नालंदा स्कूल ऑफ बुद्धिज्म’ का प्रचार और विस्तार किया.
खांडू ने कहा, ‘आठवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय से कई गुरु तिब्बत गए. उस समय तिब्बत में ‘बोन’ धर्म था. ‘बोन’ धर्म और ‘बौद्ध’ धर्म के सम्मिश्रण से तिब्बती बौद्ध धर्म की अवधारणा का उदय हुआ और इस प्रकार बौद्ध धर्म पूरे तिब्बत में फैला.’
चीनी आक्रमण के बाद भारत में हैं दलाई लामा
उन्होंने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म की अवधारणा हिमालय क्षेत्र में लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली. चौदहवें दलाई लामा को 1959 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद भारत भागने पर मजबूर होना पड़ा था. तब से वे अन्य निर्वासित तिब्बतियों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं.
खांडू ने कहा कि दलाई लामा उस समय तिब्बत में मौजूद सभी बड़े मठों की परंपराएं, शाक्य जैसी विभिन्न परंपराएं, तिब्बत में मौजूद सभी पुरानी बौद्ध परंपराएं भारत लाए. उन्होंने विभिन्न स्थानों, विशेषकर दक्षिण भारत में संस्थान स्थापित किए. उन्होंने कहा कि इन मठों से भारतीय हिमालयी क्षेत्र के बौद्धों को काफी लाभ हुआ.
देश की प्राचीन नालंदा परंपरा में निभाई भूमिका
खांडू ने कहा, ‘हमारे भिक्षु वहां अध्ययन करने जाते, फिर उन प्रथाओं को अपनी भूमि, अपने स्थानों पर ले आते. यदि हम उस दृष्टिकोण से देखें तो 14वें दलाई लामा ने हमारे अपने देश की प्राचीन नालंदा परंपरा के संरक्षण और संवर्धन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’
उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण से भारत रत्न की मांग निश्चित रूप से एक बहुत अच्छा कदम है और वह जल्द ही केंद्र सरकार को पत्र लिखकर दलाई लामा के नाम की सिफारिश भारत रत्न के लिए करेंगे. 
खास रहा दलाई लामा का 90वां जन्मदिन
धर्मशाला में 6 जुलाई को आयोजित दलाई लामा के 90वें जन्मदिन समारोह के बारे में पूछे जाने पर खांडू ने कहा कि वह कई बार उस पर्वतीय स्थल पर जा चुके हैं और दलाई लामा से मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन यह 90वां जन्मदिन बहुत खास रहा. समारोह में देश-विदेश के लोगों ने हिस्सा लिया.
उन्होंने कहा, ‘दलाई लामा इस उम्र में भी मानसिक रूप से बहुत सक्रिय हैं और हाल ही में हुए घुटने के ऑपरेशन को छोड़कर उनका स्वास्थ्य अच्छा है.’ दलाई लामा के उत्तराधिकारी के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री, जो स्वयं बौद्ध धर्म से हैं, ने कहा कि यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है.
600 से अधिक सालों से जारी है परंपरा
उन्होंने कहा, ‘पहले दलाई लामा से लेकर वर्तमान 14वें दलाई लामा तक दलाई लामा परंपरा 600 से ज़्यादा सालों से निरंतर जारी है. ‘गादेन फोडरंग ट्रस्ट’ अगले दलाई लामा की पहचान का जिम्मा संभालता है, जो वर्तमान दलाई लामा के निधन के बाद ही शुरू होगी. कोई जल्दबाजी नहीं है और पूरी प्रक्रिया में कड़े नियमों का पालन होता है.’
उन्होंने कहा कि ऐसी भी अटकलें थीं कि क्या दलाई लामा परंपरा जारी रहेगी और क्या अगली दलाई लामा कोई महिला हो सकती है. 90वें जन्मदिन से पहले, बौद्ध परंपराओं के सभी प्रमुखों ने बैठक की और इस बात पर सहमति जताई कि परंपरा जारी रहेगी.
चीन ने जताई है आपत्ति
खांडू ने आगे कहा कि चीन ने इस पर आपत्ति जताई है. चीन की आपत्तियां उसकी अपनी नीतियों पर आधारित हैं, लेकिन दलाई लामा परंपरा को मुख्यतः हिमालयी क्षेत्र और तिब्बती बौद्धों द्वारा मान्यता प्राप्त है. इस मामले में चीन की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए.
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