Kerala Fisherman: केंद्र सरकार के केरल के गहरे समुद्र में खनिज खनन से संबधित प्रस्ताव पर राज्य के मछुआरों में आक्रोश है. शनिवार (22 मार्च, 2025) को रॉबिन नाम के व्यक्ति ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा,‘वे (केंद्र सरकार) नौसेना या सेना भी ला सकते हैं लेकिन हम अपने तट से समुद्री खनन की अनुमति नहीं देंगे. यह हमारे लिए जिंदगी या मौत का सवाल है और हम किसी को भी हमारी आजीविका छीनने नहीं देंगे.’
केरल के मछुआरों ने केंद्र सरकार की समुद्री उत्पाद पर आधारित अर्थव्यवस्था पहल के तहत खनन से संबंधित निजी कंपनियों के लिए समुद्र में खनन करने की प्रस्तावित योजना के खिलाफ पहले ही प्रदर्शन शुरू कर दिया है. सभी मछुआरा संघ इस प्रस्ताव के विरोध में एकजुट हैं और उनका आरोप है कि इससे न केवल अरब सागर में बल्कि बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ देश में भी मत्स्य पालन क्षेत्र समाप्त हो जाएगा.
केरल के मत्स्य पालन मंत्री ने क्या कहाकेरल के मत्स्य पालन मंत्री साजी चेरियन ने कहा, ‘हमारे पास मौजूद वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार गहरे समुद्र में खनन करने से इसके तल में गड़बड़ी हो सकती है और मछलियां जहां अंडे देती हैं, वह स्थान भी नष्ट हो जाएगा. इससे जहरीली गैसें भी निकल सकती हैं, जिससे गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो सकती हैं’. उन्होंने कहा कि गहरे समुद्र में खनन के लिए भारी निवेश और भारी मशीनरी की जरुरत होती है जिसका अर्थ है कि इसमें केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही शामिल होंगी जिससे ये क्षेत्र गरीब मछुआरों के लिए पूरी तरह से दुर्गम हो जाएंगे.
केरल विधानसभा में चार मार्च को एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें केंद्र सरकार से राज्य के तट पर गहरे समुद्र में खनिज खनन की अनुमति देने के अपने कदम को वापस लेने का आग्रह किया गया है. मंत्री ने कहा कि इस योजना के लिए प्रस्तावित कोल्लम तट समुद्री संसाधनों की दृष्टि से बहुत समृद्ध है तथा केरल और अन्य राज्यों के मछुआरों के लिए जीवन रेखा का काम करता है.
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के एक वैज्ञानिक ने बताया, ‘यदि समुद्र का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है तो इसमें चक्रवात जैसी मजबूत मौसमी गतिविधियों होती हैं. अभी तक अरब सागर का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से नीचे था लेकिन अब इसमें एक डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हो गई है जिससे इस क्षेत्र में चक्रवाती की संभावनाएं बढ़ गई हैं’.
‘हम अपनी जान दे देंगे लेकिन खनन नहीं होने देंगे’कोल्लम के रहने वाले मछुआरे रॉबिन ने कहा, ‘प्रकृति में बदलाव करने का मतलब है सतह से करीब डेढ़ फुट नीचे की मिट्टी से छेड़छाड़ करना. यह कोल्लम तट पर पाई जाती है’. उन्होंने कहा, ‘कोल्लम तट पर मछलियों की एक बड़ी आबादी रहती है और अगर यह गाद हटा दी जाती है तो वह जीवित नहीं बचेंगी, अगर ऐसा होता है तो हमें राज्य या केंद्र में मत्स्य पालन विभाग की जरूरत ही नहीं होगी’.
मछुआरे एप्टॉन ने कहा, ‘हम केरल भर के मछुआरों को चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हों, उन्हें एकजुट कर रहे हैं और इसके खिलाफ विरोध कर रहे हैं. हम उन्हें हमारे समुद्र से रेत का एक कण भी निकालने नहीं देंगे चाहे इसके लिए हमें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े’.केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान के अनुसार, ‘हमारे समुद्र तटों का व्यवस्थित तरीके से उपयोग करने से आर्थिक लाभ मिल सकता है. समुद्री खनन से मत्स्य पालन पर कुछ हद तक प्रभाव पड़ सकता है’.
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