तुर्की के पाकिस्तान प्रेम ने उसे अब तक का सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान दे डाला है. भारत की नाराजगी का असर सिर्फ विदेश नीति में नहीं, तुर्की की अर्थव्यवस्था की नसों तक पहुंच चुका है. बॉयकॉट तुर्की मुहिम ने अब वहां बूमिंग डेस्टिनेशन वेडिंग इंडस्ट्री को भी हिला कर रख दिया है. तुर्की की तरफ से पाकिस्तान का खुला समर्थन जताने के बाद भारत के वेडिंग प्लानर्स और परिवारों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है. इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीयों ने तुर्की में शादियां करवाने से हाथ खींच लिया है — जिससे तुर्की को सीधा 9 करोड़ डॉलर यानी करीब 770 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है.
भारतीय शादियां तुर्की की वेडिंग टूरिज्म इंडस्ट्री की जान मानी जाती थीं. पिछले साल यानी 2024 ही देखें तो तुर्की ने 50 बड़ी भारतीय शादियों की मेज़बानी की थी, जिनमें से हर एक की लागत औसतन 30 लाख डॉलर (करीब 25 करोड़ रुपये) थी. कुछ तो 66 करोड़ तक के बजट में पहुंच गई थीं.
इन शादियों में 500 से ज़्यादा मेहमान, बॉलीवुड सेलिब्रिटी, हाई-नेटवर्थ इंडिविजुअल्स और महंगी सजावट का तामझाम शामिल होता था, जिससे न सिर्फ लोकल वेंडर्स को फायदा होता था बल्कि तुर्की को एक ग्लोबल लक्ज़री डेस्टिनेशन के रूप में पहचान भी मिलती थी.
भारत से पंगा और 770 करोड़ का नुकसान!
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पैदा हुए भारत-तुर्की तनाव ने न सिर्फ भावनात्मक स्तर पर भारतीय परिवारों को आहत किया, बल्कि क्लियर इकोनॉमिक रिपरकशंस भी सामने आने लगे.
अब तक 2,000 से अधिक टूरिस्ट बुकिंग रद्द हो चुकी हैं.
2025 के लिए प्रस्तावित 50 में से 30 भारतीय शादियां खतरे में हैं.
प्रति शादी 25 करोड़ रुपये के हिसाब से 770 करोड़ रुपये (करीब $90 मिलियन) का सीधा नुकसान.
भारत से पंगा, लोकल इकॉनमी पर भी पड़ा भारी
इन शादियों से स्थानीय फ्लोरिस्ट, इवेंट मैनेजर्स, ट्रैवल एजेंसियां, होटल चेन और डेकोरेटर तक को रोजगार मिलता था. साथ ही यह वेडिंग्स तुर्की के लक्ज़री टूरिज्म को एक इंटरनेशनल ब्रांडिंग वैल्यू भी देती थीं, जिसे किसी विज्ञापन से हासिल करना मुश्किल है.
2024 में तुर्की की कुल वेडिंग टूरिज्म आय 3 अरब डॉलर रही, जिसमें भारतीय शादियों की हिस्सेदारी करीब 3% यानी 14 करोड़ डॉलर (1,170 करोड़ रुपये) थी. अकेले इस इंडस्ट्री से जुड़े नुकसान के अलावा, इसका असर तुर्की के कुल 61.1 अरब डॉलर के टूरिज्म सेक्टर पर भी पड़ सकता है.
तुर्की आउट, राजस्थान-गोवा इन
Kestone Utsav नामक मशहूर वेडिंग प्लानिंग कंपनी से जुड़े निखिल महाजन कहते हैं, ‘अब भारतीय परिवार तुर्की की जगह इटली और यूएई जैसे देशों को देख रहे हैं. साथ ही देश के अंदर ही उदयपुर, जयपुर, गोवा और केरल जैसे शाही और कल्चरल डेस्टिनेशन में बुकिंग बढ़ गई है.’
यह बदलाव केवल राजनीति के कारण नहीं, बल्कि सुरक्षा, भावनात्मक जुड़ाव और अतिथियों के अनुभव जैसे पहलुओं पर आधारित है.
एर्दोगान सरकार के लिए चेतावनी की घंटी
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के लिए यह आर्थिक झटका सिर्फ संख्याओं का नहीं, बल्कि डिप्लोमैटिक रणनीति की असफलता का संकेत भी है. अगर भारत जैसे बड़े बाजार से नाराजगी बनी रही, तो न सिर्फ वेडिंग टूरिज्म बल्कि अन्य सेक्टर भी इसकी चपेट में आ सकते हैं.
अब सवाल ये है कि क्या एर्दोगान सरकार वक्त रहते संभलेगी, या तुर्की अपने सबसे रईस मेहमानों को हमेशा के लिए खो देगा?
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