कल तक करते थे मजदूरी, आज 2 हजार लोगों को दे रहे रोज़गार, 400 करोड़का टर्नओवर, जानिए नीरज सिंह की संघर्ष से सफलता तक की कहानी

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शिवहर. आज हम कहानी बता रहे हैं उस शख्स की जिसने 18 साल से कम उम्र में घर छोड़ा और आज 39 साल की उम्र में सफलता की बड़ी ऊंचाई को छू लिया है. एक समय था जब नीरज सिंह दिल्ली की सड़कों पर रात्रि सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे, साइकिल तक खरीदना उनके लिए सपना था. आज वही नीरज सिंह बिहार के शिवहर जिले में आधा दर्जन से अधिक उद्योगों के मालिक हैं और 2,000 से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं. उनकी कहानी यह साबित करती है कि यदि इरादे मजबूत हों और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत बदल सकता है.

नीरज सिंह ने local 18 से बताया कि नौकरी के तलाश में झारखंड, यूपी, दिल्ली, मुंबई, पुणे समेत कई राज्य में घूमे. लेकिन, सफलता उन्हें बिहार में ही मिली ह. उन्होंने कहा कि बिहार में बहुत कुछ है, लेकिन आपके अंदर कुछ करने लिए जज्बा होना चाहिए. बाहर 2200 रुपए की महीने वाली नौकरी के कारण प्रतिदिन दो शिफ्ट ड्यूटी करते थे. कल तक हजार दो हजार की नौकरी के लिए भटका और आज हमारी कंपनी का 400 करोड़ का टर्नओवर है. उनकी कंपनी उनके मां के नाम, ऊषा इंडस्ट्री पर है. छोटे भाई ने इंजीनियर बनने के बाद उनका काफी साथ दिया.

संघर्षों से हुई शुरुआत नीरज सिंह का जन्म शिवहर जिले के मथुरापुर गांव में हुआ. साल 2000 मैट्रिक पास करने के बाद रोजगार की तलाश में पहली बार अपने गांव के एक युवक के साथ झारखंड गए, लेकिन उम्र कम होने के कारण उन्हें सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी नहीं मिल पाई. निराश होकर वह वापस गांव लौट आए और वहीं एक छोटी सी गुमटी लगाकर पेट्रोल-डीजल बेचना शुरू किया. साल 2000 में मैट्रिक पास की उसके बाद से ही जॉब के तलाश में थे. पारिवारिक हालात को देखते हुए भाइयों को पढ़ाने और घर चलाने के बोझ तले दबे नीरज प्रदेश की ओर निकल पड़े.

दिल्ली से पुणे तक का सफर2003 में उन्होंने फिर से हिम्मत जुटाई और दिल्ली का रुख किया. वहां रात-दिन मेहनत करते हुए एक दवा कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की, लेकिन कम सैलरी के कारण दूसरी शिफ्ट करनी पड़ी. 2004 में वह पुणे चले गए और वहां भी सिक्योरिटी गार्ड का ही काम किया. लगातार काम की तलाश में वह उसी कार्यालय में ऑफिस बॉय बने, फिर 2006 में एचआर असिस्टेंट तक का सफर तय किया.

घर वापसी और नई शुरुआत2009 में अपनी दादी के देहांत के बाद वह स्थायी रूप से गांव लौट आए. 2010 में उन्होंने मोतिहारी में एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी में मात्र 3,300 रुपये की सैलरी पर नौकरी शुरू की. फील्ड वर्क के दौरान उन्होंने बाजार की नब्ज को समझा और यहीं से उनके कारोबारी सफर की नींव पड़ी. नीरज सिंह ने बताया कि 2010 में वह पेपर में विज्ञापन देखकर मोतिहारी में एक माइक्रो फाइनेंस कंपनी में इंटरव्यू दिया और 3300 रुपए की सैलरी पर ज्वाइनिंग हुई.

पहला मौका और पहला मुनाफामोतिहारी में रहते हुए वहां चुकी फील्ड वर्क था तो बाजार में हालत में समझे और इनके मन में ख्याल आया कि अनाज की खरीद बिक्री करें. हालांकि, 3300 सौ की सैलरी के कारण वह भी नहीं कर पा रहे थे. इसी बीच इनके एक रिलेटिव को मोतिहारी में जमीन लेनी थी और उन्होंने नीरज से संपर्क किया. नीरज सिंह ने इस बात को अपने मित्रों को बताया फिर एक जमीन देखकर अपने रिलेटिव को खरीदवाई. वहीं, इसमें में बिचौलिए ने उन्हें 25000 हजार रुपए इनाम के तौर पर दिए. इसी पैसे से उन्होंने अनाज की खरीद-बिक्री का काम शुरू किया. आज करोड़ों का अनाज खरीद बिक्री करते है. गांव से अनाज खरीद कर शहरों में बेचना उनका पहला व्यावसायिक प्रयोग था.

कड़ी मेहनत से कारोबारी साम्राज्य तकनीरज सिंह ने अनाज व्यापार को तेजी से विस्तार दिया और कुछ ही वर्षों में यह व्यापार 20-30 करोड़ रुपये सालाना हो गया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वर्तमान में वे टाइल्स, फाइबर ब्लॉक, फ्लाइएक्स ब्रिक्स, एनएच डिवाइडर, सड़क निर्माण बोर्ड, मैदा और ईंट उद्योग जैसे कई क्षेत्रों में कारोबार कर रहे हैं. जो आज बिहार की सबसे बड़ी कंपनी है, इसमें 800 सौ लोग प्रतिदिन काम करते हैं. उनकी कंपनी का प्रोडक्ट सभी सरकारी कंपनियों को जाता है. इसके अलावा नंबर वन के संवेदक भी हैं. वर्तमान में इस साल 2025 में पेट्रोल पंप भी गांव के शिवहर-मोतिहारी पथ पर डुमरी नजदीक खोला है. आज उनकी सारी कंपनियों में करीब 2 हजार से अधिक लोग काम कर रहे हैं.

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