Last Updated:May 10, 2025, 12:58 ISTSultanpur News: सुनीता, सुल्तानपुर की निवासी, बिना पढ़ाई के मिट्टी के उत्पाद बनाकर सफलता की मिसाल हैं. वह रोज 6-8 घंटे काम करती हैं और सीजन में 50 हजार मूर्तियां बनाती हैं. मिट्टी की कमी और बिक्री स्थान की समस्…और पढ़ेंX
मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाली सुनीताहाइलाइट्ससुनीता बिना पढ़ाई के मिट्टी के उत्पाद बनाती हैं.वह रोज 6-8 घंटे काम करती हैं और सीजन में 50 हजार मूर्तियां बनाती हैं.मिट्टी की कमी और बिक्री स्थान की समस्या का सामना करती हैं.सुल्तानपुर: अगर दिल में हौसला और जुनून हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता. सुल्तानपुर की रहने वाली सुनीता इसका बेहतरीन उदाहरण पेश कर रही हैं. भले ही उन्होंने पढ़ाई नहीं की, लेकिन अपने हुनर और जुनून के दम पर वह मिट्टी के उत्पाद बनाने का काम करती हैं. उनकी मेहनत और कड़ी कार्यशैली से न सिर्फ वह अच्छे पैसे कमा रही हैं, बल्कि अपनी बेटियों को भी इस कला में निपुण बना रही हैं. आइए, जानते हैं सुनीता की संघर्ष से लेकर सफलता की कहानी.
पारंपरिक व्यवसाय को संजोए रखनासुनीता ने मिट्टी के उत्पाद बनाने की कला को इस तरीके से अपनाया है कि यह पारंपरिक व्यवसाय जीवित रहे. उनका मानना है कि दीपावली जैसे त्यौहारों, शादी और अन्य शुभ अवसरों पर इलेक्ट्रिक झालरों और मोमबत्तियों के साथ-साथ गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों से आकर्षक बनाया जाए. इसी सोच के साथ वह अपने उत्पादों को तैयार करती हैं, जिससे पारंपरिक कला को संरक्षित किया जा सके.
रोजाना 6 से 8 घंटे काम लोकल 18 से बातचीत करते हुए सुनीता ने बताया कि वह हर दिन 6 से 8 घंटे लगातार काम करती हैं, ताकि वह मिट्टी के उत्पादों को तैयार कर बाजार में भेज सकें. इससे उनके आय के स्रोतों का निर्धारण भी होता है. इसके साथ ही, सुनीता अपने परिवार के बच्चों को भी मूर्तियां बनाने की कला में पारंगत कर रही हैं, जिससे यह हुनर आने वाली पीढ़ियों में भी जिंदा रहे.
इतनी मूर्तियां बनाती हैं सुनीतासुनीता बताती हैं कि कभी स्कूल न जा पाने के बावजूद उन्होंने इस कला को बखूबी सीखा और अब इसमें माहिर हैं. सरकार से भी उन्हें मदद मिली है, जिसमें फर्मा और मशीनें प्राप्त की हैं. इसके माध्यम से वह सीजन में लगभग 50 हजार मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन और अन्य उत्पाद तैयार करती हैं, जिन्हें वह बाजार में बेचने के लिए भेजती हैं.
करना पड़ता है चुनौतियों का सामना हालांकि, सुनीता के इस काम में कुछ चुनौतियां भी हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें मिट्टी की कमी का सामना करना पड़ता है. साथ ही, तैयार की गई मूर्तियों को सुल्तानपुर शहर में बेचने के लिए उचित स्थान का अभाव है. शहर के चौक में जहां मूर्तियों की बिक्री होती है, वहां भी दुकान लगाने के लिए जगह उपलब्ध नहीं है. इसके कारण बाहरी व्यापारियों का दबाव बढ़ता है और स्थानीय व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे सुनीता की साल भर की मेहनत पर असर पड़ता है.
Location :Sultanpur,Uttar Pradeshhomebusinessबिन पढ़ाई, बिन डिग्री! सुल्तानपुर की इस महिला ने मिट्टी से बदल दी अपनी तकदीर
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