कौशांबी:- अक्सर लोग पढ़ने लिखने के बाद नौकरी की तैयारी में लगे रहते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती है फिर वह परेशान रहते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे युवक सपनेन तिवारी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने प्रयागराज यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद पायलट बनने का सपना देखा और उसकी तैयारी शुरू की, लेकिन अचानक उनका मन बदला और नौकरी करने के बजाय उनके दिमाग में नौकरी देने का ख्याल आया और उन्होंने अपना खुद का कारखाना शुरू किया. आज वह लगभग 8 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं, तो चलिए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी. कैसे हुई इस कहानी की शुरुआत
नौकरी की तैयारी छोड़ कारोबार किया शुरूउत्तर प्रदेश के जनपद कौशांबी गनपा गांव के रहने वाले सपनेन तिवारी ने गांव में रहकर इंटर तक की पढ़ाई पूरी की. इंटर के बाद सपनेन तिवारी ने प्रयागराज यूनिवर्सिटी से अपनी BSC की पढ़ाई पूरी की, फिर उन्होंने एक पायलट बनने के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना शुरू किया. फिर अचानक से उन्हें एक दोस्त मिला, जिसके संपर्क में आने पर उन्होंने पढ़ाई छोड़ मिट्टी के बर्तनों की फैक्ट्री डाल दी. दरअसल सपनेन तिवारी के साथ पढ़ने वाले एक दोस्त के यहां मिट्टी के बर्तन बनाने का कारखाना चल रहा था. तभी सपनेन तिवारी की कारखाने में नजर पड़ी और उस कारखाने की पूरी उन्होंने जानकारी ली और उसी समय सपनेन तिवारी के दिमाग में भी आया, कि नौकरी करने से अच्छा है कि चार लोगों को नौकरी दो. यही दिमाग लेकर जब अपने वह घर पहुंचे और पूरी बात अपने पिता से कही. जिसके बाद उन्होंने कारखाना डाला और आज अपने ही कारखाने में कई लोगों को रोजगार भी वह दे रहे हैं.
सबसे पहले उन्होंने कारखाने में पांच मशीनें लगाईं और मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू किया. जिनमें लस्सी वाले ग्लास, चाय के कुल्हड़, आइसक्रीम के कुल्हड़ बनाने शुरू किए. उनके कारखाने में 5 जेंट्स एवं 3 महिलाएं काम करती हैं. वहीं इनके यहां जेंट्स मजदूर महीने की 10 से 15 हजार तक की आमदनी कर लेते हैं.
कितना खर्च और बचत होती हैवहीं, मिट्टी के बर्तन बनाने में खर्च की बात करें तो लस्सी के कुल्हड़ बनाने में 2.50 रुपये का खर्च आता है. एक कुल्हड़ 3.50 रुपये में बिकता है. चाय के कुल्हड़ में 1 रुपये का खर्च आता है और 1.50 रुपये में बिकता है. जिससे चाय के 1 कुल्हड़ से 50 पैसे की आमदनी हो जाती है. इन बर्तनों को बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है. अधिकतर लोग कारखाने से ही खरीद कर ले जाते हैं और दुकान- दुकान पर बेचते हैं.
धीरेन्द्र त्रिपाठी ने दी जानकारीइसके बारे में धीरेन्द्र त्रिपाठी ने बताया, कि लड़का प्रयागराज में पढ़ाई करने के लिए गया था और प्रयागराज में सपनेन के किसी दोस्त ने भी एक कारखाना डाला था और वहीं कारखाने में जाकर देखा और उनके दिमाग में बात बैठ गई, कि नौकरी करने से अच्छा है कि चार लोगों को रोजगार दो. यही संकल्प लेकर गांव मे एक कारखाना डाला और कई लोगों को रोजगार भी दिया. आगे उन्होंने बताया, कि यह कारखाना दो सालों से गनपा गांव मे चल रहा है. इस कारखाने में अभी 8 लोग काम कर रहे हैं. जिसमें से 5 जेंट्स और 3 महिलाएं काम कर रही हैं.
आगे वे बताते हैं, इस कारखाने में लस्सी, चाय और आइसक्रीम के कुल्हड़ बनते हैं. इन कुल्हड़ को बेचने के लिए किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होती है. इन कुल्हड़ की बहुत डिमांड है. प्रतिदिन 5 हजार कुल्हड़ तैयार हो जाते हैं. इनको तैयार करने के लिए विशेष मिट्टी की जरूरत होती है. फिर मिट्टी की पिसाई की जाती है फिर चाली जाती है.इसके बाद बर्तन बनाना शुरू किया जाता है. फिलहाल अभी तो हमारे पास 5 मशीन हैं. अभी 5 मशीनों से संतुष्टी नहीं है. हमें इस कारखाने में 25 मशीन लगानी है, ताकि आगे और भी लोगों को रोजगार दिया जा सके. आगे वे बताते हैं, जो लोग देश प्रदेश में जाकर कमाते हैं, वो लोग अपने घर में भी रह कर कमा सकें, यही सोचकर अपने कारखाने को और बड़ा बनाना है.
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