भोपाल: आज देश में स्टार्टअप की धूम है. खासकर फूड स्टार्टअप में तरह-तरह की विदेशी डिश परोस कर युवा वर्ग ने धूम मचा रखी है. लेकिन, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास एक गांव के देसी ढाबे ने बहुतों की बोलती बंद कर दी है. यहां 80 साल के बुजुर्ग दंपति ने अपने घर में ही पारंपरिक व्यंजन दाल-बाटी परोसने का काम शुरू किया है. गांव के प्राकृतिक माहौल के बीच खेत की ताजी सब्जी और चूल्हे पर पकी दाल का स्वाद लेने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. कई फूड ब्लॉगर्स पता पूछते यहां तक आ चुके हैं.
Local 18 को भोपाल में एक ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति मिले जो न सिर्फ 80 साल की उम्र में लोगों को दाल-बाटी खिला रहे हैं, बल्कि पारंपरिक व्यंजन को इतने सुंदर ढंग से परोस रहे हैं कि इनके खाने की तारीफ मुंबई तक हो रही है. इन बुजुर्ग पति-पत्नी की कहानी और इनका आत्मविश्वास जो भी देखता-सुनता है, इनका मुरीद हो जाता है. दद्दू बद्री प्रसाद पाटीदार और उनकी पत्नी भोपाल के बाहरी हिस्से के एक छोटे से गांव नाथू बरखेड़ा में 30 साल से “दद्दू देसी दाल-बाटी ढाबा” चला रहे हैं.
रविवार को बंपर भीड़
दद्दू देसी दाल-बाटी ढाबे में दद्दू और दादी चूल्हे पर देसी तरीके से घर के ही आटे से दाल-बाटी बनाते हैं. इसके साथ बैंगन का भरता भी परोसते हैं. जायके के दीवाने दूर-दूर से यहां पहुंचते है. खासकर रविवार को तो यहां भारी भीड़ होती है. भोपाल से बड़ी संख्या में लोग परिवार के साथ यहां खाना खाने आते हैं.
75 रुपये की प्लेट में इतने आइटम
दद्दू देसी दाल-बाटी ढाबे में दादा और दादी 75 रुपये की एक दाल बाटी प्लेट देते हैं. इसमें 5 बाटी, चूल्हे पर देसी स्टाइल में बनी दाल, बैंगन का भरता, आम का अचार परोसते हैं. कुछ कम पड़ता है तो और दे देते हैं और इसका कोई एक्स्ट्रा चार्ज नहीं है. प्याज का सलाद भी नींबू डालकर प्रस्तुत करे हैं.
गांव के माहौल में परफेक्ट प्लेस
दद्दू और दादी यह ढाबा गांव के अपने मिट्टी के मकान से ही 30 साल से चल रहा है. यहां लोग खुली जगह पर बैठ परिवार के साथ गांव के वातावरण में भोजन का आनंद लेते हैं. दद्दू देसी दाल-बाटी ढाबा की शुरुआत अचानक हुई थी, जो अब लोगों की खास पसंद है.
अकेले ही चलाते हैं ढाबा
ढाबे को दद्दू और दादी अकेले ही चलाते हैं. दादा चूल्हा तैयार करते हैं तो दूसरी तरफ दादी दाल बनाती हैं. इसी बीच दादा बाटी तैयार करते हैं. ये दोनों बुजुर्ग दंपत्ति ऐसे सभी लोगों के लिए मिसाल हैं, जो छोटी-छोटी बातों पर संघर्ष का रास्ता छोड़कर हार मान लेते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 15:38 IST