भोजपुर. वर्तमान के समय में आसपास कई ऐसी महिलाएं आपको दिख जाएगी जिन्होंने खुद की किस्मत और भविष्य दोनों ही अपने हाथों से लिखी होगी. ऐसी ही एक महिला भोजपुर जिले के उदवंतनगर प्रखंड के सराथुआ गांव में हैं जिन्होंने खुद के कई छोटा बड़े उद्योग कर पूरे जिला में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. फिलहाल विभा देवी प्रमुख रूप से हर्बल साबुन बनाती हैं और घर में पार्लर चलाती हैं. लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण देती है. कई सारा कार्य वो घर में रहते हुए एक साथ करती हैं. इसके अलावा एक दर्जन से ज्यादा महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं. ऐसी महिलाओं की संघर्ष और सफलता की कहानी देश दुनिया के सामने लाना हमारी भी जिम्मेदारी बनती है.
आज हम आपको आत्मनिर्भर महिला विभा देवी के बारे में बताएंगे. दरअसल, भोजपुर जिले के उदवंतनगर थाना अंतर्गत सरथुआ गांव में एक महिला जो आत्मनिर्भर होकर घर में साबुन का निर्माण करती हैं. इतना ही नहीं बल्कि अपने गांव की कुछ महिलाओं और लड़कियों को भी इस ऑर्गेनिक साबुन बनाने की गुर को भी सीखा रही हैं ताकि अन्य महिलाएं, लड़कियां किसी पर बोझ ना बनकर खुद आत्मनिर्भर बने.
पहली कमाई 800 रुपएविभा देवी आज सफल महिला हैं लेकिन इसके पीछे उनकी 18 साल की लंबी संघर्ष की कहानी भी है. विभा देवी के द्वारा लोकल 18 को बताया गया कि पहली बार 2007 में पति व ससुराल के लोगों के खिलाफ जाकर वो पार्लर का काम की थी जिसमें 800 रुपये मिले थे उसके बाद वो सिलाई का कार्य शुरू की फिर कृषि विभाग के आत्मा संस्था से जुड़ी वहां से साबुन बनाने का प्रशिक्षण लिया तब से पार्लर, सिलाई और साबुन का कार्य करते आ रही हैं.
इस तरीके से होते हैं साबुनविभा देवी ने बताया कि वो घर में सोप बेस की मदद से सात प्रकार के साबुन बनाती हैं. सबसे पहले लूफा की साबुन तैयार करती हैं, जिसे बनाने के लिए नेनुआ के छिलके का इस्तेमाल करती हैं. उन्होंने बताया कि नेनुआ के छिलके को छोटा छोटा काट कर साबुन के अंदर डाल दिया जाता है, इससे शरीर पर जमे मैल, गंदगी को छुड़ाने के लिए अन्य किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती.
इसी प्रकार नीम और तुलसी के साबुन जिसमें नीम और तुलसी के पत्ते को सुखाकर बनाती हैं. उसके बाद उबटन के साबुन बनाती है. जिसमें बेसन, हल्दी, चंदन पाउडर और मुल्तानी मिट्टी डालती है. फिर चारकोल के साबुन तैयार करती हैं. उन्होंने बताया कि चारकोल का साबुन चेहरे के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है. इसे लगाने से चेहरे पर पिंपल्स नहीं आते है. उसके बाद विभा गुलाब का साबुन बनाती हैं. जिसे बनाने के लिए वो गुलाब फूल का इस्तेमाल करती है. इसी प्रकार एलोवेरा और संतरा के साबुन भी बनाती हैं.
25 से 50 रुपए होती है कीमतउन्होंने बताया कि यह सभी प्रकार के साबुन बनाने में करीब 20 मिनट का समय लग जाता है. साबुन बनाने के दौरान विभा बेस, कलर, सुगंधी, तील तेल, जाफर का इस्तेमाल करती हैं. सबसे पहले एक बड़े से पतीले में पानी भरा जाता है, फिर उसके अंदर एक छोटा पतीला रख दिया जाता है, उसके बाद छोटे वाले पतीले में सोप बेस का टुकड़ा काट कर डाल दिया जाता है. साबुन बनाने में उनके साथ गांव की लगभग 15 महिलाएं भी कार्य करती हैं. हर दिन 20 से 25 साबुन बनाती है जिसकी कीमत 25 रुपए और 50 रुपए है.
उन्होंने बताया कि बेस को पिछले तक छोलनी से चलाया जाता है. उसके बाद इसमें कलर, सुगंधी, तील तेल और जाफर मिलाकर चलाया जाता है. करीब 20 मिनट तक क्रियाकलाप करने के बाद उसे एक सांचे में डाल दिया जाता है. वहीं ठंडा होने के बाद साबुन तैयार हो जाता है. विभा देवी ने बताया कि वो महीने में करीब 1300 से 1500 साबुन बनाती हैं. जिसकी कीमत 50 रुपए प्रति साबुन है. हर महीने में करीब 25 से 28 हजार रुपए आसानी से कमा लेती हैं.
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