शिक्षक की नौकरी छोड़ी… फूलों से रच दी नई कहानी: भीमताल के राकेश बिष्ट बने पहाड़ के लिए मिसाल

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Last Updated:May 05, 2025, 12:53 ISTराकेश बिष्ट ने शिक्षक की नौकरी छोड़कर फूलों की खेती शुरू की. उन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर नर्सरी स्थापित की और 30 से अधिक युवाओं को रोजगार दिया. उनकी सफलता ने उत्तराखंड के युवाओं के लिए स्वरोजगार की नई …और पढ़ेंX

भीमताल के राकेश कर रहे हैं फूलों की खेती से स्वरोजगारहाइलाइट्सराकेश बिष्ट ने शिक्षक की नौकरी छोड़ फूलों की खेती शुरू की.राकेश की नर्सरी में 100 से अधिक फूलों की किस्में हैं.राकेश ने 30 से अधिक युवाओं को रोजगार दिया.नैनीताल : उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में बसे भीमताल से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. यहां एक युवक ने अपनी नौकरी छोड़कर न सिर्फ खुद को नई पहचान दी, बल्कि कई युवाओं की ज़िंदगी भी संवार दी. हम बात कर रहे हैं राकेश बिष्ट की, जो कभी एक निजी स्कूल में शिक्षक थे और आज एक सफल फूल उत्पादक और उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं.

एमएससी (आईटी) की डिग्री के बाद राकेश प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे और साथ ही पढ़ाने का काम भी कर रहे थे. लेकिन उन्हें इस काम से संतोष नहीं मिल रहा था. उन्होंने ठान लिया कि कुछ ऐसा करना है जो दिल से जुड़ा हो और जिसमें दूसरों के लिए भी प्रेरणा छुपी हो. यही सोच उन्हें फूलों की खेती की ओर ले गई. राकेश ने सबसे पहले उद्यान विभाग से संपर्क कर सरकारी योजनाओं और तकनीकी मदद की जानकारी ली. विभाग से प्रोत्साहन और अनुदान में बांस का पाली हाउस मिलने के बाद उन्होंने भीमताल बाईपास क्षेत्र में नर्सरी की शुरुआत की. शुरुआती दौर में उन्होंने सैकुलेंट्स और मौसमी फूलों की कुछ वैरायटी उगाई, जिन्हें दिल्ली और बरेली की फूल मंडियों में बेचा गया.

20 से अधिक युवाओं को दिया रोजगारधीरे-धीरे मुनाफा बढ़ा और राकेश ने अपने व्यवसाय का विस्तार कर लिया. आज उनकी नर्सरी में सल्विया, पिटोनिया जैसे 100 से अधिक फूलों की किस्में तैयार होती हैं. खास बात यह है कि उनकी 3 नर्सरी में 30 से अधिक युवा काम कर रहे हैं, जिनके रहने और खाने की भी व्यवस्था राकेश ने की है. इसके साथ ही वे स्थानीय फूल उत्पादकों से भी फूल खरीदते हैं, जिससे उन्हें भी स्थायी आय और नया बाजार मिला है. राकेश बिष्ट की यह कहानी इस बात की मिसाल है कि यदि इरादे मजबूत हों और सरकारी योजनाओं का सही उपयोग किया जाए, तो पहाड़ों में भी स्वरोजगार की असीम संभावनाएं मौजूद हैं. वे आज उत्तराखंड के युवाओं के लिए आशा की नई किरण बनकर उभरे हैं.
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