शेयर बाजार: आज हाई से 600 अंक क्यों टूटा सेंसेक्स, क्या हैं इस गिरावट के कारण?

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सेंसेक्स और निफ्टी में गुरुवार को काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. ये दोनों सूचकांक सुबह तो अच्छी बढ़त के साथ खुले, लेकिन दोपहर तक इनका रंग बदल गया और ये नीचे आ गए. सेंसेक्स सुबह 504.57 अंक ऊपर 81,816.89 तक पहुंच गया था, लेकिन बाद में उसने अपनी सारी बढ़त खो दी और हाई से करीब 600 अंक नीचे गिर गया. वहीं, निफ्टी भी सुबह 24,889.70 तक गया, लेकिन दोपहर तक ये 24,750 से नीचे आ गया. ऐसा क्यों हुआ? इसे गिराने वाले कौन-से कारण रहे? चलिए जानते हैं.

सबसे पहले, बाजार में ये गिरावट कुछ खास कारणों से आई. एक बड़ा कारण है अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक की हालिया बैठक के नोट्स. इन नोट्स में बताया गया कि फेडरल रिजर्व के ज्यादातर अधिकारी चिंतित हैं कि अमेरिका में महंगाई लंबे समय तक ऊंची रह सकती है. उन्होंने ब्याज दरों को वैसे ही रखा, लेकिन उनका लहजा ऐसा था कि वे महंगाई और नौकरियों के बीच संतुलन बनाने में मुश्किल महसूस कर रहे हैं. जब अमेरिका में महंगाई की बात होती है, तो इसका असर भारत जैसे देशों पर भी पड़ता है, क्योंकि वहां की नीतियां वैश्विक बाजार को प्रभावित करती हैं. निवेशक सतर्क हो जाते हैं, और बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है.

दूसरा कारण है कुछ कंपनियों के शेयरों में गिरावट. जियो फाइनेंशियल सर्विसेज, एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, बजाज फाइनेंस और एचडीएफसी बैंक जैसे बड़े नामों के शेयर 2 फीसदी तक गिरे. ये कंपनियां बाजार की दिशा तय करने में अहम होती हैं, तो इनके नीचे जाने से सेंसेक्स और निफ्टी पर भी असर पड़ा. इसके अलावा, गुरुवार को निफ्टी और बैंक निफ्टी के मंथली डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स की समय सीमा खत्म हो रही थी. ऐसी स्थिति में ट्रेडर सावधानी बरतते हैं, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ती है.

युद्ध जैसे हालातों ने बिगाड़ा मूड

एक और वजह थी दुनियाभर में चल रही भू-राजनीतिक तनाव. जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने यूक्रेन को लंबी दूरी की मिसाइल प्रणाली देने का वादा किया, जिस पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी कि इससे पश्चिमी देशों और रूस के बीच सीधा टकराव हो सकता है. एक विशेषज्ञ ने कहा कि अगर ऐसी मिसाइलें यूक्रेन से रूस पर हमला करती हैं, तो इसे जर्मनी का हमला माना जाएगा. इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

कच्चे तेल की कीमतों में उछाल ने भी बाजार को प्रभावित किया. अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड तेल की कीमत 1.11 फीसदी बढ़कर 65.62 डॉलर प्रति बैरल हो गई. भारत जैसे देशों के लिए चिंता की बात इसलिए है, क्योंकि वे अपने तेल का ज्यादातर हिस्सा आयात करते हैं. तेल की कीमतें बढ़ने से देश का आयात खर्च बढ़ता है, रुपये की कीमत कमजोर होती है, और महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है. ये सब शेयर बाजार के लिए नेगेटिव खबरें हैं.

मार्केट के जानकार वीके विजयकुमार ने कहा, निफ्टी अभी 24,500 से 25,000 के दायरे में है, और इसमें से बाहर निकलना फिलहाल मुश्किल लगता है. कुल मिलाकर, ये सारी बातें- अमेरिका की नीतियां, तेल की कीमतें, वैश्विक तनाव और कुछ बड़ी कंपनियों में कमजोरी मिलकर बाजार को नीचे ले आईं. लेकिन, ये बाजार का नेचर है. ये ऊपर-नीचे होता रहता है. निवेशकों को धैर्य रखना चाहिए और लंबे समय के लिए सोचना चाहिए.

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