वॉरेन बफेट ने बताया किस समय बेचना चाहिए शेयर, कीमत से ज्यादा लेना-देना नहीं

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नई दिल्ली. आज हर गली-नुक्कड़ पर ट्रेडिंग ऐप्स डाउनलोड हो रहे हैं. भारत में 19 करोड़ से ज़्यादा डिमैट अकाउंट एक्टिव हैं. हर कोई ‘करोड़पति’ बनने का ख्वाब देख रहा है. लेकिन, सच्‍चाई यह है कि 90 फीसदी भारतीय ट्रेडर्स को मुनाफे की जगह घाटा ही हो रहा है. भारतीय शेयर बाजार रहस्‍यों से भरा है. कब कौन सा शेयर गिर जाएगा, कौन सा उठ जाए, किसी को नहीं पता. और इस रहस्य में सबसे ज़्यादा नुकसान उठाते हैं वे निवेशक, जो भावनाओं के जाल में फंसकर खरीद-बिक्री करते हैं. लेकिन, अगर कोई दिग्‍गज निवेशक वॉरेन बफेट की रणनीतियों को अपनाए तो वो बाजार के रहस्‍यमयी तिलिस्‍म को तोड़कर मुनाफे का मार्ग खोज सकता है.

जब बात शेयर बाजार से कमाई की आती है तो ज़्यादातर निवेशक सिर्फ एक ही दिशा में देखते हैं- ” शेयर कब खरीदें.” लेकिन शेयर बाजार के बादशाह वॉरेन बफेट की कमाई का राज छुपा है उनकी “कब बेचना है” वाली रणनीति में. और यही वो कला है जो 90% भारतीय निवेशकों की समझ से अब तक तो बाहर ही है. NSE के आंकड़े बताते हैं कि 90% से ज्यादा रिटेल ट्रेडर्स को घाटा होता है. इसकी वजह है तेजी में लालच, गिरावट में डर, और लगातार ‘हॉट टिप्स’ के पीछे भागना. वहीं, वॉरेन बफेट किसी स्‍टॉक को खरीदने या बेचने का निर्णय कंपनी के बिजनेस की मजबूती, सही वैल्यू और बेहतर अवसर के आधार पर करते हैं. धैर्य उनका वो हथियार है, जिससे वे बाजार के हर उतार-चढाव में मुनाफा कूट लेते हैं.

बफेट कभी सिर्फ इसलिए शेयर नहीं बेचते कि उन्होंने उसे कई सालों से रखा है या वह थोड़ा बढ़ गया है. वो तब बेचते हैं जब कंपनी की आंतरिक शक्ति, यानी उसकी ग्रोथ, प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता या नेतृत्व कमजोर पड़ने लगे. 2004 में बर्कशायर हेथवे के निवेशकों को संबोधित पत्र में बफेट ने लिखा, “हम सिर्फ प्राइस मूवमेंट की वजह से नहीं बेचते. हम तब बेचते हैं जब बिजनेस हमारे भरोसे के काबिल नहीं रहता.”

मान लीजिए आपने किसी रिटेल कंपनी के शेयर खरीदे थे, लेकिन अब वह ई-कॉमर्स की टक्कर में पिछड़ रही है, डिजिटल इनोवेशन में पीछे है और उसका मुनाफा गिर रहा है,  ऐसे में सिर्फ ब्रांड नेम के भरोसे उसे पकड़कर रखना एक गलती होगी. ऐसे शेयर को बेचकर निकल जाना ही बेहतर है. बफेट का कहना है, “अगर स्टॉक खरीदने की जो वजह थी, वो अब नहीं बची  तो वक्त है अलविदा कहने का.”

बिना वजह महंगा हुआ शेयर, बेच डालो

बफेट वैल्यू इन्वेस्टिंग के गुरु बेंजामिन ग्राहम के शिष्य हैं. वो स्टॉक्स को खरीदते हैं जब वे सस्ते होते हैं, और बेचते हैं जब बाजार उन्हें बिना वजह महंगा कर देता है. उनके अनुसार,  “अगर किसी स्टॉक की कीमत उसकी आंतरिक वैल्यू से बहुत ऊपर चली जाए, तो आपको कोई एक्‍शन लेना चाहिए.” एक्‍शन से बफेट का मतलब है-बेच डालो. उदाहरण के लिए 2021–22 में भारत में IPO की बाढ़ आई थी. जोमेटो, नायका और पेटीएम जैसी न्‍यू एज कंपनियों के स्टॉक्स को ऊंचे दामों पर खरीदा गया. लेकिन फिर क्या हुआ? भारी गिरावट. बफेट ऐसे महंगे स्टॉक्स को पहले ही बेच देते. PE रेशियो, प्राइस-टू-बुक वैल्यू, कैश फ्लो मॉडल्स जैसे टूल्स का इस्तेमाल करें और देखें कि क्या आपकी होल्डिंग्स अभी भी वैल्यू फॉर मनी हैं या सिर्फ ‘हाइप’.

हड़बड़ी में कभी मत बेचो

2008 के मार्केट क्रैश के दौरान बफेट ने एक लेख लिखा. बफेट ने कहा,  “जब दूसरे लालची हों, तो डरें. जब दूसरे डरें, तो आप लालची बनें.” यानी हड़बड़ी में कोई काम न करे. जब दूसरे पेनिक सेलिंग करते हैं तो शेयर सस्‍ते हो जाते हैं. बफेट इसे बढिया शेयरों में निवेश का सही मौका मानते हैं. अधिकतर भारतीय रिटेल निवेशकों की सबसे बड़ी गलती यह है कि  गिरते बाजार में अच्छे स्टॉक्स भी डर के मारे बेच देते हैं. 2017 में निवेशकों को संबोधित अपने लेटर में बफेट ने रडयार्ड किपलिंग को उद्धृत करते हुए लिखा, “अगर आप शांत रह सकते हैं जब बाकी सब घबरा रहे हों… तो आप सफल हो सकते हैं.” बैंकिंग, आईटी और एफएमसीजी  जैसे मजबूत सेक्टर में जब गिरावट आती है, तो लॉन्ग टर्म निवेशक बने रहना ही सही रणनीति होती है. इतिहास गवाह है कि बीएसई सेंसेक्‍स  हर क्रैश के बाद रिकवर होता है.

बफेट की रणनीति क्यों नहीं अपनाते इंडियन

इसका सीधा सा जवाब है बाजार में ज्ञान से ज्यादा भावनाओं का चलना. तेजी में लालच, गिरावट में डर और सोशल मीडिया से मिली ‘टिप्स’ ही अधिकतर रिटेल निवेशकों की लुटिया डूबोते हैं. निवेशक अक्सर कंपनी की बुनियादी सेहत देखने के बजाय केवल शेयर प्राइस पर ध्यान देते हैं. साथ ही, डे ट्रेडिंग और ऑप्शन ट्रेडिंग का रोमांच उन्हें बफेट की धैर्य वाली रणनीति से भटका देता है. बफेट के अनुसार,  “जो लोग हर वक्त स्टॉक्स को खरीदते-बेचते रहते हैं, वे अक्सर तब फंसते हैं जब बाजार पलटता है.”

बफेट की सेलिंग स्‍ट्रेटेजी

बिजनेस को समझें: क्या कंपनी लगातार प्रॉफिट कमा रही है? उसका नेतृत्व मज़बूत है? क्या वो अपने सेक्टर में आगे है?

वैल्यूएशन देखें: क्या स्टॉक बहुत महंगा हो चुका है? अगर हां, तो एक्ज़िट पर विचार करें.

पैनिक में न बेचें: मार्केट क्रैश में तब तक न बेचें जब तक बिजनेस ही खतरे में न हो. गिरावट में होल्ड करना ही दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है.

धैर्य: बफेट के अनुसार, अगर आप किसी स्टॉक को 10 साल तक रखने के बारे में नहीं सोच सकते, तो उसे 10 मिनट भी मत रखिए.

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