यूं तो भारतीय शेयर बाजार को म्यूचुअल फंड निवेशकों ने अच्छे से संभाला हुआ है, मगर विदेशी निवेशकों (FIIs) की बिकवाली से बाजार में भूचाल आता ही है. आज बुधवार को शेयर बाजार बेशक हरे निशान में नजर आ रहा है, मगर एक दिन पहले का FIIs की बिकवाली का आंकड़ा देखें तो भय लगता है. आशंका है कि कहीं भारतीय बाजार फिर से बेयर की गिरफ्त में न आ जाए. कुल मिलाकर अभी तक यह श्योर नहीं है कि बाजार में रौनक कब तक बनी रहेगी.
Geojit के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट डॉ. वी. के. विजयकुमार ने कहा कि मई में FIIs ने जमकर खरीदारी की थी, लेकिन अब उन्होंने अपना रुख बदल लिया है और यह बाजार के लिए खतरे की घंटी हो सकता है. उन्होंने कहा कि बाजार में अचानक से अनिश्चितता और जोखिम बढ़ गया है, जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी. FIIs द्वारा 20 मई को 10,016 करोड़ रुपये की बड़ी बिकवाली सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई वैश्विक वजहें हैं- जैसे अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग में कटौती, अमेरिका और जापान में बॉन्ड यील्ड में तेजी, भारत में फिर से बढ़ते कोविड केस और इजराइल-ईरान के बीच तनाव की आशंका.
बॉन्ड बाजार की हलचल को भी गंभीरता से लिया जा रहा है. अमेरिका के 30 साल के बॉन्ड पर 5 फीसदी और जापान के बॉन्ड पर 3.14 फीसदी यील्ड मिलना निवेशकों को बेचैन कर रहा है. विजयकुमार ने निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी है.
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बता दें कि विदेशी निवेशकों ने मई में लगभग 23 हजार करोड़ रुपये की खरीदारी की थी. लेकिन 20 मई को 10,000 करोड़ से अधिक की बिकवाली एक ही झटके में कर देना चिंता की बात तो है. मई के पूरे महीने का हिसाब (20 मई तक) देखें तो विदेशी निवेशकों ने 13,240.59 रुपये की शुद्ध खरीदारी की है. घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने 29,799.01 करोड़ की शुद्ध खरीदारी की है. दोनों की खरीदारी की बदौलत ही मई में शेयर बाजार का अच्छा मूड देखने को मिला है.
क्या-क्या हैं चिंताएं
इकॉनमिक्स टाइम्स ने कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ के हवाल से लिखा कि हाल ही में भारतीय शेयर बाजार में जो तेजी दिख रही है, उसका हकीकत से दूर का नाता है. दुनियाभर में व्यापार अस्थिर है, भारत-अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की बात आगे नहीं बढ़ रही है, कंपनियों की कमाई कमजोर हो रही है और शेयरों की कीमतें काफी ऊंची हो गई हैं. कोटक के संजीव प्रसाद ने कहा कि बाजार बार-बार अधूरी कहानियों पर भरोसा कर लेता है, जैसे अभी डिफेंस सेक्टर को लेकर हो रहा है. बीते 2-3 साल में ऐसी कई ऐसी ही कहानियां आईं और चली भी गईं.
मार्च तिमाही की कमाई भी बाजार को बहुत सहारा नहीं दे सकी. निफ्टी50 कंपनियों का मुनाफा साल दर साल 7.5 फीसदी बढ़ा है, लेकिन इसमें भी ज़्यादातर योगदान बैंकों और ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का था.
भारत और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में ज्यादा अंतर नहीं
हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि भारत और अमेरिका के 10 साल के बॉन्ड यील्ड में अंतर अब सिर्फ 175 बेसिस पॉइंट्स रह गया है, जो पिछले 20 साल में सबसे कम है. इससे भारत में निवेश का रिस्क प्रीमियम काफी कम हो गया है और शेयर बाजार में ऊंचे वैल्यूएशन को सही ठहराया जा सकता है, बशर्ते भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी रहे.
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज़ के विनोद कार्की के अनुसार, भारत की तुलना में अमेरिका की स्थिति कई मामलों में कमजोर हुई है, जैसे अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटी है, जबकि भारत की बढ़ी है, अमेरिका का फिस्कल और चालू खाता घाटा बढ़ा है, और महंगाई का खतरा वहां ज़्यादा है. अमेरिका की GDP पहली तिमाही में घट गई है, जबकि भारत की GDP 6% से ऊपर रहने की उम्मीद है.
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