FIIs Data : पिछले कुछ दिनों से विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) भारतीय शेयर बाजार में लगातार पैसा लगा रहे हैं. 7 सत्रों में उन्होंने लगभग 30,000 करोड़ रुपये की इक्विटी (शेयर) की खरीद की है. अक्टूबर 2024 से लगातार माल बेच रहे FIIs को ऐसा क्या दिखने लगा है, जो उन्हें भारत में निवेश करने को प्रेरित कर रहा है. इसे समझने की जरूरत है. आमतौर पर विदेशी निवेशक वहां पैसा लगाना पसंद करते हैं, जहां से उन्हें बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद हो. इसके पीछे दो कारक होते हैं- एक तो वह देश स्थिर हो और उसकी ग्रोथ अच्छी हो रही हो और दूसरा वैश्विक स्थितियां बेहतर हों. फिलहाल दोनों की स्थितियां सुधार की तरफ इशारा कर रही हैं और इन्हीं दोनों कारणों से विदेशी निवेशकों को निवेशक के लिए भारत पसंद आ रहा है.
भारतीय शेयर बाज़ार अच्छी तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि आज (शुक्रवार) को शेयर बाज़ार में थोड़ी गिरावट आई. उधर, अमेरिका के शेयर बाज़ार में भी हाल के दिनों में तेज़ी देखने को मिली है, जबकि डॉलर एक जोन में ही बना हुआ है. एक्सपर्ट मानते हैं कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक हालात सुधर रहे हैं और वित्त वर्ष 2026 में कंपनियों के बेहतर नतीजों की उम्मीद भी निवेशकों के भरोसे को मज़बूती दे रही है.
किस दिन कितने की खरीदारी
तिथिकरोड़ों में खरीदारी24-Apr-25+8,250.5323-Apr-25+3,332.9322-Apr-25+1,290.4321-Apr-25+1,970.1717-Apr-25+4,667.9416-Apr-25+3,936.4215-Apr-25+6,065.78इससे पहले अप्रैल के महीने में FIIs ने केवल सेलिंग की.(Source : Moneycontrol.)
रेसिप्रोकल टैरिफ पर बदल रहा माहौलद फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने मोतिलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के वेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च प्रमुख सिद्धार्थ खेमका के हवाले से लिखा- हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ की स्थिति में बदलाव आया है, जिसका सीधा फायदा भारत को मिल रहा है. भारत अब अन्य एशियाई देशों की तुलना में कम शुल्क वाला देश और भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखा जा रहा है. वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत का यह स्टैंड मज़बूत दिखाई देता है.
इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में बाज़ार में जो गिरावट आई थी, उसने वैल्यूएशन को आकर्षक बनाया है. कंपनियों के नतीजों को लेकर जो चिंताएं थीं, वे भी अब थमती नज़र आ रही हैं. खेमका का मानना है कि Q4 शायद आख़िरी तिमाही होगी, जिसमें नतीजे इतने सुस्त रहे हैं. आगे की कमेंट्री बता रही है कि घरेलू खपत में तेजी आ रही है, मानसून बेहतर रहने की संभावना है और इससे खेती-बाड़ी से जुड़ी कंपनियों को फायदा मिलेगा.
RBI की भूमिका और घरेलू सेक्टर की मज़बूतीएक और महत्वपूर्ण वजह यह है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल के दिनों में बाज़ार में काफी नकदी डाली है, जिससे बैंकिंग और फाइनेंशियल सेक्टर को मजबूती मिली है. ये स्टॉक्स इंडेक्स का करीब 30% हिस्सा हैं और ज़्यादातर कंपनियां घरेलू फोकस वाली हैं, यानि वैश्विक उतार-चढ़ाव का इन पर असर कम पड़ता है.
IMF का अनुमान और भारत की उम्मीदेंहालांकि IMF ने भारत की ग्रोथ रेट का अनुमान घटाकर 6.2 फीसद कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद भारत 2025 और 2026 में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. वहीं वैश्विक स्तर पर IMF की ग्रोथ की भविष्यवाणी मात्र 2.8 फीसद (2025) और 3 फीसद (2026) की है, जिससे भारत की स्थिति और भी मज़बूत दिखती है.
खेमका कहते हैं, “भले ही IMF का अनुमान थोड़ा कम हुआ है, लेकिन भारत अब भी 6 प्रतिशत से ज़्यादा की विकास दर देने की स्थिति में है. बाज़ार पहले ही बुरे हालात को डिस्काउंट कर चुका है, और टैरिफ को लेकर जो शोर था, वह भी धीरे-धीरे शांत पड़ता दिख रहा है, जो भारत के लिए शुभ संकेत है.”
अब देखना ये है कि अप्रैल महीने के अंतिम आंकड़े क्या संकेत देते हैं. क्या FII की ये खरीददारी का सिलसिला मई में भी बरकरार रहेगा? इस बीच भारतीय शेयर बाज़ार हरे निशान में बंद हुआ है, जिससे उम्मीद की रोशनी और भी तेज़ हो गई है.
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