नई दिल्ली. 13 अप्रैल 2022 की रात थी. वक्त 11:53 बजे का. बेंगलुरु के कृष्णराजपुरम (KJM) स्टेशन पर 65 वर्षीय पूर्णा रामकृष्ण और उनकी पत्नी हिमावती गुवाहाटी एक्सप्रेस पकड़ने पहुंचे थे. विजयवाड़ा तक की यात्रा के लिए उनके पास ₹892.5 की कीमत वाली आरक्षित स्लीपर क्लास टिकट थी. स्टेशन तक पहुंचने के लिए उन्होंने पहले ही ₹165 ऑटो में खर्च कर दिए थे. लेकिन जब ट्रेन आई, तो हालात कुछ और ही थे. एस2 कोच में इतनी भीड़ थी कि चढ़ पाना लगभग नामुमकिन था. ट्रेन महज दो मिनट रुकी. इस दौरान कोई रेलवे स्टाफ या मददगार नजर नहीं आया. ऐसे में उन्होंने जोखिम लेने के बजाय घर लौटने का कठिन फैसला लिया. लेकिन यही फैसला उन्हें इतना महंगा पड़ेगा, उन्होंने सोचा भी नहीं था.
ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दंपती ने रेलवे को ईमेल, मैसेज और शिकायतें भेजीं, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. उम्मीद थी कि रेलवे खुद TDR (Ticket Deposit Receipt) फाइल करेगा, क्योंकि उन्होंने स्थिति की जानकारी उसी रात भेज दी थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. आखिरकार उन्होंने बेंगलुरु अर्बन II जिला उपभोक्ता आयोग में केस फाइल किया. रेलवे ने 45 दिन की तय सीमा में कोई जवाब दाखिल नहीं किया. इसी आधार पर आयोग ने जुलाई 2023 में केस खारिज कर दिया. लेकिन दंपती ने हार नहीं मानी. उन्होंने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की, जहां से केस फिर से सुनवाई के लिए जिला फोरम को भेजा गया.
सिर्फ एक यात्रा नहीं, पूरे सफर की चेन टूट गई
ट्रेन में न चढ़ पाने की वजह से उनकी आगे की सारी यात्राएं रद्द हो गईं. कोन्डवीडू एक्सप्रेस के लिए उनकी एक ई-टिकट कन्फर्म थी, लेकिन मजबूरी में दोनों टिकट रद्द करनी पड़ी. 21 अप्रैल की वापसी यात्रा के टिकट भी बेकार हो गए. यात्रा नहीं हो पाई, पैसे भी डूबे, और मानसिक पीड़ा भी झेलनी पड़ी.
ये तो आपका फैसला था, कोई गलती हमारी नहीं
दक्षिण पश्चिम रेलवे ने अपनी सफाई में कहा कि दंपती का ‘भीड़ होने’ का दावा झूठा और निराधार है. रेलवे ने कहा कि उस रात KJM स्टेशन से 134 यात्री चढ़े थे, जिनमें से किसी ने कोई शिकायत नहीं की — “सिवाय इस बुजुर्ग दंपती के”. रेलवे का कहना था कि ट्रेन पूरी तरह आरक्षित थी, और कोविड के बाद अनारक्षित टिकटों की बिक्री भी शुरू हो चुकी थी. साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ा कि कोई शिकायत न स्टेशन मास्टर को दी गई और न ही RPF को. इसलिए यह मामला ‘सेवा में कमी’ नहीं बल्कि दंपती का ‘निजी फैसला’ था.
लेकिन रेलवे का ही एक दस्तावेज बन गया सबसे बड़ा सबूत
रेलवे की इस दलील को एक दस्तावेज़ ने झुठला दिया. 6 मई 2022 की एक आधिकारिक चिट्ठी में रेलवे ने खुद माना था कि उस समय “बिना टिकट यात्रा में इजाफा हो रहा है” और “राजस्व नुकसान रोकने के लिए अनारक्षित टिकट जारी करने” की सिफारिश की गई थी. यानी रेलवे को खुद पता था कि गाड़ियों में भीड़ बढ़ रही है. आयोग ने इस चिट्ठी को एक अहम सबूत माना और कहा कि “आंतरिक रिकॉर्ड जमीनी सच्चाई को नहीं झुठला सकते” — खासकर तब, जब आधी रात को स्टेशन पर कोई मदद न हो और यात्री चढ़ ही न पाएं.
आखिरकार मिला न्याय
मार्च 2025 में आयोग ने फैसला सुनाया कि दंपती को ₹892.5 का किराया रिफंड किया जाए, ₹5,000 मुआवजा मानसिक तनाव और सेवा में कमी के लिए दिया जाए, और ₹3,000 मुकदमेबाजी खर्च के तौर पर दिए जाएं.
ये सिर्फ रिफंड की लड़ाई नहीं थी
रेलवे बार-बार तकनीकी नियमों की बात करता रहा — TDR चार घंटे पहले डालना था, स्टेशन मास्टर से कहना था और टिकट न रद्द करने पर रिफंड नहीं मिलेगा. लेकिन आयोग ने साफ कहा कि जब जमीनी हालात ही टिकट का उपयोग करने से रोक दें, तो उस टिकट की वैधता का कोई मतलब नहीं रह जाता.
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