एक हाथ में लोटा, दूसरे में धोती..इस शर्मनाक घटना के बाद लगे ट्रेनों में टॉयलेट

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Last Updated:April 16, 2025, 19:14 ISTभारत में पहली ट्रेन 1853 में चली. लेकिन, 1909 तक ट्रेनों में टॉयलेट नहीं होते थे. यात्रियों को किसी स्‍टेशन पर ट्रेन रूकने पर ही वहां मौजूद शौचालय या फिर पटरियों की पास की खाली जगह पर पेशाब करने को जाना होता थ…और पढ़ेंशुरूआत में ट्रेनों में शौचालय नहीं होते थे. हाइलाइट्स1909 तक भारतीय ट्रेनों में टॉयलेट नहीं होते थे.ओखिल चंद्र सेन की शिकायत पर ट्रेनों में टॉयलेट लगे.2016 से रेल इंजन में टॉयलेट लगने शुरू हुए.नई दिल्‍ली. साल 1853 से भारत में शुरू हुई ट्रेन का रंग-रूप और चाल-ढाल, अब सबकुछ बदल चुका है. भारत में आज वंदे भारत जैसी लग्‍जरी ट्रेन दौड़ रही है जो यात्रियों को हवाई जहाज वाली ‘फील’ देती है. चकाचक डिब्‍बे, बेहतरीन खाना और शानदार रफ्तार यात्रियों के सफर को रोमांचक बना देती है. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि भारत में ट्रेन चलने के 56 साल बाद तक तो रेलगाडियों में टॉयलेट ही नहीं होते थे. यात्री को ट्रेन के रुकने पर स्टेशन पर बने शौचालय में जाकर या फिर खुले मैदान-जंगल में नित्य क्रिया करनी पड़ती थी. यह सिलसिला 1909 तक चला. शायद यह सिलसिला और भी लंबा चलता अगर आखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री की पटरियों के किनारे शौच करते ट्रेन न छूटती. आखिल चंद्र सेन ने अपनी साथ घटी इस घटना की जानकारी पत्र लिखकर रेलवे अधिकारियों को दी ट्रेन में टॉयलेट न होने से यात्रियों को होने वाली परेशानी के बारे में बताया. इस पत्र के बाद ही रेलवे ने ट्रेनों में टॉयलेट लगाने की कवायद शुरू की.

दरअसल, ओखिल चंद्र सेन रेल में सफर कर रहे थे. उनका पेट खराब हो गया. ट्रेन जब पश्चिम बंगाल के अहमदपुर स्‍टेशन पर रूकी तो सेन लोटा लेकर पटरियों के पास ही शौच करने चले गए. आखिल चंद्र जब तक फारिग होते, उससे पहले ही गार्ड ने सीटी बजा दी और ट्रेन धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई. ओखिल बाबू “एक हाथ में लोटा, दूसरे में धोती” लेकर भागे. हड़बड़ी में वे गिर गए और ट्रेन न पकड़ सके. ट्रेन के गार्ड की हरकत से वे आग-बबूला हो गए. ट्रेन के गार्ड की इस हरकत की शिकायत उन्‍होंने लेटर लिखकर रेलवे के साहिबगंज मंडल कार्यालय से की. उनका लिखा लिखा यह पत्र आज भी दिल्ली के रेलवे म्यूजियम में रखा हुआ है.

एक पत्र ने लगवा दिए टॉयलेटओखिल चंद्र सेन ने पत्र में लिखा, “श्रीमान, मैं ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन पहुंचा. मेरा पेट खराब था. इसलिए मैं शौच के लिए चला गया. मैं निवृत हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजा दी, मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती पकड़कर भागा. मैं गिर गया और स्टेशन पर मौजूद औरतों और मर्दों सबने देखा…मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया. यह बहुत ग़लत बात है, अगर यात्री शौच के लिए जाते हैं तब भी गार्ड कुछ मिनटों के लिए ट्रेन नहीं रोकते? इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाए. वर्ना यह ख़बर अख़बार को दे दूंगा.”

माना जाता है कि ओखिल चंद्र के पत्र के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने इस मामले को संज्ञान में लिया और 50 मील से ज्यादा दूरी तय करने वाली ट्रेनों में शौचायल बनाने की कवायद शुरू की. यात्रियों को भले ही यह सुविधा 1909 में मिल गई हो, लेकिन सभी लोको पायलटों को रेल इंजन में टॉयलेट की सुविधा अभी तक भी नहीं मिली है. साल 2016 से रेल इंजन में टॉयलेट लगने शुरू हुए थे. लेकिन, अब भी ज्‍यादातर ट्रेनों में यह सुविधा नहीं है.
Location :New Delhi,New Delhi,DelhiFirst Published :April 16, 2025, 19:14 ISThomebusinessएक हाथ में लोटा, दूसरे में धोती..इस शर्मनाक घटना के बाद लगे ट्रेनों में टॉयलेट

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