नई दिल्ली. भारतीय रेल पहले के मुकाबले अब भले बेहतर स्थिति में काम कर रही हो लेकिन ट्रैक पर कंजेशन की वजह से आज भी अधिकांश ट्रेनों की टाइमिंग गड़बड़ रहती है. ट्रेनों से लेकर स्टेशनों तक की हालत पर बहस की जा सकती है कि वह कितनी अच्छी या बुरी हैं. लेकिन एक बात तय है कि भारतीय रेलवे समय-समय पर कुछ ऐसे इनिशिएटिव लेती रहती है जो दुनिया के लिए भी एक मिसाल बन जाते हैं. ऐसा ही कुछ कारनामा भारतीय रेल एक बार फिर करने जा रही है. दरअसल, इंडियन रेलवे को 2030 कर जीरो कार्बन एमिशन का लक्ष्य हासिल करना था. इसका मतलब है कि रेलवे का परिचालन पूरी तरह ग्रीन एनर्जी पर आधारित होगा. यह बेशक एक बहुत जटिल और बड़ा काम है लेकिन भारतीय रेलवे बहुत सहजता के साथ इसे पूरा करने के करीब पहुंच गई है, वह भी काफी समय रहते.
इंडियन रेलवे अपने 2030 के नेट जीरो एमिशन (Zero Emission) के लक्ष्य को तय समय से पहले हासिल करने के करीब है. उम्मीद है कि यह कामयाबी इसी साल हासिल कर ली जाएगी. यानी आने वाले महीनों में रेलवे डीजल पर नहीं, लगभग पूरी तरह बिजली पर दौड़ता दिखेगा – और वो भी ग्रीन एनर्जी के दम पर. रेलवे अधिकारियों के मुताबिक दिसंबर 2025 तक इंडियन रेलवे ‘स्कोप-1 नेट ज़ीरो’ हासिल कर लेगा. इसमें रेलवे अपने 2.2 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन को ऑफसेट करने में सफल रहेगा, जो उसकी कुल स्कोप-1 एमिशन से 2 लाख टन ज्यादा होगा. स्कोप-1 में वो डायरेक्ट एमिशन आते हैं, जो डीज़ल इंजन से होते हैं. लेकिन अब 90% ट्रैक्शन (ट्रेन चलाने की ऊर्जा) इलेक्ट्रिक हो चुका है, और 2029-30 तक यह 95% तक पहुंच जाएगा.
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हर साल घटता कार्बन फुटप्रिंट
2023-24 में रेलवे का कार्बन उत्सर्जन 3.32 मिलियन टन प्रति वर्ष था. 2024-25 में यह घटकर 2.02 मिलियन टन पर आ गया है. 2025-26 में यह और गिरकर 1.37 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा. रेलवे इसके साथ-साथ स्कोप-2 और 3 एमिशन (जैसे कि बिजली उत्पादन और सप्लाई चेन से जुड़े उत्सर्जन) को भी कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
बिजली की जरूरत और स्रोत
2030 तक रेलवे को 10 गीगावाट (GW) बिजली की जरूरत होगी, जिसमें से 3 GW सोलर, विंड और हाइड्रो जैसे रिन्यूएबल स्रोतों से आएगी, 3 GW थर्मल और न्यूक्लियर पावर से, और बाकी 4 GW बिजली वितरण कंपनियों के साथ समझौतों से. रेलवे ने 2 GW न्यूक्लियर पॉवर के लिए भी मिनिस्ट्री ऑफ पावर से आग्रह किया है.
टेक्नोलॉजी और इनोवेशन से नई रफ्तार
रेलवे सिर्फ बिजली पर नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी से भी ग्रीन हो रहा है. WAG-12 जैसी एनर्जी एफिशिएंट इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के अलावा रेलवे स्मार्ट ग्रिड और बैटरी स्टोरेज जैसी तकनीकों को अपनाकर पावर लॉस को कम कर रहा है. हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों पर भी ट्रायल 2027 तक शुरू हो सकता है.
आर्थिक फायदे भी कम नहीं
डीजल की जगह बिजली से ट्रेनों को चलाने से रेलवे को बड़ा आर्थिक लाभ हो रहा है. 2025-26 तक डीज़ल पर होने वाला खर्च 9,528 करोड़ रुपये तक घट जाएगा, जो पिछले दशक का सबसे कम आंकड़ा होगा. इस बचत से रेलवे यात्री सुविधाओं और नई तकनीकों में फिर से निवेश कर पाएगा.
ग्रीन इनिशिएटिव का व्यापक असर
रेलवे की ये पहल न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि भारत के 500 GW रिन्यूएबल एनर्जी लक्ष्य में भी बड़ा योगदान देगी. ग्रामीण इलाकों में सोलर और विंड प्रोजेक्ट से रोजगार बढ़ेगा और लोकल इकॉनमी को भी सहारा मिलेगा.
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