बनारस रेल इंजन कारखाना (बरेका-Banaras Locomotive Works BLW), जिसे पहले डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डीएलडब्ल्यू) के नाम से जाना जाता था, इस रेल इंजन के नाम एक और कीर्तिमान स्थापित हो गया है. शनिवार को बरेका में बने 2500वें इलेक्ट्रिक रेल इंजन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया.
2023 तक 10,000 इंजन बनाकर बरेका ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई. इसके इंजन बांग्लादेश, श्रीलंका और मोजांबिक जैसे देशों में भी दौड़ रहे हैं.
पर्यावरण के लिए वरदान
1961 में स्थापित बरेका ने पहले डीजल इंजन बनाए, लेकिन 2017 से इलेक्ट्रिक इंजनों का निर्माण शुरू किया. ये इंजन रीजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम से ऊर्जा बचाते हैं और प्रदूषण कम करते हैं, जो पर्यावरण के लिए वरदान है. बरेका अब CNG और डुअल-मोड इंजन भी बना रहा है, जो ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत की मिसाल है. यह 2500वां इंजन भारतीय रेलवे के इलेक्ट्रिक भविष्य की ओर एक और कदम है.
बनारस रेल इंजन कारखाने से जुड़ी खास बातें
बनारस रेल इंजन कारखाने की नींव देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1956 में रखी थी, और 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसका उद्घाटन किया. शुरू में यह अमेरिकी कंपनी एल्को के सहयोग से डीजल-इलेक्ट्रिक रेल इंजन बनाता था. साल 1976 में इसने तंजानिया को पहला इंजन निर्यात करके अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रखा. समय के साथ, बरेका ने 2017 से इलेक्ट्रिक इंजनों का निर्माण शुरू किया और 2020 में इसका नाम बदलकर बनारस रेल इंजन कारखाना कर दिया गया. साल 2023 तक, इसने 10,000 इंजनों का निर्माण कर एक ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया.
367 इंजन का बनाया रिकॉर्ड
भारतीय रेलवे का गौरव के रूप में बरेका ऊभरकर निकला है. यहां बने WAP-7 और WAG-9 जैसे आधुनिक इलेक्ट्रिक इंजन 140 किमी/घंटा तक की रफ्तार और 6000 अश्वशक्ति की ताकत रखते हैं. ये इंजन ऊर्जा बचाने और प्रदूषण कम करने में भी मदद करते हैं, जैसे कि रीजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम और फॉग सेफ डिवाइस आदि. रोचक बात यह है कि बरेका ने 2022 में 365 दिनों में 367 इंजन बनाकर रिकॉर्ड बनाया. यहां से बने इंजन न सिर्फ भारतीय रेलवे के लिए, बल्कि बांग्लादेश, श्रीलंका, तंजानिया जैसे देशों और निजी कंपनियों के लिए भी निर्यात किए जाते हैं. ये ‘मेक इन इंडिया’ का बड़ा उदाहरण बनकर ऊभरा है.
BLW ने अब तक 13 से ज्यादा देशों को 172 इंजन भेजे हैं. यह इस बात का साफ संकेत है कि भारतीय तकनीक, इंजीनियरिंग और मेहनत पर अब पूरी दुनिया भरोसा कर रही है.
इन देशों में भेजे इंजन
अगर बात करें किन-किन देशों को ये इंजन मिले हैं तो सबसे ज्यादा इंजन बांग्लादेश (44), म्यांमार (29) और मोज़ाम्बिक (8) को भेजे गए हैं. इसके अलावा श्रीलंका, सूडान, अंगोला, मलेशिया, वियतनाम, सेनेगल, तंजानिया, माली और सिंगापुर जैसे देशों में भी BLW के बने इंजन अपनी ताकत दिखा रहे हैं.
इन एक्सपोर्ट इंजनों की सबसे खास बात ये है कि ये पूरी तरह से भारत में ही बनते हैं यानी 100% मेड इन इंडिया. इनमें माइक्रोप्रोसेसर कंट्रोल और AC-AC ट्रैक्शन सिस्टम जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है. इनका डिजाइन ऐसा होता है जिससे ये कम ईंधन खर्च करते हैं, रखरखाव में भी ज्यादा खर्च नहीं आता और लंबे समय तक टिके रहते हैं. इनकी ताकत 1350 हॉर्सपावर से लेकर 4500 हॉर्सपावर तक होती है, जो पैसेंजर ट्रेनों से लेकर भारी मालगाड़ियों तक को आसानी से खींच सकते हैं.
सरकार का वीजन
जहां भारत अब ज़्यादातर इलेक्ट्रिक इंजन बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है, वहीं दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां आज भी रेल नेटवर्क पूरी तरह इलेक्ट्रिक नहीं हुआ है. खासकर अफ्रीका और एशिया के कुछ इलाकों में अब भी डीज़ल इंजनों की जरूरत है. BLW ऐसे इलाकों के लिए खास तौर पर डीजल इंजन बना रहा है.
भारत से बाहर जा रहे ये इंजन सिर्फ मेटल की मशीनें नहीं हैं, ये भारत की पहचान, मेहनत और आत्मनिर्भर सोच का प्रतीक बन चुके हैं. आज भारत सिर्फ ट्रेन खरीदने वाला देश नहीं, बल्कि उन्हें बनाने और दुनिया को देने वाला एक भरोसेमंद साथी बन गया है.
सरकार का भी सपना है कि भारतीय रेलवे पूरी तरह आत्मनिर्भर हो, तकनीकी रूप से मजबूत हो और दुनिया भर में अपनी पहचान बनाए। BLW इस सपने को हकीकत में बदलने वाली मजबूत कड़ी बन चुकी है.
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