भारत के रियल एस्टेट बाज़ार में अब एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले जहां मेट्रो शहरों को सबसे तेज़ ग्रोथ वाला इलाका माना जाता था, अब टियर-2 यानी छोटे शहर तेजी से आगे निकलते दिख रहे हैं. मैजिकब्रिक्स की नई रिपोर्ट बताती है कि इन टियर-2 शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें मेट्रो शहरों से ज़्यादा तेजी से बढ़ी हैं. जहां दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में औसतन 15.7% की बढ़ोतरी हुई, वहीं टियर-2 शहरों में यह ग्रोथ 17.6% तक पहुंच गई है. इसका मतलब यह है कि अब लोग बड़े शहरों की बजाय छोटे और उभरते शहरों में निवेश को ज़्यादा सही विकल्प मान रहे हैं.
उत्तर भारत इस बदलाव में सबसे आगे है. कानपुर में प्रॉपर्टी की कीमतों में साल भर में 24.53% और लखनऊ में 22.61% का ज़बरदस्त उछाल देखा गया. इसी तरह देहरादून, जयपुर और पटना जैसे शहरों में भी मांग लगातार बढ़ रही है, जिसकी वजह है- किफायती दाम, बेहतर लाइफस्टाइल और अब उपलब्ध होते अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर. उदाहरण के तौर पर लखनऊ में प्रॉपर्टी का औसत रेट ₹6,394 प्रति वर्ग फुट है, जबकि दिल्ली में यह ₹18,618 है. ऐसे में यह अंतर निवेशकों और आम लोगों दोनों के लिए इन शहरों को ज़्यादा आकर्षक बना देता है.
टियर-2 शहरों में प्रॉपर्टी की इस रफ्तार के पीछे कई ठोस कारण हैं. सबसे पहला कारण है बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास. अब इन शहरों में अच्छी सड़कें, मेट्रो सेवाएं, नए एयरपोर्ट्स और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं, जिससे यहां रहना पहले से बहुत सुविधाजनक हो गया है. दूसरा कारण है- किफायती रेट. मेट्रो शहरों की तुलना में यहां फ्लैट्स और प्लॉट्स सस्ते हैं, जिससे आम मध्यमवर्गीय लोग भी अब घर खरीदने के बारे में सोचने लगे हैं.
तीसरा बड़ा कारण है बेहतर और सुकूनभरा लाइफस्टाइल. भीड़भाड़, ट्रैफिक और महंगाई से परेशान लोग अब ऐसे शहरों को पसंद कर रहे हैं जहां शांति और सुकून हो, स्पेस हो और खर्च कम हो. साथ ही छोटे शहरों में अब इंडस्ट्री, IT और ITeS (आईटी और सेवा क्षेत्र) में तेजी से निवेश हो रहा है, जिससे रोजगार के मौके भी बढ़े हैं. इससे लोग गांवों और मेट्रो से इन शहरों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं. इसे रिवर्स माइग्रेशन कहा जाता है.
रियल एस्टेट वाले मानते हैं इसे स्थायी ट्रेंड
महामारी के बाद वर्क फ्रॉम होम जैसे ट्रेंड्स ने भी इस बदलाव को तेज़ किया है. अब लोग नौकरी के लिए ज़रूरी नहीं कि मेट्रो शहरों में ही रहें. वे अपने छोटे शहरों से ही काम कर सकते हैं. इससे टियर-2 शहरों की डिमांड बढ़ी है और वहीं से रियल एस्टेट का बूम शुरू हुआ है.
रियल एस्टेट इंडस्ट्री के जानकार भी इस ट्रेंड को स्थायी मान रहे हैं. रॉयल ग्रीन रियल्टी के डायरेक्टर यशांक वासन का कहना है कि टियर-2 शहरों में डबल डिजिट ग्रोथ ये साबित करती है कि यह सिर्फ़ अस्थायी उछाल नहीं, बल्कि एक मज़बूत रुझान है. उनके अनुसार, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार, कनेक्टिविटी और सरकार की नीतियां मिलकर इन शहरों को भविष्य के लिए सबसे बेहतर विकल्प बना रही हैं.
मैप्सको ग्रुप के डायरेक्टर राहुल सिंगला के अनुसार, टियर-2 शहरों की यह बढ़त सिर्फ़ सस्ती जमीन की वजह से नहीं, बल्कि अब वहां बेहतर सुविधाएं, इंटरनेट की पहुंच, और जीवनशैली के बदलाव भी शामिल हैं. अब लोग कम खर्च में ज्यादा बेहतर जीवन चाहते हैं, और टियर-2 शहर उन्हें यह दे रहे हैं.
इस ट्रेंड का फायदा अब सिर्फ़ स्थानीय लोगों को ही नहीं, बल्कि मेट्रो शहरों के बड़े निवेशक भी उठा रहे हैं. वो भी इन छोटे शहरों को एक ऐसे अवसर के रूप में देख रहे हैं, जहां कम लागत में ज़्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. आवासीय और कमर्शियल दोनों तरह की प्रॉपर्टी की मांग में तेज़ बढ़ोतरी ये संकेत देती है कि रियल एस्टेट की दिशा अब बदल रही है.
जैसे-जैसे भारत में सड़क, रेल, इंडस्ट्री और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ेगा, टियर-2 शहर आने वाले समय में रियल एस्टेट ग्रोथ के असली इंजन बनेंगे. ये शहर नई पीढ़ी को न सिर्फ़ अफोर्डेबल घर देंगे, बल्कि एक शांत, बेहतर और संतुलित जीवनशैली का विकल्प भी प्रदान करेंगे. यह बदलाव बताता है कि भारत में अब सिर्फ़ मेट्रो नहीं, बल्कि छोटे शहर भी बड़े सपनों का ठिकाना बनते जा रहे हैं.
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