12 साल बीतते ही आपके हाथ से चला जाएगा मकान, पहले ही कर लें ये काम

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नई दिल्ली. कल्पना करें, आपकी पुश्तैनी जमीन या मेहनत से खरीदा मकान, जिसे आपने सालों तक संभालकर रखा, अचानक किसी और के नाम हो जाए. चौंक गए ना? ये कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि भारत के “12 साल के नियम” या प्रतिकूल कब्जा (Adverse Possession) का सच है. ये कानून आपकी प्रॉपर्टी को 12 साल में किसी और के हवाले कर सकता है, अगर आपने लापरवाही बरती. आइए इसे ठीक से समझते हैं कि आखिर ये माजरा क्या है?

भारत में लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत, अगर कोई व्यक्ति आपकी निजी प्रॉपर्टी (जमीन, मकान, या दुकान) पर लगातार 12 साल तक कब्जा रखता है और आप, यानी असली मालिक, इस दौरान कोई विरोध या कानूनी कदम नहीं उठाते, तो वो व्यक्ति उस प्रॉपर्टी का कानूनी मालिक बन सकता है. ये नियम अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है और इसका मकसद पुराने प्रॉपर्टी विवादों को खत्म करना है. लेकिन ये नियम सरकारी जमीन पर लागू नहीं होता, जहां कब्जे की समय सीमा 30 साल है.

कब्जा 12 साल तक बिना किसी रुकावट के होना चाहिए. बीच में अगर मालिक ने दखल दिया, तो गिनती रुक जाती है.

कब्जा खुलेआम होना चाहिए, यानी सबको पता हो कि वो वहां है. छिपकर कब्जा नहीं चलेगा.

असली मालिक ने 12 साल तक कोई कानूनी कार्रवाई या विरोध न किया हो.

मिसाल के लिए, अगर कोई आपके खाली प्लॉट पर 12 साल से घर बनाकर रह रहा है और आपने कोई एक्शन नहीं लिया, तो वो कोर्ट में प्रॉपर्टी पर दावा कर सकता है.

किराएदार और 12 साल का नियम

किराएदार भी इस नियम का फायदा उठा सकते हैं. अगर कोई किराएदार 12 साल तक आपके मकान में रहता है, रेंट एग्रीमेंट खत्म होने के बाद भी बिना किसी बाधा के वहां रहता है, और मालिक कोई कार्रवाई नहीं करता, तो वो मालिकाना हक का दावा कर सकता है. इसके लिए उसे बिजली बिल, पानी बिल, या प्रॉपर्टी टैक्स जैसे सबूत दिखाने होंगे, जो साबित करें कि वो मालिक की तरह प्रॉपर्टी का इस्तेमाल कर रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के M. Siddiq v. Mahant Suresh Das केस में कहा कि किराएदार को ये साबित करना होगा कि उसका कब्जा “प्रतिकूल” था, यानी मालिक की मर्जी के खिलाफ.

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस नियम को स्पष्ट किया है. 2007 के P.T. Munichikkanna Reddy v. Revamma केस में कोर्ट ने कहा कि अगर कब्जेदार 12 साल तक खुलेआम और शांतिपूर्ण तरीके से प्रॉपर्टी पर कब्जा रखता है, तो उसे मालिकाना हक मिल सकता है. लेकिन कोर्ट सख्ती से जांच करता है कि कब्जा वाकई प्रतिकूल था या नहीं. सरकारी जमीन पर ये नियम लागू नहीं होता, क्योंकि सरकार के पास अतिक्रमण हटाने का पूरा अधिकार है.

मालिक कैसे बचें?

प्रॉपर्टी मालिकों के लिए ये नियम एक चेतावनी है. अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए ये कदम उठाएं:

रेंट एग्रीमेंट: हमेशा 11 महीने का रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट बनाएं और समय पर रिन्यू करें. इससे किराएदार को मालिकाना दावा करने का मौका नहीं मिलेगा.

नियमित चेक: अपनी प्रॉपर्टी की समय-समय पर जांच करें. खाली जमीन पर तारबंदी या साइनबोर्ड लगाएं.

कानूनी कार्रवाई: अगर कोई अवैध कब्जा करता है, तो 12 साल के भीतर कोर्ट जाएं. नोटिस भेजना भी काफी है.

डॉक्यूमेंट्स: प्रॉपर्टी के कागजात, जैसे रजिस्ट्री, हमेशा तैयार रखें.

क्यों है ये नियम विवादास्पद?

ये नियम एक तरफ तो पुराने विवादों को सुलझाने में मदद करता है, लेकिन दूसरी तरफ मालिकों के लिए जोखिम भरा है. अगर आप विदेश में रहते हैं या अपनी प्रॉपर्टी पर ध्यान नहीं देते, तो कोई और उस पर कब्जा करके कानूनी हक ले सकता है. दूसरी ओर, ये नियम उन लोगों को हक देता है जो सालों से प्रॉपर्टी का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन कोर्ट में दावा साबित करना आसान नहीं, क्योंकि सबूतों की सख्त जांच होती है.

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