नई दिल्ली. गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (GDA) बोर्ड ने इंदिरापुरम के करीब 2 लाख आवंटियों से किसानों को बढ़े हुए भूमि मुआवजे के रूप में 349 करोड़ रुपये की वसूली को मंजूरी दे दी है. टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, जीडीए के अधिकारियों ने बताया कि एक विशेष रूप से गठित समिति ऊंची इमारतों वाले अपार्टमेंट और प्लॉटेड सोसायटी के निवासियों के लिए अलग-अलग भुगतान राशि निर्धारित करेगी. इस वसूली की प्रक्रिया प्रारंभिक भूमि अधिग्रहण के 36 साल बाद शुरू हुई है.
यह निर्णय 2019 में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद लिया गया है, जिसमें मकनपुर गांव के किसानों को बढ़ा हुआ मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया था – जहाँ से जीडीए ने इंदिरापुरम टाउनशिप के लिए 1,295 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित की थी.
क्या है पूरा मामला
1986 और 1989 के बीच शुरू में 90 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से अधिग्रहित की गई ज़मीन पर अब 297 रुपये प्रति वर्ग गज की दर से मुआवज़ा दिया जा रहा है. कानूनी लड़ाई 1991 में शुरू हुई, जब प्रभावित किसानों ने अधिक मुआवज़े की माँग करते हुए जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने 2001 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे दर बढ़कर 160 रुपये प्रति वर्ग गज हो गई.
इसके बाद जीडीए ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की. लेकिन, न्यायालय ने 2017 में मुआवज़ा बढ़ाकर 297 रुपये प्रति वर्ग गज कर दिया. फिर अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2019 में इस फ़ैसले को बरकरार रखा.
फैसले के विरोध में रेजिजेंट एसोसिएशन
हालांकि, रेजिडेंट एसोसिएशन इस अथॉरिटी के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. फेडरेशन ऑफ एओए के वरिष्ठ सदस्य आलोक कुमार ने तर्क दिया, “फ्रीहोल्ड प्रॉपर्टी मालिकों पर ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं है. जीडीए और डेवलपर्स के बीच समझौता द्विपक्षीय था इसलिए, व्यक्तिगत फ्लैट मालिकों को बढ़ा हुआ मुआवज़ा देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.”
उधर, जीडीए अधिकारियों ने बेसिक एलोकेशन एग्रीमेंट में एक सेक्शन का हवाला देते हुए बढ़ा हुआ मुआवज़ा वसूलने के अपने कानूनी अधिकारों के बारे में बताया. जीडीए के एक अधिकारी ने कहा, “कार्यान्वयन प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए एक समिति बनाई गई है.
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