NPS vs VPF: कहां मिलेगा ज्यादा सुरक्षा के साथ तगड़ा रिटर्न?

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नई दिल्ली. आज के समय में जब नौकरी की गारंटी कम होती जा रही है और महंगाई लगातार बढ़ रही है, ऐसे में रिटायरमेंट की तैयारी पहले से ही शुरू करना ज़रूरी हो गया है. भारत में दो बड़े विकल्प हैं जो लोग अपनी सेवानिवृत्ति के लिए चुनते हैं – नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और वॉलंटरी प्रोविडेंट फंड (VPF). दोनों स्कीम्स का उद्देश्य एक ही है – भविष्य के लिए एक मजबूत फाइनेंशियल फाउंडेशन तैयार करना, लेकिन दोनों की संरचना, रिटर्न और टैक्स फायदे बिल्कुल अलग हैं.

NPS सरकार द्वारा संचालित एक मार्केट-लिंक्ड पेंशन स्कीम है जो सभी भारतीय नागरिकों के लिए खुली है, चाहे वे सैलरीड हों या सेल्फ-एम्प्लॉयड. इसकी सबसे खास बात ये है कि इसमें निवेशक अपने पैसे को इक्विटी, कॉरपोरेट बॉन्ड, सरकारी बॉन्ड और वैकल्पिक निवेश जैसे विकल्पों में बांट सकते हैं. इसमें सालाना 8 से 12 फीसदी तक का रिटर्न मिल सकता है, हालांकि ये पूरी तरह से मार्केट पर निर्भर करता है. अगर कोई युवा निवेशक अपने लंबे निवेश काल के दौरान अधिक ग्रोथ चाहता है, तो वह NPS में Active Choice चुनकर 75% तक इक्विटी में पैसा लगा सकता है.

NPS vs VPF – एक सीधी तुलना

पैरामीटरNPS (National Pension System)VPF (Voluntary Provident Fund)क्या है?सरकार की रिटायरमेंट स्कीम, मार्केट से जुड़ी हुईEPF का एक्सटेंशन, फिक्स्ड रिटर्न के साथकौन निवेश कर सकता है?18 से 70 साल तक कोई भी भारतीय (सैलरीड या सेल्फ-एम्प्लॉयड)केवल EPF वाले नौकरीपेशा लोगरिटर्नमार्केट लिंक्ड – 8–12% (इक्विटी में ज़्यादा)फिक्स्ड रिटर्न – 8–8.5% (सरकार तय करती है)जोखिममध्यम (इक्विटी एक्सपोजर के कारण)बेहद कम (सरकारी गारंटी)टैक्स बेनिफिट₹1.5 लाख 80C + ₹50,000 अतिरिक्त 80CCD(1B)₹1.5 लाख 80C तक टैक्स छूटलॉक-इनउम्र 60 तक; आंशिक निकासी 3 साल बाद कुछ शर्तों पर5 साल तक लॉक; उसके बाद निकासी आसानलिक्विडिटीसीमित; 40% अनिवार्य एन्युटी में जाएगाज़्यादा; ज़रूरत पर निकासी आसानफंड कंट्रोलफंड मैनेजर चुन सकते हैं, एसेट अलोकेशन तय कर सकते हैंकोई कंट्रोल नहीं; EPFO देखता हैकिसके लिए बना है?लॉन्ग टर्म रिटायरमेंट फंड, मार्केट-लिंक्ड ग्रोथ के लिएसेफ और सिंपल सेविंग्स के लिए

इसके उलट VPF एक पूरी तरह से सुरक्षित विकल्प है जो केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो पहले से EPF का हिस्सा हैं. इसमें कर्मचारी अपनी बेसिक सैलरी और डिअरनेस अलाउंस का 100% तक अतिरिक्त योगदान कर सकता है. इसका रिटर्न फिक्स्ड होता है, जो आमतौर पर 8 से 8.5 फीसदी के बीच रहता है. इसे सरकार सालाना तय करती है. इसमें किसी तरह का मार्केट रिस्क नहीं होता और ये पूरी तरह से EPFO द्वारा मैनेज होता है.

टैक्स के मामले में NPS और VPF दोनों फायदे देते हैं, लेकिन NPS में आपको ₹1.5 लाख की 80C के तहत छूट के अलावा ₹50,000 की अतिरिक्त छूट 80CCD(1B) के तहत मिलती है. वहीं, VPF में सिर्फ 80C की सीमा तक ही टैक्स छूट मिलती है, लेकिन अगर आप इसमें लगातार 5 साल तक निवेश करते हैं तो इसके ब्याज और मेच्योरिटी अमाउंट दोनों टैक्स फ्री रहते हैं.

लिक्विडिटी के हिसाब से देखा जाए तो VPF थोड़ा ज़्यादा फ्लेक्सिबल है. इसमें आप 5 साल बाद ज़रूरत पड़ने पर मकान, शादी या मेडिकल के लिए पैसा निकाल सकते हैं. जबकि NPS में पैसा रिटायरमेंट तक लॉक रहता है और आंशिक निकासी भी कुछ शर्तों के साथ ही तीन बार तक सीमित होती है. साथ ही, NPS में मैच्योरिटी पर मिलने वाले कुल कॉर्पस का 40% हिस्सा अनिवार्य रूप से एन्युटी में डालना पड़ता है जिससे रिटायरमेंट के बाद नियमित पेंशन मिल सके. जबकि VPF में पूरा पैसा आपको एक साथ मिल जाता है.

सेल्फ-एम्प्लॉयड लोगों के लिए VPF का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि ये सिर्फ नौकरीपेशा लोगों के लिए है. ऐसे लोगों के लिए NPS ही एकमात्र विकल्प बचता है जो टैक्स बचत, रिटायरमेंट इनकम और लॉन्ग टर्म ग्रोथ के लिए काम आता है. वहीं, नौकरीपेशा लोग चाहें तो दोनों का कॉम्बिनेशन इस्तेमाल कर सकते हैं – VPF से स्थिरता और NPS से ग्रोथ और टैक्स एडवांटेज मिल सकता है.

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