नई दिल्ली. निवेश की दुनिया में जब भी संतुलित पोर्टफोलियो की बात होती है, तो सबसे पहले 60:40 रूल का जिक्र आता है. इस नियम के मुताबिक, निवेशक अपनी कुल पूंजी का 60% हिस्सा इक्विटी (शेयर बाजार) में और 40% हिस्सा बॉन्ड्स या फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (जैसे डेब्ट फंड्स) में लगाते हैं. इसका मकसद है जोखिम और स्थायित्व के बीच संतुलन बनाना—जहां एक तरफ इक्विटी से ग्रोथ मिले, वहीं दूसरी ओर डेब्ट से नियमित और सुरक्षित इनकम.
लेकिन मौजूदा वक्त में, जहां ब्याज दरें, भूराजनीतिक तनाव, और टेक्नोलॉजी सेक्टर का उतार-चढ़ाव जैसे बड़े फैक्टर सामने हैं, वहां ये सवाल लाज़मी है कि क्या यह पुराना निवेश नियम आज के दौर में भी उतना ही असरदार है?
ये भी पढ़ें- हाइपरलूप से रोपवे तक, हर गांव, हर पहाड़ तक पहुंचेगा हाईटेक सफर, नितिन गडकरी ने बताया ट्रांसपोर्ट का मेगा प्लान
60:40: एक गाइडलाइन, लेकिन फिक्स फॉर्मूला नहीं
मॉर्निंगस्टार इंडिया के रिसर्च डायरेक्टर कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं कि 60:40 नियम को एक शुरुआती गाइडलाइन के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि किसी “एक ही साइज फिट्स ऑल” रणनीति के रूप में. वे मानते हैं कि निवेशक की उम्र, कमाई, खर्च, जिम्मेदारियां और जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर पोर्टफोलियो में बदलाव होना चाहिए. उनका साफ कहना है, “बहुत से युवा निवेशक हाई रिस्क लेते हैं, लेकिन उनके पास कोई मजबूत फाइनेंशियल बैकअप नहीं होता. अगर कोई सेक्टर गिरता है, तो बड़ा नुकसान हो सकता है. इसलिए डाइवर्सिफिकेशन बेहद जरूरी है.”
बदलते समय में पुरानी रणनीति: क्या अब भी प्रासंगिक?
द वेल्थ कंपनी के मैनेजिंग पार्टनर प्रसन्ना पाठक का मानना है कि आज के समय में बॉन्ड्स पर मिलने वाला रिटर्न भी आकर्षक है और कई अंतरराष्ट्रीय बाजार वैल्यूएशन के लिहाज से सस्ते हैं. उनके मुताबिक, “60:40 एक मजबूत आधार हो सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि हर किसी के लिए यह ज्यों का त्यों लागू हो.” वह सुझाव देते हैं कि निवेशकों को अपनी रणनीति बनाते वक्त देशी और विदेशी दोनों बाजारों पर नजर रखनी चाहिए और लंबे समय के रुझानों को भी समझना चाहिए.
नई पीढ़ी का नजरिया क्या है?
टाटा एसेट मैनेजमेंट के इक्विटी हेड राहुल सिंह का कहना है कि अब युवा निवेशक ज्यादा जोखिम लेने को तैयार हैं और वे स्मॉल-कैप, थीमैटिक फंड्स (जैसे एआई, क्लीन एनर्जी, ग्रीन टेक) में निवेश कर रहे हैं. हालांकि, ये फंड्स उतार-चढ़ाव से भरे होते हैं और एक छोटे झटके में काफी नुकसान कर सकते हैं. राहुल सलाह देते हैं कि ऐसे निवेशकों को फ्लेक्सी-कैप या मिड-लार्ज कैप फंड्स में भी निवेश करना चाहिए ताकि रिटर्न और रिस्क में संतुलन बना रहे.
ये भी पढ़ें- Share Market Outlook: आगे तेजी आएगी या गिरावट? ये फैक्टर्स तय करेंगे शेयर बाजार की दिशा
निवेश की नई रणनीति क्या हो?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब निवेश सिर्फ इक्विटी और डेट तक सीमित नहीं है. सोना (गोल्ड) और मल्टी-एसेट फंड्स, जो एक साथ कई एसेट क्लास में निवेश करते हैं, आज के पोर्टफोलियो का जरूरी हिस्सा बनते जा रहे हैं. राहुल सिंह के मुताबिक, “अब निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में टेक्नोलॉजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, फाइनेंस, और कंजम्प्शन सेक्टर को भी जगह देनी चाहिए.” प्रसन्ना पाठक की भी राय है कि अगले 5-10 सालों में भारत जैसे बाजार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल इंडिया पर केंद्रित कंपनियों में बड़ा मुनाफा छिपा है.
stock market, share market, market update, trading news, trade news, nifty update,bank nifty, oxbig news, oxbig news network, hindi news, hindi news, business news, oxbig hindi news
English News