Inheritance debt rules : क्या आपने कभी सोचा कि जब किसी का निधन हो जाता है, तो उसके द्वारा लिए गए कर्ज का क्या होता है? क्या बच्चों को अपने माता-पिता का कर्ज चुकाना पड़ता है? क्या उनकी संपत्ति खतरे में पड़ सकती है? भारत में इस मामले में एक स्पष्ट कानून है, लेकिन फिर भी कई बार लोग भ्रम में पड़ जाते हैं. इस लेख में आपको हर सवाल का जवाब मिल जाएगा, जो स्वाभाविक रूप से उठा होगा.
भारतीय कानून के अनुसार, बच्चों को अपने माता-पिता के कर्ज का भुगतान करने की कोई व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं होती, बशर्ते उन्होंने उस कर्ज के लिए सह-हस्ताक्षर (को-साइन) या गारंटर के रूप में हस्ताक्षर न किए हों. यानी, सिर्फ बेटा या बेटी होने भर से किसी का कर्ज चुकाने की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन अगर मृतक ने कोई संपत्ति, पैसा या अन्य एसेट्स छोड़े हैं, तो बात बदल जाती है.
ऐसी स्थिति में, कानून लेनदारों (जिनसे कर्ज लिया गया है) को यह अधिकार देता है कि वे मृतक की संपत्ति से बकाया राशि वसूल करें. वह संपत्ति के वारिसों में बंटने से पहले बकाया वसूल सकते हैं. लेकिन यह जिम्मेदारी केवल उस संपत्ति की कीमत तक सीमित होती है, जो वारिस को मिली है. इससे ज्यादा का कोई दायित्व नहीं होता.
बच्चों से वसूली का अधिकार नहीं
इसे एक उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है. अगर मृतक ने एक लाख रुपये का कर्ज लिया था और उनकी संपत्ति की कीमत दो लाख रुपये है, तो कर्ज उस संपत्ति से चुकाया जाएगा. लेकिन अगर संपत्ति की कीमत कर्ज से कम है, मतलब 1 लाख से कम है, तो बाकी राशि को लेनदार आमतौर पर माफ कर देता है, क्योंकि वह उनके बच्चों से वसूली का अधिकार नहीं रखता.
अगर बात करें असुरक्षित कर्ज (अनसिक्योर्ड लोन) की, जैसे कि पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन या क्रेडिट कार्ड का बकाया, तो इनके लिए कोई संपत्ति गिरवी नहीं रखी जाती. ऐसे में लेनदार केवल मृतक की संपत्ति से ही कर्ज वसूल सकता है. यह संपत्ति बैंक खाते, फिक्स्ड डिपॉजिट, म्यूचुअल फंड, गहने या मकान जैसी चीजें हो सकती हैं. अगर संपत्ति की कीमत कर्ज को पूरा करने के लिए काफी है, तो कर्ज चुका दिया जाता है. लेकिन अगर संपत्ति नहीं है या उसकी कीमत कम है, तो वारिस को अपने पैसे से कर्ज चुकाने की जरूरत नहीं पड़ती.
होम लोन और कार लोन में क्या है सीन?
होम लोन या कार लोन को सुरक्षित कर्ज (सिक्योर्ड लोन) कहा जाता है. इसमें स्थिति थोड़ी अलग होती है. ये कर्ज किसी संपत्ति, जैसे मकान या गाड़ी, के बदले लिए जाते हैं. अगर कर्ज लेने वाले की मृत्यु हो जाती है और कर्ज बाकी है, तो लेनदार उस संपत्ति को बेचकर या जब्त करके अपना पैसा वसूल सकता है. अगर वारिस उस संपत्ति को रखना चाहते हैं, तो उन्हें कर्ज अपने नाम पर ट्रांसफर करना होगा और बाकी रकम चुकानी होगी. हालांकि, वारिस की आर्थिक स्थिति और क्रेडिट स्कोर देखकर ही बैंक यह तय करता है कि कर्ज ट्रांसफर करना है या नहीं. अगर वारिस कर्ज नहीं लेना चाहते या उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, तो बैंक संपत्ति को कानूनी तरीके से जब्त कर लेता है.
वारिस ही गारंटर बना हो तो..?
अगर कोई वारिस कर्ज के लिए सह-उधारकर्ता (को-बॉरोअर) या गारंटर है, तो उसे पूरा कर्ज चुकाना पड़ता है. चाहे उसे मृतक की संपत्ति से कुछ मिले या न मिले. सह-उधारकर्ता या गारंटर बनने का मतलब है कि उसने कर्ज की जिम्मेदारी शुरू से ही स्वीकार की है. ऐसे में, अगर मुख्य उधारकर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो सारी जिम्मेदारी सह-उधारकर्ता या गारटंर पर आ सकती है.
क्रेडिट कार्ड का बकाया हो तो..?
क्रेडिट कार्ड का बकाया या अन्य उपभोक्ता कर्ज भी असुरक्षित कर्ज की तरह ही काम करते हैं. बैंक इन्हें मृतक की संपत्ति से वसूल सकता है. अगर संपत्ति नहीं है और वारिस सह-धारक या गारंटर नहीं है, तो कर्ज माफ हो जाता है. हालांकि, अगर वारिस क्रेडिट कार्ड का ऐड-ऑन धारक था तो स्थिति जटिल हो सकती है. क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि कार्ड का इस्तेमाल कैसे और किसके कहने पर हुआ था.
वकील या वित्तीय सलाहकार की मदद क्यों जरूरी?
कानून लेनदारों को यह अनुमति नहीं देता कि वे बिना कानूनी जिम्मेदारी के परिवार वालों पर कर्ज चुकाने का दबाव डालें. फिर भी कुछ लेनदार कोशिश कर सकते हैं, खासकर अगर उन्हें कानून की पूरी जानकारी न हो. इसलिए, मृतक की संपत्ति और कर्ज से निपटने के लिए एक वकील या वित्तीय सलाहकार की मदद लेना बहुत जरूरी है.
मृतक की संपत्ति बांटने से पहले सारे कर्ज चुकाने पड़ते हैं. इसीलिए, अगर कर्ज ज्यादा हैं या कई तरह के लोन हैं तो कानूनी सलाह लेना और भी जरूरी हो जाता है. साथ ही, अगर उधारकर्ता ने अपने जीवनकाल में वसीयत बनाई हो या लाइफ इंश्योरेंस लिया हो, तो वारिसों को अचानक आए वित्तीय बोझ से बचाया जा सकता है.
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