नई दिल्ली. 3 दिन पहले जब सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 2 रुपये एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का फैसला किया तो जनता का दिल धक से करके बैठ गया. हर किसी का एक ही सवाल क्या बढ़ने वाला है पेट्रोल और डीजल का रेट. वह भी तब जबकि ग्लोबल मार्केट में क्रूड यानी कच्चे तेल का भाव 4 साल में सबसे कम है. वो तो भला हो सरकार का कि उसने एक्साइज ड्यूटी का बोझ जनता पर नहीं डाला. फिर भी हर किसी के मन से यह सवाल अभी तक नहीं गया कि जब कच्चे तेल की कीमतें इतनी घट गईं हैं तो उन्हें तेल सस्ता क्यों नहीं मिल रहा है. विपक्ष ने भी इस बात को लेकर सरकार से सवाल पूछे हैं.
ग्लोबल मार्केट में गुरुवार को भी कच्चा तेल 1.54 डॉलर प्रति बैरल सस्ता हुआ और अब इसकी कीमत 64 डॉलर से भी नीचे चली गई है. एक्सपर्ट तो यहां तक अनुमान लगा रहे कि क्रूड का भाव कुछ दिनों में 40 डॉल्र तक जा सकता है. मौजूदा रेट ही कोरोनाकाल के बाद सबसे कम है. जाहिर है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से हमारे देश की कंपनियों को भी सस्ता क्रूड मिल रहा होगा. तो, फिर लाख टके का सवाल ये है कि पेट्रोल-डीजल के खुदरा रेट क्यों नहीं घट रहे हैं.
विपक्ष पूछ रहा-कहां गया बाजार का नियमकांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी सरकार से पूछा है कि आखिर अब कहां गया डायनमिक प्राइसिंग का नियम. क्या यह तभी लागू होता है जबकि क्रूड के भाव बढ़ते हैं, अब जबकि क्रूड सस्ता हो गया है तो सरकार इस प्राइसिंग रूल को क्यों नहीं लागू कर रही है. उन्होंने कहा कि अभी क्रूड 4 साल के निचले स्तर पर चला गया है और सभी तेल की खुदरा कीमतें घटने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई बयान क्यों नहीं आ रहा.
क्या होता है डायनामिक प्राइसिंगहम सभी को याद ही होगा कि सरकार ने साल 2017 में पेट्रोल-डीजल पर डायनामिक प्राइसिंग का नियम लागू कर दिया था. इसका मतलब है कि तेल की खुदरा कीमतों को पूरी तरह बाजार के हवाले कर दिया था. इस नियम के बाद से सरकारी तेल कंपनियां हर सुबह 6 बजे पेट्रोल-डीजल की कीमतें तय करने लगीं. मतलब, ग्लोबल मार्केट में क्रूड के भाव घटने या बढ़ने के हिसाब से ही तेल कंपनियां रोजाना तेल की खुदरा कीमतें भी तय करने लगीं.
क्या कंपनियां कमा नहीं मुनाफाइसमें कोई दो राय नहीं है कि ग्लोबल मार्केट में क्रूड के भाव नीचे आने से तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ा है. इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और बीपीसीएल जैसी तमाम सरकारी तेल कंपनियों का मुनाफा कई गुना बढ़ चुका है. सामान्य तौर पर फ्यूल मार्केटिंग मार्जिन 4 से 6 रुपये के बीच होता है, जो अभी बढ़कर 13 रुपये तक चला गया है. यानी एक बार फिर लाख टके का सवाल वही कि जब कंपनियां खुद मुनाफा बढ़ा रहीं तो इसका फायदा आम जनता को क्यों नहीं देतीं.
सरकार ने इसीलिए बढ़ाई एक्साइज ड्यूटीअब इस सवाल का सीधा जवाब मिल गया है कि आखिर क्रूड के भाव नीचे आने पर भी सरकार ने एक्साइज ड्यूटी क्यों बढ़ा दी और इसका बोझ जनता पर नहीं डाला. सरकार ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि तेल कंपनियों का मुनाफा 4 गुना तक बढ़ गया है और इसमें हिस्सेदारी लेने के लिए सरकार ने 2 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिया. इस कदम से केंद्र सरकार को 32,000 करोड़ रुपये मिलेंगे, जिसमें राज्यों की कोई हिस्सेदारी नहीं होगी. इसकी भी वजह ये है कि एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार का पार्ट होता है, राज्यों के हिस्से वैट आता है.
सवाल वही- तेल सस्ता क्यों नहींअब इस सवाल के जवाबों की पड़ताल करते हैं कि आखिर अप्रैल महीने में ही क्रूड के भाव 14 डॉलर तक नीचे आने के बावजूद घरेलू बाजार में खुदरा कीमतें क्यों नहीं घट रही हैं. बाजार विश्लेषकों और एक्सपर्ट की मानें तो इसके कई जवाब हैं.
रुपये में गिरावट : कमोडिटी एक्सपर्ट अनुज गुप्ता का कहना है कि क्रूड में गिरावट के बावजूद पेट्रोल-डीजल के सस्ते न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट है. डॉलर के मुकाबले रुपया अभी 86 के स्तर पर पहुंच गया है. ग्लोबल मार्केट के दबाव की वजह से रुपया लगातार गिरता जा रहा है. शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की बिकवाली से भी रुपये पर दबाव बढ़ा है. हाल के समय में क्रूड सस्ता होने से कुछ हद तक इस पर दबाव जरूर घटा, लेकिन यह पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने के लिए पर्याप्त नहीं है.
नुकसान की भरपाई : अभी क्रूड के भाव भले ही 4 साल के निचले स्तर पर चले गए हों, लेकिन रूस और यूक्रेन युद्ध के समय यह 150 डॉलर को भी पार कर गया था. लंबे समय तक इसकी कीमतों में उछाल की वजह से तेल कंपनियों पर खुदरा बाजार में तेल के दाम बढ़ाने का दबाव था, लेकिन जनता को राहत देने के लिए सरकार ने ऐसा नहीं करने दिया. जाहिर है कि उस समय कंपनियों को घाटा हुआ था. पिछले दिनों पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी कहा था कि तेल कंपनियों को अपने घाटे की भरपाई के लिए अभी 43 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. अब जबकि क्रूड सस्ता हुआ है तो कंपनियां तेल के दाम घटाने के बजाय इसकी भरपाई में जुटी हैं.
कमजोर रुपया कैसे डाल रहा असरभारत अपनी जरूरत का 85 फीसदी तेल आयात करता है. जाहिर है कि हमारे आयात बिल में सबसे बड़ी हिस्सेदारी इसी की है. हम रुपये को डॉलर में बदलते हैं और फिर क्रूड खरीदते हैं. इस लिहाज से रुपये में जरा भी गिरावट क्रूड सस्ता होने के फायदे को खत्म कर देती है. इस लिहाज से देखें तो अगर क्रूड अभी 64 डॉलर के आसपास है तो रुपये में भारतीय करेंसी में यह 5,500 रुपये प्रति बैरल के आसपास मिल रहा है. लेकिन, कुछ समय पहले तक कंपनियां इसे करीब 6,500 रुपये प्रति बैरल के भाव खरीद रहीं थी. यही वजह है कि कच्चा तेल सस्ता होकर भी आम आदमी को पेट्रोल-डीजल का फायदा नहीं मिल रहा है.
फिर भी कटौती का पूरा अनुमानतमाम एक्सपर्ट का कहना है कि भले ही सरकार और तेल कंपनियों ने अभी तक पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में कटौती नहीं की हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तेल के खुदरा दाम जल्द ही घटने की पूरी उम्मीद है. माना जा रहा है कि इसमें 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की जा सकती है. यानी, कंपनियों का घाटा पूरा होने के बाद जल्द ही आम आदमी को भी इसमें राहत मिल सकती है.
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