नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया. यह फैसला तब आया, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने रेपो रेट में कटौती का अनुरोध किया था. दोनों की अपील के पीछे उद्देश्य का था, देश की धीमी होती अर्थव्यवस्था और व्यापारियों को राहत देना. लेकिन आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मंत्रियों के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए, महंगाई और लॉन्ग टर्म आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता दी. सवाल उठता है कि ऐसा निर्णय क्यों लिया गया?
उससे पहले ये बता दें कि रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर केंद्रीय बैंक कमर्शियल बैंकों को शॉर्ट टर्म के लिए कर्ज देता है. इसे कम करने से बैंकों के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाता है, और इसका असर आम जनता पर पड़ता है, क्योंकि बैंकों से मिलने वाले लोन की दरें कम हो जाती हैं. लेकिन आरबीआई के लिए सिर्फ सस्ती दरें रखना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि उसे महंगाई पर लगाम लगानी है.
महंगाई का असर और आरबीआई का निर्णयआरबीआई ने इस बार रेपो रेट 6.5 फीसदी पर स्थिर रखा. इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में खाद्य महंगाई लिमिट से अधिक बनी रही. गवर्नर दास ने कहा कि खाद्य महंगाई में कमी केवल अगले साल की शुरुआत में दिखाई देगी. उन्होंने बताया कि अक्टूबर-दिसंबर 2024 वाली तिमाही में महंगाई दर 5.7 फीसदी रहने का अनुमान है. वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए औसत महंगाई दर 4.8 फीसदी रहने की उम्मीद है. महंगाई में वृद्धि का असर जनता की खरीदने की शक्ति पर पड़ता है. यदि इसे समय पर नियंत्रित न किया जाए, तो इससे अर्थव्यवस्था की नींव हिलने लगती है.
आर्थिक वृद्धि और इंडस्ट्रियल ग्रोथआरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान भी 7.2 फीसदी से घटाकर 6.6 फीसदी कर दिया है. तिमाही आंकड़ों में गिरावट स्पष्ट है. पहली तिमाही में इंडस्ट्रियल ग्रोथ 7.4 फीसदी थी, जो दूसरी तिमाही में गिरकर 2.1 फीसदी हो गई. यह मंदी आरबीआई के लिए चिंता का विषय है, लेकिन गवर्नर शक्तिकांत दास ने साफ किया कि “स्थायी” मूल्य स्थिरता (Price Stability) हाई ग्रोथ को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है.
क्या है आगे की राह?आरबीआई का दृष्टिकोण “न्यूट्रल” है, जिसका मतलब है कि वह भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार अपने फैसले बदल सकता है. यदि आर्थिक मंदी बनी रहती है तो नीतिगत समर्थन की आवश्यकता हो सकती है. यहां समझना होगा कि महंगाई और आर्थिक स्थिरता एक संतुलन जरूरी है. आरबीआई का यह निर्णय उस दिशा में एक कदम है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए रेपो रेट में कटौती नहीं की. यह फैसला भले ही तुरंत राहत नहीं देता हुआ दिख रहा, लेकिन लॉन्ग टर्म में आर्थिक स्थिरता की ओर बढ़ने में सहायक होगा.
Tags: RBI Governor, Rbi policy, Shaktikanta DasFIRST PUBLISHED : December 6, 2024, 13:22 IST
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