नई दिल्ली. दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वैसे तो काफी सरल और सौम्य प्रकृति के इंसान थे, लेकिन बात जब देश के अर्थव्यवस्था और हित की हो तब उनका रवैया चट्टान की तरह सख्त हो जाता था. डॉ मनमोहन सिंह के ऐसे ही चट्टानी फैसले से भारत ही नहीं पूरी दुनिया साल 1991 में रूबरू हुई थी. तब मनमोहन सिंह देश के वित्तमंत्री थे और उन्होंने 1991 के बजट में उर्वरक और पेट्रोल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी कर दी थी. महंगाई और विपक्ष के दबाव के बावजूद डॉ सिंह अपने फैसले पर अड़े रहे और आखिरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को एक बड़े संकट से उबार लिया.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में इसका खुलासा किया है. उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि भारत के आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की व्यापक स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था. इस बजट ने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था. पी.वी. नरसिंह राव की सरकार में नवनियुक्त वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने यह काम बेहद बेबाकी से किया. बजट के बाद संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों का सामना करने से लेकर संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा न पाने वाले नाराज कांग्रेस नेताओं तक के सामने भी डॉ सिंह फैसलों पर अडिग रहे.
नहीं तो दिवालिया हो जाता भारतजयराम रमेश ने खुलासा किया कि डॉ सिंह के ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया. बजट प्रस्तुत होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को डॉ सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण गलत तरीके से पेश न हो जाए.
मनमोहन सिंह ने इसे मानवीय बजट बतायारमेश ने 2015 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखा, ‘वित्तमंत्री ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे मानवीय बजट करार दिया. उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया. कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक बुलाई और खुद दूरी बनाए रखी जबकि मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया. हालांकि, बाद में पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए सिंह ने उर्वरक की कीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि को घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन एलपीजी तथा पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को यथावत रखा था.
फिर भी दिया गरीबों को राहतपुस्तक के मुताबिक, मनमोहन सिंह के इस बयान में वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी, बल्कि इसमें छोटे तथा सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई. इससे दोनों पक्षों की जीत हुई. यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है. यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार तथा पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं.
Tags: Budget session, Business news, Dr. manmohan singhFIRST PUBLISHED : December 27, 2024, 11:50 IST
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