नई दिल्ली. महादेव ऐप का नाम तो आपने भी सुना होगा. छत्तीसगढ़ से शुरू हुए इस सट्टा कारोबार की नकेल तो वैसे दुबई में बैठे लोगों के पास थी, लेकिन बिजनेस का ज्यादातर पैसा भारत से ही जुटाया गया. इस ऐप से जुड़े तार और खाते खंगालने के लिए भारतीय एजेंसियों ने पिछले 2 साल से काफी मेहनत की है. ऐसे में आपके मन में भी इस ऐप को लेकर बहुत सारे सवाल उमड़ रहे होंगे कि आखिर इसका नाम महादेव ऐप ही क्यों पड़ा और कैसे मामूली से बेटिंग कारोबार से 6 हजार करोड़ रुपये का बिजनेस खड़ा हो गया.
इस ऐप को शुरू करने वालों को भी इतने बड़े कारोबार की उम्मीद नहीं थी, लेकिन जैसा कि पहले भी कई बार कहा जा चुका है कि आपदा में अवसर होते हैं. महादेव ऐप शुरू करने वालों को भी कोरोना महामारी जैसी आपदा के बीच अवसर दिखा. लोग घरों में बंद थे और ज्यादातर समय खाली रहते थे. जाहिर है उन्हें कुछ रोमांचक चाहिए था, जिसमें पैसा भी बनाया जा सके. इस मौके का फायदा उठाकर ऐप का विस्तार किया गया और जल्द ही इसके ग्राहकों का बेस 50 लाख से ऊपर चला गया.
महादेव नाम ही क्यों रखायह बात तो सभी को पता है कि हर बिजनेस का कुछ न कुछ नाम रखा ही जाता है. ज्यादातर लोग अपने नाम पर या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम पर बिजनेस का नाम रखते हैं, लेकिन इस ऐप को बनाने वालों ने आम आदमी के सेंटिमेंट को पकड़ने के लिए इसका नाम महादेव रखा. यह एक बेटिंग ऐप है और ज्यादातर बेटिंग ऐप का नाम विदेशी लगता है. लिहाजा कुछ हटकर करने के चक्कर में ऐप बनाने वालों ने इसका नाम देसी रखने पर जोर दिया. ‘महादेव’ भगवान शिव का नाम है और लोगों की भावनाओं से जुड़ने के लिए ऐप बनाने वालों ने इसका नाम महादेव रखा और सेंटिमेंट का यह दांव बखूबी चल भी गया.
कैसे हुई ऐप की शुरुआतछत्तीसगढ़ के रहने वाले 3 साधारण युवकों सौरभ चंद्राकर, रवि उप्पल और अतुल अग्रवाल ने साल 2016 में इसे लॉन्च किया था. शुरुआत में इस ऐप पर ऑनलाइन सट्टेबाजी होती थी, जिस पर क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन जैसे खेलों के साथ पोकर, तीन पत्ती, वर्चुअल गेम यहां तक की चुनाव को लेकर भी भविष्यवाणी पर दांव लगाया जाता था. बाद में यह ऐप जुआ गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात हो गया. यह ऐप एक जटिल नेटवर्क पर चलता था, जिसे मुख्य रूप से दुबई से चलाया जाता था और मनी लॉन्ड्रिंग व प्रभावशाली व्यक्तियों से संबंधों से फलता-फूलता रहा.
कैसे बढ़ता गया कारोबारसाल 2016 में शुरू होने के बाद महादेव ऐप की चाल कुछ साल तक काफी धीमी रही, लेकिन कोविड महामारी के दौरान ऐप ने रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी. पहले तीन साल में तो ऐप का ग्राहक आधार 12 लाख तक पहुंचा, लेकिन साल 2020 में इसके फाउंडर्स ने हैदराबाद स्थित रेड्डी अन्ना नामक एक और सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म को 1,000 करोड़ रुपये में खरीद लिया. इसके बाद तो महादेव ऐप के यूजर्स का बेस बढ़कर 50 लाख से भी पार चला गया और कमाई में ताबड़तोड़ बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई. ऐप के संचालकों ने वॉट्सऐप और टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म से भी अपना बिजनेस खूब बढ़ाया और हजारों करोड़ का कारोबार खड़ा कर दिया.
कैसे काम करता था बिनजेसमहादेव ऐप एक सिंडिकेट के रूप में संचालित होता था, जो विभिन्न अवैध सट्टेबाजी प्लेटफार्मों को एकत्रित करता था. यह पैनल या शाखाओं को सहयोगियों को फ्रेंचाइजी बनाकर काम करता था. इन फ्रेंचाइजी के साथ 70 और 30 के अनुपात में मुनाफा बांटा जाता था. यूजर्स को कॉन्टैक्ट करने के लिए नंबर दिए जाते जिस पर संपर्क करके आईडी प्राप्त कर लेते और दांव लगाने के लिए पैसे जमा करते. जीतने के बाद यूजर्स को एक अलग प्रक्रिया के जरिये पैसे नकद में निकालने की सुविधा मिलती है. यूजर्स को भुगतान के लिए हजारों बैंक खातों के एक जटिल नेटवर्क का इस्तेमाल होता था. इस लेनदेन में निष्क्रिय कंपनियों के कॉरपोरेट खातों का भी इस्तेमाल किया गया.
कितना होता था मुनाफायूजर बेस बढ़ने के साथ ही ऐप का मुनाफा और कमाई भी बढ़ने लगी. अनुमान है कि इस ऐप से रोजाना करीब 200 करोड़ रुपये का लाभ होता था. इसकी सफलता का श्रेय यूजर अनुकूल इंटरफेस, विविध सट्टेबाजी विकल्पों और त्वरित लाभ के वादे को जाता है. हालांकि, यूजर्स के साथ हेरफेर भी खूब होता था और जो यूजर लंबे समय तक इसे खेलते उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए हेरफेर किया जाता था, ताकि कंपनी का मुनाफा सुनिश्चित हो सके.
कैसे हुआ खुलासा और कसा शिकंजामहादेव ऐप साल 2022 तक धड़ल्ले से चलता रहा, लेकिन इसके बाद इनकम टैक्स विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की नजर पड़ी. ईडी ने बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाकर जांच शुरू की और इसके ठिकानों पर छापेमारी शुरू हो गई. ईडी का आरोप था कि मनी लॉन्ड्रिंग में करीब 6,000 करोड़ रुपये शामिल हैं. जांच में हवाला नेटवर्क, शेल कंपनियों और यहां तक कि राजनीतिक संरक्षण के दावों के लिंक भी खुला.
राजनीतिक और आपराधिक संरक्षणआरोप लगे कि महादेव ऐप के प्रमोटरों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को 508 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. इतना ही नहीं दाऊद इब्राहिम द्वारा संचालित एक आपराधिक सिंडिकेट डी-कंपनी को ‘सिक्योरिटी मनी’ के रूप में हर महीने 100 करोड़ रुपये के कथित भुगतान का भी आरोप लगा है. जांच आगे बढ़ी तो नवंबर 2023 में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने मनी लॉन्ड्रिंग और जुआ कानूनों के उल्लंघन के कारण महादेव ऐप के साथ 21 अन्य अवैध सट्टेबाजी प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रमोटर्स में शामिल चंद्राकर को 2023 के अंत में गिरफ्तार किया गया और उप्पल को उनके घर पर हिरासत में ले लिया गया. ईडी ने 572 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों को फ्रीज कर दिया है.
सीएम और ब्यूरोक्रेट्स के घर सीबीआई छापेमहादेव ऐप के जांच की आंच अब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के घर तक पहुंच गई है, जहां सीबीआई ने छापेमारी की है. इसके अलावा पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा सहित 4 आईपीएस अधिकारियों के ठिकानों पर भी सीबीआई ने छापेमारी की है. आरोपी अधिकारियों में शेख आरिफ, आनंद छाबड़ा, अभिषेक महेश्वरी, अभिषेक पल्लव शामिल हैं. इसके अलावा कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव का नाम भी आया है. एडिशनल एसपी संजय ध्रुव और आईपीएस प्रशांत अग्रवाल के ठिकानों पर भी CBI की जांच चल रही है.
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