नई दिल्ली. टैरिफ वार में उलझे अमेरिका और चीन ने अब इस मसले को सुलझाने के लिए बातचीत का रास्ता अपनाया है. शनिवार को दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच जेनेवा में इस मुद्दे को लेकर लंबी वार्ता हुई. आज भी यह बातचीत जारी रहेगी. दोनों पक्षों ने इस वार्ता में व्यापार संबंध सुधारने पर चर्चा की.अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही कहा था कि चीन पर 80% टैरिफ उचित है. इससे पता चलता है कि ट्रंप दोनों वैश्विक आर्थिक महाशक्तियों के बीच तनाव कम करना चाहते हैं. टैरिफ को लेकर अगर अमेरिका और चीन के बीच कोई समझौता होता है, तो वह भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए घाटे का सौदा ही साबित होगा. चीन इस समझौते से एक साथ दो निशाने साधने की फिराक में है. वह अमेरिका जैसा बाजार तो वापस पाना ही चाहता है, साथ ही भारत चीन-अमेरिका के ट्रेड वार से हो रहे फायदे को भी रोकना चाहता है.
अमेरिका और चीन के बीच जारी टैरिफ वार से भारत को फायदा हुआ है. अमेरिकी खरीदारों ने चीन पर लगाए गए 145% आयात शुल्क के बाद भारत का रुख करना शुरू कर दिया है. यही नहीं कई कंपनियां भी अब मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहती. विनिर्माण के लिए भारत चीन का एक मजबूत विकल्प बनकर उभरा है. यही वजह है कि ऐपल जैसी दिग्गज तकनीकी कंपनी भी भारत में अपने प्रोडक्ट्स बनाने को आतुर है.
अमेरिका-चीन समझौता भारत के लिए घाटे का सौदा
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, IMD बिजनेस स्कूल में अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रिचर्ड बाल्डविन का कहना है कि अगर चीन पर टैरिफ लंबे समय तक जारी रहता है तो भारत जैसे बड़े उभरते देशों को फायदा होगा. चीन पहले भारत का बड़ा प्रतियोगी था, लेकिन अब उसकी स्थिति कमजोर हुई है.” उन्होंने कहा कि जियो-इकोनॉमिक दृष्टिकोण से देखें तो जो कुछ चीन के लिए जो बुरा है, वो भारत के लिए अच्छा है.
अमेरिका और चीन के बीच संभावित सुलह चीन को जहां व्यापार में पुनः मजबूती प्रदान कर सकती है, वहीं इससे भारत को मिल रहा रणनीतिक लाभ कम हो सकता है. भारतीय निर्यातकों के अनुसार, कई चाइनीज निर्यातकों ने अमेरिकी ऑर्डर पूरे करने के लिए भारतीय आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क किया है, ताकि वे अपने अमेरिकी ग्राहकों को बनाए रख सकें. यदि चीन के लिए टैरिफ में कमी होती है तो इससे भारतीय सप्लायर्स की भूमिका कमजोर पड़ सकती है.
20 फीसदी घट गया अमेरिका को निर्यात
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में अमेरिका को उसका निर्यात 20% से अधिक घट गया, लेकिन आशियान और अन्य बाजारों में मजबूती के कारण चीन का कुल निर्यात साल-दर-साल 8.1% बढ़ा. यह दिखाता है कि अमेरिकी टैरिफ का अब तक तो चीन पर सीमित असर रहा है. संभावित अमेरिका-चीन व्यापार समझौता अभी हताश बैठे चीन के निर्यातकों को तेजी से उबार सकता है, क्योंकि चीन ने वर्षों से मजबूत तकनीकी विशेषज्ञता विकसित की है. भारतीय निर्माताओं का मानना है कि भारत कई श्रम-प्रधान क्षेत्रों जैसे गैर-चमड़ा जूते में अमेरिकी मांग को पूरा करने में फिलहाल सक्षम नहीं है. अगर अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ विवाद सुलझ जाता है तो अमेरिकी कंपनियां फिर माल के लिए चीन का रुख कर सकती हैं.
भारतीय निर्यात संगठन (FIEO) के पूर्व अध्यक्ष मेक्का रफीक अहमद के अनुसार, “भारत का जूता उद्योग अभी भी मुख्य रूप से चमड़े पर केंद्रित है, जबकि अमेरिका की मांग गैर-चमड़ा उत्पादों में है, जहां चीन की पकड़ मजबूत है.” उन्होंने कहा, “अमेरिका से कई पूछताछ आ रही हैं और भारत अब गैर-चमड़ा जूते की ओर बढ़ रहा है. लेकिन कुछ व्यापार बांग्लादेश की ओर भी शिफ्ट हो सकता है, क्योंकि वहां चाइनीज पेशेवरों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं है.
वियतनाम का बढ़ता प्रभाव
वियतनाम भी जूता निर्माण में तेजी से उभर रहा है. ट्रेड वार के बाद वियतनाम Nike का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बन गया. साथ ही, वियतनाम ने चीन की टेक्सटाइल विशेषज्ञता का लाभ उठाकर खुद को वैश्विक परिधान आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी बना लिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका-चीन व्यापार समझौता भारत के हित में नहीं है, क्योंकि मौजूदा व्यापार संघर्ष से भारत जैसे उभरते बाजारों को लाभ मिल रहा है.
जल्द खत्म होता नहीं दिख रहा तनाव
बाल्डविन का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में निकट भविष्य में बड़ा सुधार होने की उम्मीद कम ही है. इसकी वजह है कि अमेरिका में चीन को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जा रहा है. अमेरिका में दो मुख्य गुट हैं — पहला राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान, जो चीन को रणनीतिक खतरा मानता है और यह भावना व्हाइट हाउस और कांग्रेस दोनों में हावी है. दूसरा गुट आर्थिक है. इसका मानना है कि चीन की व्यापार नीतियों से अमेरिका को नुकसान हो रहा है. इस सोच को भी अब व्यापक समर्थन मिल चुका है.
बाल्डविन ने कहा कि बाइडन ने डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने पहले कार्यकाल में लगाए गए टैरिफ को नहीं हटाया था. अगर कमला हैरिस जैसी कोई नेता भी आतीं तो नीति में कोई खास बदलाव नहीं आता. इसके अलावा, चीन अब अधिक आक्रामक ढंग से जवाब दे रहा है, जिससे यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के रिश्तों में जल्द कोई बड़ी सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती.
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