नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को पहला डीप-सी ट्रांसशिपमेंट पोर्ट औपचारिक रूप से सौंप दिया है. यह केलर के विंजिजम में 8,900 करोड़ की लागत से बनी एक ऐसी बंदरगाह है, जो भारत को विश्व के नक्शे पर पहचान दिलाने का काम कर सकती है. यह बंदरगार देश के लिए विकास और दुनिया से व्यापारिक कनेक्टिविटी के लिए बेहद जरूरी थी, क्योंकि यह अपनी तरह की भारत में पहली बंदरगाह है. हमारी सहयोगी वेबसाइट फर्स्टपोस्ट ने विजिंजम पोर्ट और इसके महत्व को लेकर एक लेख लिखा है.
विजिंजम इंटरनेशनल डीपवॉटर मल्टीपर्पज सी-पोर्ट ने पिछले साल दिसंबर से ही कमर्शियल ऑपरेशन शुरू कर दिए थे. तब से अब तक इसने 285 जहाजों और 5.48 लाख TEU (ट्वेंटी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट) कंटेनरों को हैंडल किया है. इनमें MSC तुर्किये भी शामिल है, जो दुनिया के सबसे बड़े कार्गो जहाजों में से एक है.
ये भारत का पहला डीपवॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है. मतलब यहां बड़े जहाजों से कंटेनर उतारे जाते हैं और दूसरे जहाजों में ट्रांसफर होते हैं, ताकि वो अपनी मंजिल तक जा सके. इस बंदरगाह की गहराई करीब 20 मीटर है और इसकी लोकेशन इंटरनेशनल शिपिंग रूट्स के काफी नजदीक है. यही नहीं, पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में यह एकमात्र ट्रांसशिपमेंट हब है.
प्रोजेक्ट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत बना है. इसका संचालन अडानी ग्रुप कर रहा है, लेकिन इसमें केरल सरकार की 61.5 फीसदी और केंद्र सरकार की 9.6 फीसदी हिस्सेदारी है.
पिछले साल जुलाई में इसका ट्रायल रन शुरू हुआ था और 3 दिसंबर 2024 से कमर्शियल ऑपरेशन भी चालू हो गया. पहले फेज में, अडानी विजिंजम पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (AVPPL) ने 3,000 मीटर लंबा ब्रेकवॉटर और 800 मीटर का कंटेनर बर्थिंग एरिया बनाया है. फॉर्च्यून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बंदरगाह में 30 बर्थ हैं और हर साल यह 10 लाख कंटेनर मैनेज कर सकता है. इसके चार फेज 2028-29 तक पूरे हो जाएंगे, तब इसकी क्षमता 62 लाख TEU तक हो जाएगी. पूर्व-पश्चिम ग्लोबल शिपिंग लेन से केवल 10 नॉटिकल मील दूर होने के कारण इस पोर्ट को कोलंबो या भारत के मुंद्रा पोर्ट से काफी ज्यादा फायदा है.
विजिंजम पोर्ट की जरूरत क्यों थी?अब तक भारत में कोई भी डीपवॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट नहीं था. इसलिए भारत के करीब 75 फीसदी समुद्री व्यापार को श्रीलंका के कोलंबो, सिंगापुर, यूएई का जेबेल अली और ओमान का सलालाह जैसे विदेशी बंदरगाहों से होकर ट्रांसशिप किया जाता था.
यह काफी महंगा पड़ता है और ट्रांजिट टाइम भी बढ़ जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू व्यापारियों को हर कंटेनर पर 80 से 100 डॉलर तक ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं. भारत हर साल ट्रांसशिपमेंट पर करीब 200–220 मिलियन डॉलर खर्च करता है.
विजिंजम पोर्ट का महत्वयह पोर्ट भारत के समुद्री व्यापार की तस्वीर ही बदल सकता है. यह भारत को ग्लोबल ट्रेड में मजबूती देगा, लॉजिस्टिक्स में सुधार लाएगा और विदेशी पोर्ट्स पर हमारी निर्भरता कम करेगा.
इस पोर्ट की नेचुरल डेप्थ 20 मीटर से ज्यादा है, जिससे ये MSC तुर्किये जैसे बड़े जहाजों को बिना गहराई बढ़ाए संभाल सकता है. इससे बंदरगाहों को गहरा करने की महंगी प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ेगी.
यह डीपवॉटर पोर्ट “मदर वेसल्स” को हैंडल कर सकता है, जो 20,000 कंटेनर तक ला सकते हैं. नेशनल हाईवे, रेल लाइन और त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट के साथ जुड़ा होने के कारण इसकी कनेक्टिविटी भी अच्छी है. बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, भारत के दक्षिणी किनारे के पास से गुजरने वाली ग्लोबल शिपिंग लेन से 30 फीसदी मालवाहक ट्रैफिक गुजरता है, और विजिंजम उसकी नजदीक है.
लोकल स्तर पर रोजगारइस पोर्ट से स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिला है. इंडियन एक्सप्रेस को एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि 755 लोग इस पोर्ट पर काम कर रहे हैं. उसने बताया, “इस वक्त करीब 67 फीसदी वर्कफोर्स केरल से है, जिनमें से 57 फीसदी त्रिवेंद्रम जिले से और 35 फीसदी बिलुकल लोकल हैं. हमने मछुआरा समुदाय से 9 महिलाओं को भी हायर किया है, जो बड़ी ऑटोमेटेड क्रेन ऑपरेट कर रही हैं. ऐसा किसी भारतीय पोर्ट में पहली बार हुआ है.
द प्रिंट के मुताबिक, केरल को उम्मीद है कि विजिंजम पोर्ट राज्य में और निवेश लाएगा और विदेशों में काम कर रहे मलयाली लोगों को वापस घर लाने में मदद करेगा. जब विजिंजम पूरी तरह से चालू हो जाएगा तो यह भारत की ग्लोबल ट्रेड में प्रतिस्पर्धा को बढ़ा सकता है. जैसा PM मोदी ने कहा, यह पोर्ट “ट्रेड और कॉमर्स को बढ़ावा देगा और केरल की इकॉनमी के लिए तो ये बहुत फायदेमंद रहेगा.”
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