अमेरिका में पिछले हफ्ते घटा कुछ ऐसा, भारत तक सुनाई दी गूंज, डराने वाले हैं हालात!

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नई दिल्ली. पूरी दुनिया पर जब अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं ऐसे में यूएस से और सहमा देने वाले आंकड़े आ रहे हैं. अमेरिका में बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या बढ़कर पिछले हफ्ते 2.40 लाख पर पहुंच गई है. इसका सीधा मतलब है कि पिछले वहां ज्यादा लोगों के हाथ से नौकरी निकली है.अमेरिकी श्रम विभाग ने गुरुवार को यह रिपोर्ट जारी की. पिछले हफ्ते बेरोजगारी भत्ता मांगने वालों की संख्या में 14000 लोग और शामिल हो गए हैं. इससे एक बात तो साफ है कि यूएस में छंटनी बढ़ रही है.

यह आंकड़ा विश्लेषकों के अनुमान से अधिक है. विश्लेषकों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आने वाले नए आवेदनों की संख्या 2,26,000 रहने का अनुमान जताया था. बेरोजगारी लाभ के लिए आने वाले साप्ताहिक आवेदनों को अमेरिका में कामगारों की छंटनी के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. बेरोजगारी भत्ता दावों का चार सप्ताह का औसत मामूली रूप से घटकर 2,30,750 हो गया. बेरोजगारी भत्ता पाने वाले कुल अमेरिकी नागरिकों की संख्या 17 मई को समाप्त सप्ताह में बढ़कर 19.2 लाख हो गई थी.

क्या हैं इसके मायने?

1. अमेरिका की अर्थव्यवस्था में कमजोरी के संकेत

बेरोजगारी भत्ते के ज्यादा आवेदन बताते हैं कि अमेरिका का जॉब मार्केट कमजोर हो रहा है. इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है – रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास संघर्ष और सप्लाई चेन में रुकावट जैसे वैश्विक हालात.

2. महंगाई और ब्याज दरों पर असर

बेरोजगारी बढ़ेगी तो लोगों की खरीदने की ताकत कम होगी. इससे महंगाई घट सकती है, लेकिन साथ ही आर्थिक ग्रोथ भी धीमी हो सकती है. अमेरिका का सेंट्रल बैंक (फेडरल रिजर्व) ब्याज दरें कम या स्थिर रखने पर विचार कर सकता है.

3. उपभोक्ता खर्च और ग्लोबल मांग पर असर

जब लोगों के पास नौकरी नहीं होती, तो वे कम खर्च करते हैं. इसका असर अमेरिका की इकोनॉमी और वहां से जुड़े वैश्विक व्यापार पर पड़ेगा.

भारत और दुनिया के लिए इसका क्या मतलब?

1. भारतीय निर्यात पर दबावभारत ने 2025 में अपने कुल निर्यात में 6% की बढ़ोतरी की है, लेकिन अगर अमेरिका की मांग कमजोर होती है, तो ये ग्रोथ रुक सकती है. खासतौर से टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं.

2. भारतीय आईटी और सेवा सेक्टर पर असरभारत की आईटी कंपनियां अमेरिका से बड़ा बिजनेस करती हैं. अगर वहां की कंपनियां खर्च में कटौती करेंगी, तो भारत के सेवा निर्यात (जो इस साल 11.6% बढ़ा है) पर असर पड़ेगा.

3. प्रवास नीति में बदलावबेरोजगारी बढ़ने पर अमेरिका में विदेशियों के लिए नौकरी पाना मुश्किल हो सकता है. खासकर अगर डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां लागू होती हैं, तो भारतीय पेशेवरों को मुश्किलें आ सकती हैं.

4. निवेश और बाजार में अनिश्चितताअमेरिका में मंदी का असर पूरी दुनिया के शेयर बाजारों और निवेश के माहौल पर पड़ेगा. भारत में पहले से ही प्राइवेट इन्वेस्टमेंट धीमा है, और ऐसे में विदेशी निवेश भी प्रभावित हो सकता है.

5. वैश्विक व्यापार पर तनावअगर ट्रंप जैसे नेता दोबारा सत्ता में आते हैं और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अपनाते हैं, तो भारत जैसे देशों को अमेरिकी टैक्स और पाबंदियों से नुकसान हो सकता है.

नतीजा क्या निकलेगा?

अमेरिका की यह बेरोजगारी रिपोर्ट सिर्फ उनके देश का मामला नहीं है, इसका असर भारत और दुनिया की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा. भारत को इससे बचने के लिए अपनी नीति में लचीलापन लाना होगा—जैसे MSME सेक्टर को मज़बूत करना, घरेलू मांग बढ़ाना और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियान को तेज़ करना.

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