US Tariffs: ट्रंप का टैर‍िफ प्रहार जारी, अब यूरोपीय यूनियन बना निशाना, 1 अगस्त से लगाएंगे भारी टैक्स

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नई दिल्ली. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ा कदम उठाते हुए अब यूरोपीय यूनियन (EU) को निशाने पर लिया है. उन्होंने ऐलान किया है कि यूरोपीय यूनियन से आने वाले सभी सामानों पर 30 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा. ये फैसला 1 अगस्त 2025 से लागू होगा और इसका असर दोनों देशों की कंपनियों और आम लोगों पर पड़ेगा. इस टैक्स से फ्रेंच चीज, इटैलियन लेदर बैग, जर्मन इलेक्ट्रॉनिक्स, स्पेनिश दवाइयों जैसे यूरोपीय प्रोडक्ट अमेरिका में महंगे हो सकते हैं.

अप्रैल में ट्रंप ने यूरोपीय यूनियन पर 20 फीसदी टैरिफ लगाने की बात की थी. बाद में नाराज होकर उन्होंने इसे 50 फीसदी तक बढ़ाने की धमकी दी थी. अब 30 फीसदी टैरिफ तय किया गया है.

अमेरिका-यूरोप का ट्रेड कितना बड़ा है?
2024 में अमेरिका और ईयू के बीच 1.7 ट्रिलियन यूरो (लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर) का ट्रेड हुआ यानी हर दिन 4.6 अरब यूरो का लेन-देन. अमेरिका यूरोपीय यूनियन को कच्चा तेल, दवाएं, एयरक्राफ्ट और मेडिकल इक्विपमेंट बेचता है. यूरोपीय यूनियन अमेरिका को कारें, दवाएं, शराब, एयरक्राफ्ट और कैमिकल्स निर्यात करता है.

ट्रंप की नाराजगी क्यों?ट्रंप का कहना है कि ईयू अमेरिका से ज्यादा सामान बेचता है, जिससे 198 बिलियन यूरो का व्यापार घाटा होता है. हालांकि सर्विसेज में अमेरिका ईयू से ज्यादा कमाता है, जिससे ट्रेड डेफिसिट 50 अरब यूरो रह जाता है.

टैरिफ के पीछे क्या विवाद है?
ट्रंप का कहना है कि ईयू की पॉलिसीज, जैसे स्वास्थ्य नियम (क्लोरीन से धुले चिकन और हार्मोन-ट्रीटेड बीफ पर बैन) और वैल्यू-एडेड टैक्स (VAT) अमेरिका के लिए अनुचित हैं. ईयू का कहना है कि वैट सभी सामानों पर लागू होता है, चाहे वह स्थानीय हो या आयातित. साथ ही ईयू अपने नियमों को अमेरिका के कहने पर नहीं बदल सकता.

कीमतें बढ़ेंगी, कंपनियों की मुश्किलें बढ़ेंगीअमेरिकी ग्राहकों को यूरोपीय सामान के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है. कंपनियां या तो कीमतें बढ़ाएंगी या अपने मुनाफे में कटौती करेंगी. फ्रांस की लग्जरी कंपनी LVMH (Louis Vuitton, Dior, Tiffany) जैसी कंपनियों ने कहा है कि अगर टैरिफ लगा तो वे अमेरिका में ही प्रोडक्शन शुरू कर सकती हैं.

क्या होगा आगे?रिपोर्ट के मुताबिक, अगर टैरिफ बढ़ा तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 0.7 फीसदी और ईयू को 0.3 फीसदी का नुकसान हो सकता है. अगर दोनों पक्षों में समझौता नहीं हुआ, तो इसका खामियाजा अमेरिकी ग्राहकों और ग्लोबल ट्रेड को उठाना पड़ सकता है.

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